
तनवीर जाफ़री
भीष्म साहनी द्वारा लिखित लोकप्रिय उपन्यास ‘तमस’ का प्रकाशन 1973 में हुआ था। साहित्य जगत में यह उपन्यास बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। इसे 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाज़ा गया। प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता गोविंद निहलानी ने 1986 में इसी तमस उपन्यास पर आधारित एक दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फ़िल्म भी बनाई। इस में भारत पाक विभाजन के समय की कई दर्दनाक घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसी में यह भी दिखाया गया था कि किस तरह साम्प्रदायिक दंगे भड़काने के लिये कोई मुसलमान ही किसी मस्जिद में सूअर का मांस फेंक देता है और कोई हिन्दू मंदिरों में गौमांस फेंककर साम्प्रदायिक तनाव के वातावरण में पेट्रोल छिड़कने जैसे काम करता है। गोया यह एक पुरानी व सधी हुई रणनीति है जोकि विघटनकारी मानसिकता रखने वाले राजनीतिज्ञों द्वारा साम्प्रदायिक दंगे भड़काने के लिये और उसके बाद उसका राजनैतिक लाभ उठाने के लिये अमल में लाई जाती है।
तो क्या 1947 जैसी साम्प्रदायिक मानसिकता रखने वाले षड़यंत्रकारी राजनीतिज्ञों द्वारा देश की स्वतंत्रता के लगभग आठ दशक बाद आज भी उसी तरह का घिनौना खेल खेला जा रहा है ? क्या आज भी देश के विभिन्न इलाक़ों में उसी तरह की शक्तियां सक्रिय हैं जो वेश बदलकर या लुका छुपी कर साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने व दंगे भड़काने में अहम किरदार निभा रही हैं। गत कई वर्षों से इसतरह की ख़बरों की सोशल मीडिया व अख़बारों में बाढ़ सी आई हुई है। जबकि इतने गंभीर विषय पर देश का स्वयंभू मुख्यधारा का मीडिया ख़ामोश रहता है। मिसाल के तौर पर हमारे देश में गौकशी या गौमांस का मुद्दा बेहद संवेदनशील मुद्दा है। उत्तर प्रदेश व अन्य कई राज्यों में गौ तस्करी या गोहत्या के मामाले सामने आये। कई मामलों में आरोपियों को पीट पीट कर मार डाला गया। कई का पुलिस एनकाउंटर किया गया। ज़ाहिर है ऐसे मामलों में मुसलमान ही प्रायः निशाना बनते रहे हैं।
परन्तु जब पुलिस उत्तर प्रदेश के बिजनौर में राहुल, सचिन और बृजपाल को कार में दो क्विंटल गोमांस के साथ गिरफ़्तार करती है तो इसे किस नज़रिये से देखा जाना चाहिये ? जब आगरा और मुरादाबाद में भी पुलिस गोहत्या के मामले में हिंदूवादी कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करे तो क्या कहा जाये ? इसी तरह इसी वर्ष गत 12 मार्च को ग़ाज़ियाबाद के सिहानी गेट थाना क्षेत्र में कुछ लोगों ने गौशाला में मांस रखकर उसे गौमांस बताने और धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश की। पुलिस को पता चला कि यह साज़िश पास की ही एक दूसरी गौशाला की संचालक छाया शर्मा और उसके साथियों ने रची थी। उनका मक़सद श्रीराम गौशाला पर क़ब्ज़ा जमाना और धार्मिक माहौल ख़राब करना था। छाया शर्मा के साथियों ने स्वयं बाज़ार से मांस ख़रीदकर गौशाला में रखा और फिर गौरक्षकों को सूचना देकर साम्प्रदायिकता भड़काने की कोशिश की। पुलिस ने इस मामले में योगेश चौधरी और शिवम को गिरफ़्तार किया था जिन्होंने बाद में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने ही हिंडन विहार की किसी मांस की दुकान से मांस ख़रीदा और गौशाला में मांस रख कर ख़ुद ही फ़र्ज़ी नाम से गौरक्षकों को फ़ोन कर गौशाला में मांस होने की सूचना दी। बाद में इन्होंने अपना फ़ोन भी बंद कर दिया ताकि किसी को उन पर संदेह न हो। पूरे देश में अब तक ऐसे सैकड़ों मामले उजागर हो चुके हैं जिससे पता चलता है कि बड़े षड़यंत्र के तहत धर्म विशेष के लोगों के प्रति नफ़रत व ग़ुस्सा पैदा करने के लिये ऐसे कुकृत्य किये जाते हैं।
इसी तरह कई मामले पाकिस्तानी झंडों व पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारों को लेकर सामने आ चुके। अभी पिछले ही दिनों लुधियाना के थाना हैबोवाल क्षेत्र स्थित सिद्वपीठ महाबली संकटमोटन श्री हनुमान मंदिर के मुख्य द्वार पर मंगलवार को पाकिस्तान का झंडा लगा पाया गया। बताया जाता है कि यहाँ हर मंगलवार को 10 से 15 हज़ार तक श्रद्वालु मंदिर में दर्शनार्थ आते हैं। इसी मंदिर के चेयरमैन ऋषि जैन ने आरोपी की पहचान विक्रम आनंद व उसके अज्ञात साथी के रुप में की है। यह सब मंदिर में लगे सीसीटीवी कैमरों में देखा गया। पहलगाम हादसे के बाद देश का माहौल और भी ख़राब करने के उद्देश्य से पाकिस्तान का झंडा लगाया गया था। पुलिस ने इस मामले में केस भी दर्ज किया है। बिल्कुल इसी तरह की घटना पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना ज़िले के अकाईपुर रेलवे स्टेशन पर पिछले दिनों घटी। यहाँ रेलवे स्टेशन की दीवार पर कुछ लोगों ने पाकिस्तानी झंडा लगाया और ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ जैसे भारत विरोधी नारे लिखे। निश्चित रूप से पहलगाम हमले के बाद अंजाम दी गयी इस हरकत का मक़सद भी क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव फैलाना व दंगे भड़काना ही था। परन्तु पुलिस ने इन मामले में जिन दो लोगों को गिरफ़्तार किया है वे ‘सनातनी एकता मंच’ नामक संगठन के सदस्य निकले जिनके नाम चंदन मलाकार और प्रज्ञाजीत मंडल हैं। यह दोनों आरोपी एक राजनैतिक दल से भी जुड़े बताये गए हैं।
देश में इससे मिलती जुलती अनेक घटनायें यहाँ के साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगड़ने के मक़सद से होती रही हैं। वेश बदलकर इस तरह की हरकतों को अंजाम देना निश्चित रूप से किसी साधारण व्यक्ति का काम तो हरगिज़ नहीं हो सकता। निःसंदेह इसतरह की साज़िशों के पीछे उसी मानसिकता के लोग हैं जिन्होंने पहलगाम नरसंहार अंजाम दिया और पर्यटकों को उनका धर्म पूछ कर मारा। जो सन्देश वह आतंकी देना चाहते थे कि भारत में साम्प्रदायिक माहौल ख़राब हो और हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे की जान के दुश्मन बन जायें। बिल्कुल वही मक़सद इन ‘घरेलू आतंकियों’ का भी है। हो सकता है ऐसे कुछ ही मामलों का भंडाफोड़ हो पाता हो और कई जगहों पर यह अपने नफ़रती एजेंडे को फैलाने व हिंसा भड़काने में कामयाब भी हो जाते हों। पंजाब से लेकर बंगाल तक और वह भी पहलगाम हमले के बाद देश में उपजे तनावपूर्ण माहौल के बीच इसतरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाना, यह कोई साधारण घटना नहीं है। इसके पीछे बहुत बड़ा षड़यंत्र है। और वही ताक़तें इसके पीछे हैं जिन्हें इसतरह के माहौल से राजनैतिक लाभ हासिल होता है। लिहाज़ा इस बात का पता लगाना बहुत ज़रूरी है कि वेश बदलकर या लुकछुप कर देश में साम्प्रदायिकता की आग लगाने वाले ये दुष्ट लोग हैं कौन ,कहाँ से आते हैं और इन्हें भेजता कौन है।