गोविन्द ठाकुर
”अगर शराब घोटाले में इडी सीबीआई आपपर मुकदमा करती है तो अरवींद केजरीवाल पार्टी के मुखिया हैं और अगर ईडी पार्टी को आरोपी बनाती है और यह आरोप लगाती है कि शराब नीति घोटाले से हुई अवैध कमाई का इस्तेमाल पार्टी ने राजनीतिक गतिविधियों में किया तो पार्टी के प्रमुख के तौर पर केजरीवाल जांच के दायरे में आएंगे। इस तरह से भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय खुल सकता है, और आगे की अध्याय में सभी दल इसके जद़ में आ जायेंगे”।
शराब घोटाले में अगर आम आदमी पार्टी पर मुकदमा होता है तो सवाल है कि अगर केंद्रीय एजेंसियों ने आप के खिलाफ मुकदमा किया तो क्या होगा? इस बारे में कानूनी एक पहलू है लेकिन उससे बड़ा पहलू राजनीतिक है। यह पंडोरा बॉक्स खुलने की तरह होगा। आज तक किसी पार्टी के खिलाफ धन शोधन के मामले में कार्रवाई नहीं हुई है। अगर एक पार्टी के के खिलाफ धन शोधन का मुकदमा दर्ज होता है और कार्रवाई होती है तो देश की तमाम पार्टियों के लिए वह खतरे की घंटी होगी। यह एक शुरुआत होगी, जिसका अंत कहां होगा यह किसी को पता नहीं है। अगर केंद्रीय एजेंसी धन शोधन की जांच करेगी तो राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियों के पास जो एजेंसी होगी वह विरोधी पार्टियों के खिलाफ उसका इस्तेमाल करेगी।
तभी सवाल है कि मुकदमा हुआ तो आम आदमी पार्टी का क्या होगा और क्या मुकदमे का असर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर भी होगा? इन दोनों सवालों के जवाब बहुत महत्व के हैं। वैसे तो किसी भी पार्टी के खिलाफ इस तरह के आपराधिक मुकदमे की मिसाल नहीं है। इसलिए जो भी होगा वह मिसाल बनाने वाला होगा। इससे या तो पार्टियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो जाएगा या सबके लिए खुल जाएगा।
एजेंसियों इडी और सीबीआई कानूनू अधिकार के अलावा एक अहम भूमिका चुनाव आयोग की होगी। चुनाव आयोग के लिए भी यह बिल्कुल नया मामला है। चुनाव आयोग को पार्टियों की मान्यता रद्द करने और नाम, चुनाव चिन्ह आदि सीज करने का अधिकार है। अगर पार्टियों की मान्यता की बात करें तो जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए के तहत चुनाव आयोग को पार्टियों के पंजीकरण का अधिकार है। लेकिन पंजीकरण रद्द करने का अधिकार सिर्फ तीन ही स्थितियों में है। पहली स्थिति तो यह है कि पार्टी ने अपना पंजीकरण फर्जी दस्तावेजों या दूसरे गलत साधनों का इस्तेमाल करके हासिल किया हो। दूसरी स्थिति यह है कि पार्टी संविधान में विश्वास न करे और उसमें वर्णित समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांत को न माने या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता में विश्वास न करे। तीसरी स्थिति है कि भारत सरकार गैरकानून गतिविधि रोकथाम कानून यानी यूएपीए या इस तरह के किसी दूसरे कानून के तहत किसी पार्टी को गैरकानूनी ठहरा दे तो चुनाव आयोग उसकी मान्यता रद्द कर देगा। लेकिन इस मामले में यह तीनों स्थितियां नहीं दिख रही हैं।
जहां तक चुनाव चिन्ह और पार्टी का नाम सीज करने का मामला है तो इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर की धारा 16ए के तहत कुछ नियम तय किए गए हैं और उन्हीं स्थितियों में चुनाव आयोग किसी पार्टी का नाम या चुनाव चिन्ह सीज कर सकता है। इसके मुताबिक अगर कोई पार्टी चुनाव आचार संहिता का पालन नहीं करती है या चुनाव आयोग की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करती है तो उसका नाम और चुनाव चिन्ह सीज किया जा सकता है। इस कानून में किसी पार्टी के किसी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल होने पर कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं है। इसलिए अगर आम आदमी पार्टी के ऊपर पीएमएलए के तहत मुकदमा होता है और यहां तक की सजा भी हो जाती है तब भी चुनाव आयोग के लिए कार्रवाई मुश्किल होगी। हां, यह हो सकता है कि यह नया मामला सामने आने के बाद केंद्र सरकार जन प्रतिनिधित्व कानून और चुनाव चिन्ह वगैरह से जुड़े कानून में कुछ बदलाव करे। अगर कानून बदल कर आम आदमी पार्टी पर कार्रवाई होती है तो वह भी एक नजीर बनेगी।
अरवींद केजरीवाल पार्टी के मुखिया हैं और अगर ईडी पार्टी को आरोपी बनाती है और यह आरोप लगाती है कि शराब नीति घोटाले से हुई अवैध कमाई का इस्तेमाल पार्टी ने राजनीतिक गतिविधियों में किया तो पार्टी के प्रमुख के तौर पर केजरीवाल जांच के दायरे में आएंगे। इस तरह से भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय खुल सकता है, जिसका पटाक्षेप कैसे होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं है।