सोनम लववंशी
कोरोना महामारी ने दुनिया को कई तरह से प्रभावित किया है। घर, परिवार, समाज, नौकरी से लगाकर आपसी संबंध भी कोरोना की भेंट चढ़े! इस एक कहर से पूरी दुनिया सामाजिक और आर्थिक रूप से संक्रमित हुई। लेकिन, इसका सबसे ज्यादा असर किसी पर हुआ, तो वह हैं महिलाएं। इतिहास गवाह है कि जब भी दुनिया में संघर्ष और संकट का दौर आया, तब-तब महिलाओं ने ही इसकी क़ीमत चुकाई। कोरोना महामारी में भी यही स्थिति देखी गई। कोविड महामारी के पहले साल ही करीब 14 लाख महिलाओं को अनचाहे गर्भ का सामना करना पड़ा। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा हुआ कि दुनिया में हर साल 12.1 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को अनचाहे गर्भधारण का सामना करना पड़ता है। यहां अनचाहे गर्भधारण से आशय है कि महिलाओं को उनकी मर्जी के बिना गर्भवती कर दिया जाना। कई बार जबरदस्ती, कई बार वे मज़बूरी में शिकार बन जाती हैं तो कई बार युद्धकाल की भेंट चढ़ना पड़ता है। ये सदियों से होता आ रहा है और समाज के आधुनिक होने के बाद भी इसमें कोई अंतर नहीं आया।
‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन’ की वार्षिक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने बताया कि 60 प्रतिशत से ज्यादा अनचाहे गर्भ का परिणाम गर्भपात के रूप में सामने आता है। इनमें से 45 प्रतिशत गर्भपात असुरक्षित तरीके से होते है। इसका सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि 13 प्रतिशत महिलाओं की असमय मौत तक हो जाती है। लेकिन, इस पर कभी कोई चर्चा तक नहीं होती। वैसे भी हमारा समाज महिलाओं की समस्याओं पर अक्सर आंखे मूंद लेता है। ऐसे में कहने को तो महिलाएं आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, पर जब उनकी समस्याओं की बात होती है, तो सारा समाज मूकदर्शक बनकर तमाशा ज्यादा देखता है। यह तस्वीर सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की है।
आज भी हमारे समाज में महिलाओं के पास अपनी इच्छा से गर्भवती होने या न होने का कोई विकल्प नहीं है। वे इतने सामाजिक और आर्थिक बंधनों में जकड़ी हैं कि इस दिशा में वे सोच ही नहीं पाती। इस बात के पक्ष में कभी कोई महिला आंदोलन भी खड़ा नहीं हुआ! जिस वजह से संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक नतालिया कैनेम ने इस रिपोर्ट को समाज के लिए बड़ा खतरा बताया। उनका कहना है कि अनचाहे गर्भधारण के आंकड़े महिलाओं और लड़कियों के बुनियादी मानवाधिकार को बनाएं रखने में दुनिया की विफलता को दर्शाते हैं। इतना ही नहीं ये आंकड़ा कहीं न कहीं 2030 तक सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने में भी बाधा उत्पन्न करेगा। जबकि, बीते सालों में वैश्विक महामारी के साथ युद्व और संघर्ष की स्थिति भी बनी। इससे भी अनचाहे गर्भ की आशंका ज्यादा बढ़ गई! क्योंकि, ऐसी परिस्थिति में महिलाओं तक गर्भनिरोधक उपायों की पहुंच सुलभ नहीं हो पाती है और इस दौरान यौन हिंसा की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है।
बीते दिनों अफगानिस्तान में युद्ध की वजह से स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थी। जिसके बाद कहा गया कि साल 2025 तक करीब 48 लाख महिलाओं को अनचाहे गर्भ का सामना करना पड़ सकता है। यही स्थिति रूस-यूक्रेन युद्ध में भी बनती दिखाई दे रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि अनचाहे गर्भ के लिए क्या महिलाएं ही जिम्मेदार हैं! क्या पुरुषों की कोई जवाबदेही नहीं बनती। वैसे हमारे पुरुष प्रधान समाज में अनचाहे गर्भ के लिए महिलाओं को ही क्यों जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। अगर कोई लड़की गर्भवती हो जाए, तो समाज उसे हीनभावना से देखता है। जबकि, कोई उस लड़के को गलत नहीं समझता, जो इस कृत्य में सबसे बड़ा भागीदार होता है। यहां तक कि समाज और परिवार वाले भी लड़के के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह दोयम दर्जे की मानसिकता कब तक पल्लवित होती रहेगी! अनचाहे गर्भधारण की वज़ह से अनगिनत समस्याओं का सामना महिलाएं तो करती ही हैं। इसके अलावा अगर उन्हें ही इसके लिए कसूरवार हर बार ठहराया जाता रहा तो यह कतई उचित नहीं कहा जा सकता।
अनचाहे गर्भ को लेकर ‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड’ 2022 की रिपार्ट में यह बात भी निकलकर सामने आई कि जो महिलाएं और लड़कियां बिना अपनी इच्छा के गर्भवती हो जाती हैं, उनमें से 60 प्रतिशत गर्भपात करा लेती है। जिसका सीधा असर महिलाओं के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। कई रिपार्ट यह भी बताती हैं कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को गम्भीरता से नहीं लेती। खासकर मासिक धर्म व यौन समस्याओं को नजर अंदाज करती हैं। इससे कई तरह की तकलीफों का भी सामना करना पड़ता है। वहीं हमारे देश में देह-व्यापार और यौन शोषण के कड़े कानून है। वाबजूद इसके यौन हिंसा में कहीं कोई कमी दिखाई नहीं देती! इस वजह से महिलाओं को मानसिक अवसाद और अनचाहे गर्भ का सामना करना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ो की माने तो देश दुनिया में 64 देशों में 23 प्रतिशत महिलाएं यौन संबंध बनाने के लिए अपने साथी को इंकार तक नहीं कर पाती! जबकि, 24 प्रतिशत महिलाएं अपने स्वास्थ्य देखभाल जैसे जरुरी विषय पर निर्णय तक नहीं लेती। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि 21वीं सदी में महिलाओं की स्थिति क्या है! अभी हाल ही में मेराइटल रेप को लेकर हमारे देश में चर्चा का दौर जारी था। जिसकी गूंज संसद से लेकर सड़क तक सुनाई दी। यहां तक कि इस मुद्दे को लेकर न्यायालय में भी बहस का दौर जारी रहा! लेकिन, हमारा समाज इस मुद्दे पर बंटा हुआ नज़र आया। बात अगर महिलाओं की करें तो हमारे समाज में आज भी महिलाएं सेक्स जैसे गम्भीर मुद्दे पर चर्चा तक नहीं कर पाती और न इसके लिए अपने जीवनसाथी को मना कर पाती है।
वर्तमान दौर में हमारे समाज में महिलाओं को यौन हिंसा, लैंगिक असमानता व गरीबी की वजह से भी अनचाहे गर्भ का सामना करना पड़ता है। बात अनचाहे गर्भधारण की करें तो इसकी सबसे बड़ी वजह जानकारी का अभाव होना है। 21वीं सदी में भी महिलाएं को यौन सम्बधों की सही जानकारी नहीं होना, आधुनिक समाज के लिए दुखदाई है। भले ही कहने को हमारे देश में यौन शिक्षा का प्रचलन बढ़ रहा है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इसके लिए हमें अभी लम्बा सफर तय करना होगा। रोटी, कपड़ा और मकान की तरह यौन संसर्ग भी मानव की एक अहम जरूरत हैं। लेकिन, इस ज़रूरत की आड़ में किसी के जीवन से ही खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। यह भी एक पहलू है, जिस तरफ महिलाओं के संदर्भ में ध्यान देने की जरुरत है।