जब भी सीनियर भारतीय हॉकी टीम में मौका मिलेगा, छाप छोड़ने को बेताब हूं: बांसुरी

Whenever I get a chance in the senior Indian hockey team, I am eager to make a mark: Bansuri

  • अब मेरा सपना भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक जिताना
  • मैं धनराज सर के कारण के कारण ही हॉकी खेल रही हूं

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : सूरत (गुजरात) से आने वाली रिजर्व गोलरक्षक बांसुरी सोलंकी को एफआईएच महिला हॉकी प्रो लीग 2024 -25 के यूरोपीय चरण में भारत की रिजर्व गोलरक्षक है। बांसुरी गोलरक्षक होने के नाते जानती हैं कि अपने किले की चौकसी के लिए धैर्य बेहद जरूरी है और इसी को जेहन में रखते वह जब भी भारतीय सीनियर महिला हॉकी टीम में मौका मिलेगा तो अपनी छाप छोड़ने को बेताब हैं। 24 बरस की बांसुरी सोलंकी बीते दो बरस से सीनियर भारतीय महिला हॉकी शिविर में हैं। बांसुरी भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए अपने मौके का इंतजार कर रही हैं बांसुरी कहती हैं, ‘ मैं हर अभ्यास सत्र को अपने डेब्यू की तरह देखती है। मुझे आज या कल जब अपने करियर का आगाज का मौका भले न मिले लेकिन जब भी मुझे भारतीय सीनियर हॉकी टीम के खेलने का मौका मिलेगा तो मैं महज खेलने भर के लिए अपनी छाप छोड़ने को बेताब हूं।’

बांसुरी अब तक खेलो इंडिया लीग की टीमें की कप्तानी कर चकी हें और गुजरात , उत्तर प्रदेश, साई और यनियन बैंक के लिए राष्ट्रीय स्तर के हॉकी टूर्नामेंट में खेल चुकी है। वह भारत की 2023 में हॉकी 5 एशिया कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली तथा 2024 में हॉकी 5 वर्ल्ड कप में रजत पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम की भी सदस्य रह चुकी हैं। बावजूद इसके वह भारतीय सीनियर महिला हॉकी टीम के लिए खेलने का इंतजार कर रही हैं। बांसुरी कहती हैं, ‘भारत की सीनियर भारतीय हॉकी टीम के लिए खेलना आसान नहीं हैं। आप यात्रा करते हैं और ट्रेनिंग करते हैं और कई बार आप हॉकी पिच पर नही उतर पाते हं। पर मेंने यह सीखा गोलकीपिग एक धैर्य की यात्रा है। हर गोलरक्षक को किसी मोड़ पर संघर्ष कर करना पड़ता है और यही मुझे संबल देता है।‘

अब दो बरस राष्ट्रीय हॉकी शिविर में बिता अपनी तकनीकी कौशल व हॉकी की बेहतर समझ के बाद बांसुरी कहती हें, ‘गोलरक्षण कोई गणित नहीं है न ही यह किसी फॉर्मूले के साथ चलता है और इसमें बेहद अनिश्चितता है कि किसी क्षण कुछ भी मुमकिन है। मैंने खुद को हर तरह की अनिश्चितता के तैयार करना अब सीख लिया है। मैं जब भी मुश्किल में होती हूं तो मैं भगवान कृष्ण को याद करती हूं। भगवान कृष्ण की सीख मुझे अपने पैर जमीन पर रखने और यह याद दिलाती है कि हर अच्छा या बुरा किसी बड़ी योजना का हिस्सा है।

जैसा कि भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो। मैं अपना इंजिनियर बनने का सपना अब पीछे छोड़ दिया और इसका मुझे कोई मलाल नहीं है। अब मेरा सपना भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक जिताना है और यह मेरा इकलौता लक्ष्य है और इसे पूरा करने के लिए बराबर जुटी रहूंगी।‘

बांसुरी उस गुजरात में पली बढ़ी जहां कि हॉकी कोई मजबूत संस्कृति नहीं ही न ही हॉकी खेलने के बहुत मौके हैं। बांसुरी के लिए यह तब बदल गया जब भारत के चार ओलंपिक खेलने वाले अपने जमाने के बेहतरीन स्ट्राइकर रहे धनराज पिल्लै ने भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) गुजरात के तकनीकी निदशेक हाई परफॉर्मेंस निदेशक की जिम्मेदारी संभाली। बांसुरी अतीत की स्मृतियों में खो जाती हैं और बताती हैं, ‘मैं धनराज सर के कारण के कारण ही हॉकी खेल रही हूं और उन्हीं के कारण इस मुकाम पर पहुंची हूं।धनराज सर ने मुझे हॉकी खेलने का पहला असल मंच दिया औार तभी से मेरे हॉकी से असल प्यार शुरू हुआ। मेरे सब जूनियर नैशनल में बढ़िया प्रदर्शन के चलते ही मेरा चयन दिल्ली की नैशनल हॉकी एकेडमी में हुआ। यह वाकई अभिभूत करने वाला था। मैं ऐसी जगह से आती हू जब हम लोक किटस के साथ खेलते थे और अचानक में राष्ट्रीय स्तर के सेटअप में आ गई और मै अब गोलरक्षक के लिए सभी उत्कृष्ट साजोसामान के साथ हॉकी खेल रही हूं। मैं अब देश की सर्वश्रेष्ठ युवा प्रतिभाओं के साथ छात्रावास साझा कर रही हूं।’

बांसुरी भारत के सविता और पीआर श्रीजेश जैसे महान ओलंपिक गोलरक्षकों को मार्गदर्शन करने का श्रेय देती हैं। वह कहती हैं, ‘सविता दी महज बेहतरीन गोलरक्षक ही नहीं बढ़िया इंसान भी है और मैं उनसे गोलरक्षण की तकनीक और अपने गोल में खड़े कर टीम को गाइड करने तक हर बात पूछती हूं। श्रीजेश भाई ने एक बार मुझे गोलरक्षक की पॉजशनिंग और जेहनी सोच के बाद गजब की सलाह दी। उनके खेल देख सीखने का मैं लुत्फ उठाती हूं।

बांसुरी के पिता इंजिनियर और मां गृहिणी हैं और एक छोटी बहन और छोटा भाई और उनका पूरा परिवार उनके सपनों को पूरी करने में उनके साथ खड़ा है और इसके लिए परिवार ने बहुत त्याग भी किए। बांसुरी बताती हैं, ‘मेरे माता पिता ने कभी भी किसी चीज के लिए मुझे मना नहीं किया और तब भी जब उन्हें इसके लिए घर का बजट बढ़ाना पड़ा। मुझे अभी भी याद है कि मुझे नए किकर्स की जरूरत थी और यह करीब 20 हजार रूपये के थे अर मेरे पिता ने बिना झिझक कहा, खरीद लो। उस समय मुझे उनके इस समर्थन का पूरा अहसास नहीं था। अब मैं यह समझ गईं हूं और यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है।’
17 बरस की उम्र में बांसुरी अपने परिवार और चिर परिचित माहौल को छोड़ कर अपना सपना पूरा करने के लिए दिल्ली आ गई। बांसुरी ने अपनी 12 वीं की पढ़ाई नैशनल इंस्टिटयूट आ ओपन स्कूलिंग से पूरी की। नैशनल हॉकी एकेडमी (एनएचए) में बांसुरी को जाने माने गोलकीपिंग कोच पूर्व ओलंपियन रोमियो जेम्स के मार्गदर्शन में बांसुरी के बतौर गोलरक्षक तकनीकी मजबूती की नींव पड़ी। बांसुरी बताती हैं, ‘ मैं खासतौर पर पूर्व नैशनल हॉकी एकेडमी में गोलकीपिंग कोच ओलंपियन रोमियो जेम्स का कोच का जिक्र करना चाहूंगी। रोमियो सर के कारण गोलकीपिंग सत्रों के कारण ही मैं अच्छी गाोलरक्षक बन पाई क्योंकि उन्होंने शुरू से बतौर गोलरक्षक हमारी बेसिक्स मजबूत कीं। “`सुरी सोलंकी की स्कूली बालिका के रूप में आठवी कक्षा में गोलरक्षक के रूप में हॉकी खेलनी शुरू की और उनका भारतीय महिला हॉकी की उदीयमान खिलाड़ी के रूप में उदय उनके संकल्प और जीवट की कहानी बयां करता है। बांसुरी ने कभी एयरोनॉटिकल इंजिनियर बनने का सपना संजोया था लेकिन जब उनके स्कूली स्पोटर्स टीचर को अपनी अडर 14 टीम के लिए एक स्कूल टीचर की जरूरत थी तो तब तब उनका हॉकी सफर शुरू हुआ। अपनी लंबाई और कदकाठी के कारण बांसुरी गोलरक्षक के रूप में स्वाभाविक पहली पंसद थी। बांसुरी बताती हैं, ‘ मेरी कभी भी गोलरक्षक बनने की कोई योजना नहीं थी। मैं गोलरक्षक नहीं बनना चाहती थी लेकिन बस एक फैसले ने मेरी जिंदगी बदल दी।’