अनुप्रिया की साख पर आई आंच तो बीजेपी की लगाई क्लास

When Anupriya's credibility came under attack, BJP's class

संजय सक्सेना

अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल की 2024 के लोकसभा चुनाव में सियासी जमीन क्या हिली,उन्हें दलित,कुर्मी पिछड़े सब याद आने लगे हैं। 2019 में मिर्जापुर लोकसभा सीट का चुनाव अनुप्रिया ने करीब दो लाख बत्तीस हजार वोटों के अंतर से जीता था,लेकिन 2024 में जीत का अंतर 37 हजार वोटों के करीब सिमट गया। ऐसा होते ही अनुप्रिया फिर से अपनी साख लौटाने के लिये उसी बीजेपी को घेर रही हैं जिसकी मोदी सरकार में वह और योगी सरकार में उनके पति मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। अपनी खोई हुई जमीन फिर से हासिल करने के लिये अनुप्रिया ने ओबीसी व एसटी के लिए आरक्षित पदों पर भर्ती को लेकर जो सवाल खड़े किये वह उनके सियासी सुर्खियां बटोरने का प्रयास के अलावा कुछ नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि इसके पीछे उनकी कुर्मी वोट बैंट के खिसकने की घबराहट को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि खुद को अपनी जाति का एकमात्र नेता मान चुकीं अनुप्रिया को इस बार लोकसभा चुनाव में कड़े संघर्ष में बमुश्किल जीत मिली थी, उससे वह काफी दबाव में हैं।

दरअसल, लोकसभा चुनाव में उन्हें अपनी परंपरागत सीट पर अनुप्रिया को बड़ी मशक्कत और कड़े संघर्ष में जीत मिली थी, वहीं, राबर्टगंज सीट उनके हाथ से निकल गई। भाजपा ने अपना दल को दो ही सीटें दी थीं। इसके अलावा अनुप्रिया द्वारा एक दर्जन से अधिक सीटों पर कुर्मी जाति का प्रभाव होने का दावा किया जा रहा है, उनमें से अधिकांश सीटों पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा है। भाजपा द्वारा परिणामों की समीक्षा में यह बात सामने आने के बाद से ही अनुप्रिया एनडीए में अपनी साख बचाने को लेकर परेशान थीं और इसी लिये वह दबाव की राजनीति कर रही हैं। ये अलग बात है कि कुर्मी बहुल सीटों पर हार के बावजूद भी भाजपा नेतृत्व ने उनको न सिर्फ केंद्र में फिर से मंत्री बनाया, बल्कि उन्हें वह अहमियत भी दी है, जो पहले था। इसके बावजूद अनुप्रिया द्वारा ओबीसी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित पदों पर भर्ती पर सवाल उठाना भाजपा के लिए हैरानी का सबब बन गया है।

खैर, अनुप्रिया के इस सियासी कदम का उन्हें आगे क्या फायदा होगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने इस मुद्दे को उछालकर अपनी बिरादरी पर कमजोर होती पकड़ को फिर से मजबूत करने की कोशिश की है। वहीं, दूसरी ओर से अनुप्रिया के इस कदम को दबाव की राजनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव परिणाम में कुर्मी वोट बैंक के खिसकने के बाद से ही अनुप्रिया को यह चिंता सताने लगी थी कि अगर एक बार वोट बैंक खिसका तो उसे दुबारा वापस पाना पार्टी के लिए कड़ी चुनौती होगी।इसलिए उन्होंने आरक्षित पदों पर भर्ती को लेकर सवाल उठाकर एक तरह से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है। हालांकि भर्ती आयोग के नियमावली के आधार पर अपर मुख्य सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक देवेश चतुर्वेदी ने सरकार की ओर से अनुप्रिया के पत्र का जवाब भेजकर स्थिति को साफ कर दिया है। फिर भी उनके इस सियासी पैंतरे को लेकर चर्चा थम नहीं रही है। माना जा रहा है कि बिना सही तथ्यों से अवगत हुए ऐसा मुद्दा उठाना अनुप्रिया की बड़ी सियासी चूक है।

उधर, भाजपा खेमा भी अब अनुप्रिया द्वारा पत्र लिखने के पीछे की वजहों की तलाश में जुटा गया है। दरअसल, भाजपा खेमे में इस बात की जोरदार चर्चा है कि अनुप्रिया ने यह कदम अनायास ही नहीं उठाया है। यह भी माना जा रहा है लोकसभा चुनाव में चुनाव जीतने वाले दो मंत्रियों के स्थान पर प्रदेश मंत्रिमंडल में होने वाले विस्तार और एमएलसी के रिक्त पदों पर चुनाव को देखते हुए ही अनुप्रिया ने यह कदम उठाया है। जिससे प्रदेश सरकार पर दबाव बनाया जा सके। वह पहले से ही प्रदेश सरकार में अपने कोटे से एक और मंत्री बनाने का मुद्दा उठाती रही हैं।