
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और प्रतिपक्ष में बैठी कांग्रेस दोनों दल अपनी-अपनी पार्टी में अंतर विरोधों का सामना कर रही हैं। भजन लाल सरकार के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा इन दिनों विधानसभा में नहीं आ रहें हैं। इसी प्रकार राज्य विधानसभा में पिछले दिनों एक मंत्री द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी पर की गई एक टिप्पणी से उत्पन्न हुए गतिरोध और विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के आसन के समक्ष विरोध प्रदर्शन के तरीके पर नाराजगी और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा सहित छह कांग्रेसी विधायकों के निलंबन के बाद कांग्रेस के सभी विधायकों द्वारा विधानसभा का बहिष्कार करने से पैदा हुई स्थिति ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की पहल पर प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली से की गई वार्ता और जूली द्वारा पार्टी नेताओं के आचरण पर आसन से माफी मांगने के बाद गतिरोध टूटने से फिर से बजट सत्र की कार्यवाही पुनः शुरू हुई है, लेकिन इसके बाद से ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा के विधानसभा में नहीं आने से राजनीतिक क्षेत्रों में विभिन्न कयास और चर्चाएं शुरू हो गई हैं। इस बीच प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा द्वारा दिए गए एक और बयान से भी पार्टी में अंतर्विरोध के कयासों को बल मिला हैं। हालांकि प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने इन सभी कथित चर्चाओं को बेबुनियाद तथा भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा बताया हैं ताकि विधानसभा में जनता से जुड़े विषयों पर प्रतिपक्ष द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सकें।
इन दिनों राज्य विधानसभा का महत्वपूर्ण बजट सत्र चलने के बावजूद सत्ताधारी भाजपा के कद्दावर मीणा नेता और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा मंत्रिपरिषद के सबसे वरिष्ठ कृषि मंत्री डॉ.किरोड़ी लाल मीणा विधानसभा की कार्यवाही में भाग नहीं ले रहें हैं। इसकी वजह स्वास्थ्य कारणों से उनके द्वारा विधानसभा से लिया गया अवकाश बताया जा रहा हैं लेकिन,प्रतिपक्ष का आरोप है कि डॉ मीणा विधानसभा ने तो नहीं आ रहें लेकिन सड़क की राजनीति करते हुए दिख रहें हैं और सार्वजनिक स्थलों पर भी सक्रिय नजर आ रहें है। डॉ मीणा के मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देने और कथित फोन टेपिंग आदि के संबंध में तल्ख बयानों के कारण पिछले दिनों प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ ने शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर पहली बार उन्हें कारण बताओं नोटिस भी दिया था लेकिन कुछ दिनों तक शांत रहने के बाद डॉ मीणा ने फिर से एक सार्वजनिक बयान में अपनी ही सरकार पर खुद के फोन अभी भी टेप होने का आरोप जड़ दिया हैं। डॉ किरोड़ी लाल मीणा की उलझन को सुलझाने में भाजपा नेतृत्व बहुत ही बेबस दिख रहा हैं। राजनीतिक जानकार बताते है कि डॉ मीणा पहले अपने से जूनियर मंत्रियों को उप मुख्यमंत्री बनाने,अपनी पसन्द के मंत्रालय नहीं मिलने तथा अपने छोटे भाई को लोकसभा का टिकट नहीं दिए जाने आदि कई कारणों से पार्टी से नाराज चल रहे थे। इसी कारण उन्होंने दवाब की राजनीति करते हुए अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कई दिनों तक ऑफिस भी नहीं गए और नहीं सरकारी काम काज ही निपटाया। हालांकि उनका त्यागपत्र आज तक स्वीकार नहीं हुआ हैं लेकिन अपनी ही पार्टी और सरकार के विरुद्ध उनके बयान अभी भी नहीं रुक रहें हैं। पिछले विधानसभा उप चुनाव में हुई अपने छोटे भाई की दौसा विधानसभा सीट पर करारी हार से डॉ मीणा और अधिक आहत और नाराज बताए जाते हैं तथा उनके तल्ख बयान भी तेज हो गए हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते है कि डॉ किरोड़ी लाल मीणा को लेकर भाजपा नेतृत्व इस उधेड़बुन में है कि आखिर उनके मामले का समाधान किस प्रकार निकाला जाए?
कतिपय लोगों का कहना है कि आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद भजन लाल मंत्रिपरिषद में फेर बदल होगा । उस वक्त डॉ किरोड़ी लाल मीणा के मसले को भी सुलझा लिया जाएगा। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार डॉ किरोड़ी लाल मीणा को भजन लाल मंत्रिपरिषद और भाजपा में रखना पार्टी की एक बड़ी मजबूरी हैं क्योंकि पूर्वी राजस्थान की राजनीति और इस क्षेत्र के छह सात जिलों के अलावा प्रदेश के अन्य आदिवासी अंचलों तक डॉ मीणा का अच्छा खासा प्रभाव हैं। ऐसे में डॉ मीणा को शीर्ष नेतृत्व द्वारा समझा बुझा कर मंत्रिपरिषद में कुछ और बड़ी जिम्मेदारी देकर सन्तुष्ट किया जा सकता हैं। भाजपा वसुन्धरा राजे के समय डॉ मीणा द्वारा भाजपा पार्टी को छोड़ कर चले जाने और अपनी पत्नी गोलमा देवी को कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के मंत्रिपरिषद में भी शामिल करवा चुके हैं। हालांकि राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी की तरह डॉ किरोड़ी लाल मीणा पुनः भाजपा की मुख्य धारा में जुड़े और वर्तमान में ये दोनों नेता केन्द्र और राज्य की राजनीति में भाजपा के अभिन्न अंग हैं। पिछले दिनों भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के राजनीतिक महत्व को समझते हुए उन्हें भी पार्टी गतिविधियों में फिर से सक्रिय कराया हैं। ऐसे में पार्टी नेताओं को डॉ किरोड़ी लाल मीणा से जुड़े मामलों का भी समुचित हल निकल आने की पूरी उम्मीद हैं।
इधर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में भी अंतर्विरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। प्रदेश कांग्रेस पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट ग्रुप द्वारा अपना- अपना वर्चस्व जमाने के लिए घमासान चल रहा है। वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा का कार्यकाल भी पूरा हो गया है और पिछले विधानसभा उप चुनावों में प्रदेश की चार सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने से हुई पार्टी की किरकरी के बाद प्रदेश नेतृत्व को बदलने की चर्चाएं तेज हुई है लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि फिलहाल ऐसा कोई परिवर्तन नहीं होगा क्योंकि विधानसभा उप चुनाव में प्रायः सत्ताधारी दल ही चुनाव जीतने है लेकिन गोविन्द सिंह डोटासरा के अध्यक्षीय कार्यकाल में राज्य की 11 लोकसभा सीटों पर भाजपा की करारी हार तथा प्रदेश में भाजपा की जीत की तिकड़ी नहीं बनने देने की रणनीति का श्रेय डोटासरा के नेतृत्व को दिया जा रहा है। कांग्रेस के हाल ही विधानसभा के अंदर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए भजन लाल मंत्रिपरिषद के मंत्री अविनाश गहलोत द्वारा किए गए विवादित शब्द को लेकर किए गए तीव्र विरोध प्रदर्शन तथा विधानसभा के बाहर विधायकों के विधानसभा से निलंबन के विरोध में किए गए प्रदर्शन में भी गहलोत और पायलट गुट के सभी नेताओं को एक साथ जोड़ने में डोटासरा की भूमिका को अहम माना जा रहा है तथा कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा एवं पार्टी हाई कमान उनसे संतुष्ट बताया जाता हैं, फिर गोविन्द सिंह डोटासरा द्वारा इस मुद्दे पर अभी भी लगातार हमलावर होने से उनकी स्थिति हाई कमान की नजर में काफी मजबूत हुई है। जहां तक डोटासरा के विधानसभा में नहीं जाने के बारे में कहा जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत, वसुन्धरा राजे, सचिन पायलट आदि भी यदाकदा ही विधानसभा में जाते है। ऐसे में डोटासरा की संगठन की अन्य जिम्मेदारियों को देखते हुए यह कोई खास बात नहीं है। डोटासरा प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों और जिला कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्तियों के काम में भी जुटे हुए है तथा आगामी नवम्बर में प्रस्तावित निकाय चुनावों की तैयारियों में लगे हुए हैं।
इस पृष्ठभूमि में राजनीतिक इलाकों में यह चर्चा जोरों पर है कि राजस्थान में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और प्रतिपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी के नेताओं में व्याप्त इन राजनीतिक अंतर विरोधों का आखिर कब तक अन्त होगा ताकि ये दल आने वाले वक्त की चुनौतियों का एकजुट होकर मुकाबला कर सकें?