रमेश सर्राफ धमोरा
आज के आधुनिक युग में दुनिया भर के देशों में लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। यह एक डरावना सत्य है। एक ओर जहां लोगों के रहन-सहन, जीवन-यापन के स्तर में काफी बदलाव देखने को मिलता है। लोग पहले की अपेक्षा अधिक सुख सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। वही एक तबका ऐसा भी है जिनको खाने को भरपेट भोजन भी नहीं मिल रहा है। भोजन के अभाव में लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। 21वीं सदी में आधुनिक होते जा रहे लोगों के लिए भुखमरी से होने वाली मौत एक करारे तमाचे से कम नहीं है। जब तक दुनिया के हर इंसान को दोनों वक्त भरपेट भोजन नहीं मिलेगा तब तक सारी तरक्की बेमानी है।
खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार तथा अधिक पैदावार के लिए कृषि क्षेत्र में निरन्तर नये अनुसंधान के बावजूद भारत में भुखमरी के हालात बदतर होते जा रहे हैं। वैश्विक भूख सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में भारत 121 देशों कि सूची में 107 वें स्थान पर पहुंच गया है। 121 देशों की सूची में श्रीलंका 64 वें, म्यांमार 71 वें, नेपाल 81 वें, बांग्लादेश 84 वें, पाकिस्तान 99 वें, अफगानिस्तान 109 वें स्थान पर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के प्रकाशकों ने भारत में ‘भूख’ की स्थिति को गंभीर बताया है। हालांकि भारत ने वैश्विक भूख सूचकांक 2022 को खारिज किया है। भारत ने इस रिपोर्ट को लेकर कहा है कि यह देश की छवि खराब करने का प्रयास है। सरकार ने कहा कि भूख सूचकांक रिपोर्ट न केवल जमीनी हकीकत से अलग है। इस रिपोर्ट में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को जानबूझकर अनदेखा किया गया है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत के खराब प्रदर्शन की बात करें तो यह बीते कुछ सालों से लगातार जारी है। 2017 में इस सूचकांक में भारत का स्थान 100 वां था। साल 2018 के इंडेक्स में भारत 119 देशों की सूची में 103 वें स्थान पर रहा। वहीं 2019 में देश 117 देशों में 102 वें स्थान पर रहा था। वर्ष 2020 में भारत 94 वें स्थान पर था। 2021 में 116 देशों की सूची में 101 वें स्थान पर था। वैश्विक स्तर पर भूख के खिलाफ प्रगति हाल के वर्षों में काफी हद तक स्थिर रही है। 2014 में 19.1 की तुलना में 2022 में 18.2 के वैश्विक स्कोर के साथ केवल मामूली सुधार हुआ है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स स्कोर की गणना चार संकेतकों पर की जाती है। जिनमें अल्पपोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर शामिल हैं। वर्तमान ग्लोबल हंगर इंडेक्स अनुमानों के आधार पर पूरी दुनिया और विशेष रूप से 47 देश- 2030 तक लक्ष्य के निम्न स्तर को प्राप्त करने में विफल रहेंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि खाद्य सुरक्षा पर कई मोर्चों पर बिगड़ती स्थितियां, वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से संबंद्ध मौसम के बदलाव और कोविड -19 महामारी से जुड़ी आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां भुखमरी को बढ़ा रही हैं।
सहायता कार्यों से जुड़ी आयरलैंड की एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी के संगठन वेल्ट हंगर हिल्फ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट में भारत में भूख के स्तर को चिंताजनक बताया गया है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए डेटा संयुक्त राष्ट्र के अलावा यूनिसेफ, फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन समेत कई एजेंसियों से लिया गया हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लोग कोविड -19 और महामारी संबंधी प्रतिबंधों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
रिपोर्ट में भुखमरी की स्थिति के लिहाज से दुनिया के 121 देशों को खतरनाक, अत्याधिक खतरनाक और गंभीर जैसी तीन श्रेणियों में रखा गया है। इनमें भारत गंभीर की श्रेणी में है। रिपोर्ट के अनुसार भारत की इस स्थिति के कारण ही दक्षिण एशिया का प्रदर्शन हंगर इंडेक्स में और बिगड़ा है। भारत एक ऐसा देश जो अगले एक दशक में दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली देशो की सूची में शामिल हो सकता हैं। वहां से ऐसे आंकड़े सामने आना बेहद चिंतनीय माना जा रहा है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में विश्व भर में भूख के खिलाफ चल रहे अभियान की उपलब्धियों और नाकामियों को दर्शाया जाता है। भुखमरी को लेकर यह रिपोर्ट भारत सरकार की गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करती हैं।
श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार हमसे आर्थिक से लेकर तमाम तरह की मोटी मदद पाते हैं। मगर भुखमरी पर रोकथाम के मामले में हमारी हालत उनसे भी बदतर क्यों हो रही है? इस सवाल पर ये तर्क दिया जा सकता है कि श्रीलंका व नेपाल जैसे कम आबादी वाले देशों से भारत की तुलना नहीं की जा सकती। यह बात सही है लेकिन साथ ही इस पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत की आबादी श्रीलंका और नेपाल से जितनी अधिक है। भारत के पास क्षमता व संसाधन भी उतने ही अधिक हैं।खाद्य की बर्बादी की ये समस्या सिर्फ भारत में नही बल्कि पूरी दुनिया में है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष 1.3 अरब टन खाद्यान्न खराब होने के कारण फेंक दिया जाता है। यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ दुनिया में इतना खाद्यान्न बर्बाद होता है और दूसरी तरफ दुनिया के लगभग 85 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हैं। क्या यह अनाज इन लोगों की भूख मिटाने के काम नहीं आ सकता? पर व्यवस्था के अभाव में ये नहीं हो पा रहा है।
महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि हर वर्ष हमारे देश में खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन होने के बावजूद क्यों देश की लगभग एक चौथाई आबादी को भुखमरी से गुजरना पड़ता है? यहां मामला यह है कि हमारे यहां हर वर्ष अनाज का रिकार्ड उत्पादन तो होता है। पर उस अनाज का एक बड़ा हिस्सा लोगों तक पहुंचने की बजाय कुछ सरकारी गोदामों में तो कुछ इधर-उधर अव्यवस्थित ढंग से रखे-रखे सड़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक देश का लगभग 20 फीसद अनाज भण्डारण क्षमता के अभाव में बेकार हो जाता है। इसके अतिरिक्त जो अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है। उसका भी एक बड़ा हिस्सा समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने की बजाय बेकार पड़ा रह जाता है।
भारत में भुखमरी से निपटने के लिए अनेको योजनाएं बनी हैं लेकिन उनकी सही तरीके से पालना नहीं होती है। महंगाई और खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल ने गरीबों और कम आय वाले लोगों को असहाय बना दिया है। हमारे देश में सरकार द्वारा भुखमरी को लेकर कभी उतनी गंभीरता दिखाई ही नहीं गई जितनी कि होनी चाहिए। यहां सरकार द्वारा हमेशा भुखमरी से निपटने के लिए सस्ता अनाज देने सम्बन्धी योजनाओं पर ही विशेष बल दिया गया। कभी भी उस सस्ते अनाज की वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने को लेकर कुछ ठोस नहीं किया गया। आज सार्वजनिक वितरण प्रणाली हांफ रही है और मिड-डे मील जैसी आकर्षक परियोजनाएं भ्रष्टाचार और प्रक्रियात्मक विसंगतियों में डूबी हुयी हैं। लोगों को भुखमरी से निजात दिलाने की दिशा में सभी को सकारात्मक और प्रभावी कार्यवाही करनी होगी। ताकि आने वाले समय में किसी भी जिंदा इंसान की भुखमरी से मौत ना हो सके।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहतें हैं।)