सुशील दीक्षित विचित्र
जम्मू – कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष और आतंकी यासीन मलिक को उम्र कैद की सजा सुनाये जाने से पहले अदालत में जो सबूत , जो गवाह और जो कागजात पेश किये गए उससे यासीन मलिक के चेहरे के नीचे से एक दुर्दांत आतंकवादी का चेहरा जरूर नंगा हो गया | लेकिन यह कोई सांत्वना की बात नहीं है क्योंकि यासीन अपने किये की सजा भुगत रहा है , आगे भी भुगतेगा लेकिन उनका क्या होगा जो यासीन मलिक और उसके जैसे आतंकियों को हीरो बनाने पर तुले रहते हैं | उन्हें कौन सजा देगा जिन्होंने देशद्रोही आतंकवादियों को अलगाववादी कह कर ऐसे पाला जैसे कोई आस्तीन में सांप पाले | उन्हें कौन अदालत के कटघरे तक पहुंचायेगा जो भारत की जड़ों में पलीता लगाने वालों के साथ खड़े होकर उकसाने लगते हैं ?
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से यासीन मलिक का गहरा संबंध था | 1987 से 1994 तक यासीन मलिक ने आतंकवादी घटनाओं में इजाफा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | वायुसेना के चार जवानों की उसने तालिबानी अंदाज में हत्या की थी और इसे उसने कई मंचों पर कबूल भी किया | पाकिस्तान से टेरर फंडिग से वह पत्थरबाजों और आतंकवादियों के लिए आर्थिक मदद देता था | केंद्रीय मंत्री की पुत्री के अपहरण में उसका प्रमुख रोल था और कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का वह अगुआ था | इस सबको नजरंदाज करके बुद्धिजीवियों और मीडिया के एक वर्ग ने यासीन मलिक को शान्ति दूत साबित करने की कोई कोशिश उठा नहीं रखी | उसे यूथ आइकॉन का एवार्ड दिया गया और कुछ एक विशेष चैनलों पर यासीन मलिक के इंटरव्यू के दौरान सर -सर पुकार कर एक आतंकवादी के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया | कैसी विडंबना है कि एक देशद्रोही हत्यारे को 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने आवास पर बुला कर उसे सम्मानित करते है | उसके साथ फोटो शूट कराते हैं | वामपंथी लेखक बगलगीर होकर उसके देशद्रोही मनोबल को बढ़ाते हैं | दयनीय यह देखना है की यह सब लोकतंत्र और संविधान का नाम लेकर किया जाता है |
यहां पर लेख का उद्देश्य मलिक का इतिहास खंगालना नहीं है बल्कि इस पर चिंता व्यक्त करना मकसद है कि सत्तर साल से कांग्रेस अपनी सत्ता के लिए किस तरह दर्जनों ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए जनता की गाढ़ी कमाई का अरबों रुपया खर्च करती रही जो खुल्लमखुल्ला पाकिस्तान के समर्थक हैं , पाकिस्तान से फंड पाते रहे और कश्मीर को भारत से अलग करने की मुहीम के आतंकवादियों का सहयोग करते रहे | इन्हे कांग्रेस , कम्युनिस्टों ने अलगाववादी नाम दिया और कश्मीर की कथित समस्या के समाधान के लिए इनके साथ बैठके कीं | यह पता होने के बाद भी सेना पर पत्थवाजी करने वाले लड़कों को रूपये देने वाले और आतंकवादियों के घिर जाने पार अपने पेड गिरोह से सेना पर हमला करवा कर आतंकियों को निकलने का मौका देने वाले यही लोग है , कभी भी केंद्रीय सत्ता और राज्य सत्ता ने उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की थी | अलगाववादियों , कांग्रेस – फारुख अब्दुल्ला की साठगांठ का ही नतीजा कश्मीरी पंडितों का नरसंहार निकला | कश्मीर फाइल्स में जब इसे ब्यान किया गया तो कांग्रेस , कश्मीर के दल , वामपंथी समूह और अपने स्टूडियों में बुला कर यासीन मलिक को सर सर कहने वाले चैनलिया पत्रकार समेत पूरी लिवरल , सेकुलर तबका इसे झुठलाने का प्रयास करने लगे |
अपने गुनाहों को खुद क़ुबूल करने वाले यासीन मलिक की सजा ने साबित कर दिया कि सत्य कितना भी कुचला जाए , एक न एक दिन वह जीविंत होकर समूचे प्रकाश से गुनहगारों के सामने खड़ा हो जाता है | यासीन मलिक देशद्रोह का सच है और उसके प्रशंसक देशद्रोहियों के समर्थन का सच हैं | शायद ही दुनिया के किसी देश में देशद्रोहियों को पाला जाता है लेकिन भारत में यह सत्तर वर्षों से हो रहा है | पहले कांग्रेस ने कश्मीर को समस्या बनाया फिर उस समस्या को सुलझाने के लिए देश के पैसे पर उन्हें संरक्षण दिया जिनका एकमात्र उद्देश्य कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना है | यह सिलसिला चलता रहता | इसलिए और भी चलता रहता कि भाजपा ने भले ही चुनावी घोषणा पत्र में धारा 370 हटाने का वादा प्रमुखता से किया हो लेकिन अन्य दलों ने इस पर कभी चर्चा करने की जरूरत भी नहीं समझी | तुष्टीकरण की फसल को खादपानी देने के लिए राष्ट्रहितों की अपेक्षा पाकिस्तान के हितों को अधिक साधा गया | एक तरह से कश्मीर समेत पूरे देश में उसे आतंकी गतिविधियां चलाने की छूट जैसी दे दी थी | अफजल गुरू और कसाब के मामले में देश ने यह भी देखा कि सजा होते ही उसे बचाने के लिए कैसे एक लॉबी सक्रिय हो गयी थी और कैसे कसाब को बचाने के लिए रात में अदालत बैठा कर प्रयास इसी देश के लोगों ने किया था |
यह सब ऐसे ही चलता रहता यदि धारा 370 के विरोध का एजेंडा बनाने वाली भाजपा की मोदी वाली बहुमत की सरकार नहीं आ गयी होती | पांच अगस्त 2019 को भाजपा सरकार ने धारा 370 हटा दी |सभी अलगाववादियों तथा आतंकवाद से सहानुभूति रखने वाले घाटी के नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया अथवा जेल में डाल दिया गया | इससे पहले केंद्र सरकार ने 155 लोगों की सुरक्षा वापस ले ली जिनमें दर्जनों तो अलगाववादी थे जिनमें कइयों पर तो दो करोड़ रुपया सालाना खर्च किया जाता था | जेल में बंद अलगाववादियों के खिलाफ तेजी से क़ानून का चक्का घूमने लगा | पहली क़िस्त में यासीन मलिक के अलावा जिन लगभग पंद्रह अलगाववादियों पर आपराधिक षड्यंत्र , देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के साथ अन्य गैरकानूनी देश विरोधी गतिविधियों में आरोप तय किये गए उनमें शब्बीर शाह , मसर्रत आलम , पूर्व विधायक राशिद इंजीनियर , व्यवसायी जहूर अहमद शाह वाताली आदि शामिल है यह सब लश्कर ए तैयबा , हिज्बुल मुजाहिदीन , जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट , जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े हैं |
सत्तर सालों के बाद यह पहली बार हुआ जब केंद्र सरकार के फैसलों ने कश्मीर में आतंकवादियों के लिए जमीन छोटी कर दी | यह भी सात दशक में पहली बार हुआ है जब कश्मीर के लोग खुली हवा में सांस ले रहे हैं और उन्हें भी उन योजनाओं का लाभ मिलने लगा है जो धारा 370 हटने से पहले देश भर के नागरिकों को मिलता रहा है | यह संतोष की बात हो सकती है लेकिन जिन लोगों ने मलिक जैसे आतंकवादियों के मनोबल को बढ़ाया उनके खिलाफ कुछ न होना असंतोष पैदा करता है | यासीन मलिक से अधिक दोषी वे राजनेता और अरुंधति राय जैसे बुद्धिजीवी है जो देश के खिलाफ षड्यंत्र करने वालों को नायक की तरह पेश करते हैं | यह भी बिडंबना है कि वाम समूह भारत माता की जय बोलने वालों का विरोध करता है लेकिन पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वालों को यह अँधा समर्थन दिया जाता है | यह समूह आतंकवादियों से भी अधिक खतरनाक है | देश को हिंसा की आग में झोकने में इस समूह ने पिछले आठ सालों में कोई कसर नहीं छोड़ी | यह स्थिति चिंताजनक है | इसलिए यह आवश्यक है कि देश के अंदर आस्तीन के सांप की तरह छिपे देशद्रोहियों के समर्थकों पर शिकंजा नहीं कसा जायेगा तब तक यासीन मलिक़ ऐसे ही पैदा होते रहेंगे और देश की छाती पर मूंग दलते रहेंगे |