नृपेन्द्र अभिषेक नृप
प्रतियोगी छात्रों का जीवन काटों भरा होता है। यह बात तब साबित हो गई जब लगातार परीक्षा की डेट बढ़ाते रहने के बाद भी बिहार लोक सेवा आयोग कदारमुक्त परीक्षा लेने में असफल हो गया। इस बार के एग्जाम में पहली बार बड़े पैमाने पर छात्र शामिल हुए थे जिसके प्रबंधन के लिए आयोग को लंबा इन्तजार करना पड़ा था।
लेकिन बिहार लोक सेवा आयोग के इतिहास में पहली बार 67वीं संयुक्त परीक्षा का प्रश्नपत्र वायरल हुआ है। प्रश्नपत्र वायरल होने के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई। सुबह 11 बजे से ही पेपर सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा था। पीटी परीक्षा रद्द होने के बाद लगभग पांच लाख छात्रों को झटका लगा है। खासकर दूरदराज से परीक्षा देने आए छात्रों को आर्थिक रूप से तो नुकसान हुआ ही, मानसिक तौर पर भी वे परेशान हुए। सैकड़ों छात्र तो दिल्ली और उत्तर प्रदेश से परीक्षा देने आए थे।
पिछले कुछ सालों से लगातार परीक्षार्थियों की संख्याओं में वृद्धि के बाद से एग्जाम का सेंटर जिला मुख्यालय से बाहर प्रखंड मुख्यालय में भी दिया जाने लगा है। जैसे कि पिछली बार भी दिया गया था और इस बार भी दिया गया था। पेपर लीक की शुरुआत तब से ही हुई है जबसे प्रखंड मुख्यालय तक सेंटर गया है, क्योंकि उसके बाद से सेंटर मैनेज करना आसान हो गया है। पिछली बार जब 66वीं का प्री हो रहा था तो औरंगाबाद में पेपर लीक की बात आई, जिसके बाद वहां का एग्जाम रद्द कर बाद में लिया गया था।
हद तो तब हो गई जब सोशल साइट के जमाने मे भी आयोग का कहना था कि पेपर बाहर नहीं गया है जिसका असर कट ऑफ पर साफ दिख गया था। यहीं नहीं सरकार या आयोग पिछली घटनाओं से भी नहीं सीखी और पूरी तरह से राज्य भर में लीक होने का इन्तेजार करती रही। औऱ 67वीं की प्री का पेपर एग्जाम के पहले ही वायरल हो गया। सवाल यह है कि आयोग ने अपनी छोटी गलतियों से सीख ली होती तो आज लाखो छात्रों को दर दर के ठोकरे फिर से खाने की तैयारी नहीं करनी पड़ती।
आयोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। कदाचार मुक्त परीक्षा कराने के लिए आयोग छात्रों के सेंटर घर से 300 या 400 किलोमीटर दूर देता है, हालांकि लड़कियों का होम सेंटर कर के उन्हें थोड़ी राहत देता है। लेकिन छात्रों के साथ यह अन्याय करने का हक आयोग को कौन देता है? जब आप छात्रों को इतनी मशक्कत के बाद एग्जाम दिलाने को भेजते हो, आने – जाने का किराया, यात्रा का कष्ट और मानसिक पीड़ा सहने देते हो, इसके बाद भी एग्जाम लेने में आयोग का फेल होना कहाँ तक जायज है?
इससे तो बेहतर था न कि छात्रों का सेंटर पड़ोसी जिलों तक सीमित किया जाए क्योंकि छपरा से कटिहार और बांका से बेतिया भेजने के बाद भी अगर पेपर लीक हो जाना है तो फिर समस्या सेंटर में नहीं समस्या विभाग में है जिसका समाधान जरूरी है। छात्रों को चाहिए कि सेंटर का पुरजोर विरोध किया जाए ताकि आयोग अपनी हरकतों से बाज आये। आयोग के पास चुनौतियों का अंबार पड़ा है और जबतक भ्रष्टाचार सर चढ़ कर बोलता रहेगा यहीं हस्र होगा एग्जाम का।
समस्या कहाँ- कहाँ आ रही है यह भी समझने वाली बात है। कैमूर जिले के राजकीय उच्च विद्यालय कोढ़ा की बात मैं करता हूँ , जहाँ का मैं प्रत्यक्ष दृश्य देख रहा था। परीक्षा शुरू का समय दोपहर 12 बजे से था। 11 बजे सभी छात्रों को बैठा भी दिया गया लेकिन पेपर के अरेंज करने के नाम पर एग्जाम को 1 बजे तक टाला गया। 1 बजे यह कहते हुए एग्जाम शुरू हुआ कि सभी को 2 घण्टा समय मिलेगा लेकिन समय काट लिया गया। यही नहीं सेंटर के लगभग सभी पेपर का सील पहले ही तोड़ दिया गया था। यानी कि यहां भी धांधली हुई ही होगा। ऐसे कितने सारे सेंटर देखने को मिले जब छात्रों से बात किया गया तो जानकारी मिलती चली गई। फिर आयोग क्या कर रहा है जो इतने बड़े पैमाने पर धांधली हो रही है।
बिहार में पेपर लीक की समस्या सिर्फ बिहार लोक सेवा आयोग तक सीमित नहीं हैं। पिछले कई सालों से 10 वी और 12वी का भी पेपर 1 घण्टा पहले सोशल साइट पर वायर हो जाता है। लेकिन कभी आयोग ने न परीक्षा रद्द किया और नहीं जांच करवाया। और आज जब यह दृश्य राज्य के सबसे बड़े एग्जाम तक देखने को मिल गया और पूरे देश मे राज्य की बदनामी हो गई तो सरकार और आयोग के कान खड़े हो गए है। बी एस एस सी के पेपर भी लीक होने के बाद परीक्षा रद्द हुआ था लेकिन उससे भी कभी बिहार ने नहीं सीखा।
सेंटर इतनी दूर-दूर भेजने से तो बेहतर होगा कि परीक्षा से कुछ समय पहले इंटरनेट बंद कर दिया जाए। जब केवल दंगे की आशंका से प्रशासन दो-दो, तीन-तीन दिन तक इंटरनेट बंद कर सकता है। तो लाखों छात्रों का भविष्य बचाने के लिए 2-3 घंटे इंटरनेट बंद हो जाएगा तो क्या कयामत आ जायेगी?
बिहार अपने पेपर लीक की बीमारी से कब मुक्त होता है और कब यह कैंसर ठीक होता है जिससे कि लाखों छात्रों का भविष्य उज्जवल हो और आगे से उन्हें खून के आंसू न रोना पड़े, कब तक ऐसी व्यवस्था यह सरकार और आयोग करती है, यह देखने वाली बात है। आयोग के पास यह बड़ी चुनौती भी है। देखना है कि प्रतियोगियों के ज़ख्मों पर मरहम कब तक लगता है?