
विनोद कुमार सिंह
देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों बंसत की बहती ब्यार के संग सता के सिंघासन पर कौन,दिल्ली का नया मुख्य मंत्री कौन होगा,इस पर चर्चा,चिन्तन व चिंताए दिखने लगी है। जैसा कि आप को मालुम है कि दिल्ली विधान सभा चुनाव सम्पन्न व परिणाम भी हफ्ते बीत गए है। दिल्ली की जनता अपने नए मुख्य मंत्री का स्वागत करने का तत्पर है। लेकिन 48 सीट पर विजयश्री का सेहरा पहनें के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली की जनता को उनका मुख्य मंत्री देने में लाचार दिख रही है।8 फरवरी को दिल्ली विधान सभा के नतीजे आए।हालॉकि मुख्य मंत्री के नाम का ऐलान कभी भी हो जाएगा।नए सीएम के नाम की घोषणा में देरी की वजह प्रधानमंत्री मोदी का देश से बाहर होना था।ये बातें हम सब जानते हैं।सी ०एम० पद के दावेदारों के रूप में कई नाम पर कयास लगाये जा रहे है।रोहिणी से विधायक विजेंद्र गुप्ता दिल्ली के नए मुख्यहो सकते हैं।श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के स्टूडेंट रहे विजेंद्र गुप्ता धीर गंभीर इंसान हैं।दिल्ली के मसलों को खूब जानते हैं।तीन बार नगर निगम पार्षद और चौथी बार विधायक बने हैं।वही जनकपुरी से विधायक आशीष सूद के नाम की भी चर्चा है।डेसू के अध्यक्ष रहे हैं।
कुछ लोगों के अनुसार प्रवेश वर्मा सी एम बनाए जायेंग या उन्हें कैबिनेट में शामिल किए जा सकते हैं।दिल्ली की कैबिनेट में राजौरी के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा को भी लिया जा सकता है।जंगपुरा से विधायक मारवाह या गांधी नगर वाले लवली के कैबिनेट में जगह बनाने की उम्मीद कम है।इसके पीछे उनका मूलतः कांग्रेसी होना है।जीके से विधायिका शिखा राय को भी कैबिनेट में जगह मिल सकती है। वो भी पंजाबी हैं।कैलाश गहलोत को नई कैबिनेट में कोई खास विभाग मिलना निश्चित है।वो केजरीवाल सरकार में ट्रांसपोर्ट मंत्री थे।समझदार नेता हैं।जाट समाज से आते हैं।अगर मुस्तफाबाद से विधायक बने मोहन सिंह बिष्ट को विधान सभा का स्पीकर बनाया जा सकता है।वो भी लगातार विधायक बन रहे हैं।खैर ! वही राजनीति के पांडितयों के मध्य इन दोनों अरविन्द केजरीवाल व उनकी पार्टी आप की हार पर गहन अध्ययन व विवेचन किया जा रहा है।मै आप को बता दूँ कि भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अन्ना हजारे के आन्दोलन का अबलम्बन ले कर जिस तरह आम आदमी के आशा व उम्मींद की नई किरण के साथ अरविन्द केजरीवाल ना केवल आया बल्कि अपने पार्टी का भी आम आदमी पार्टी रखा।जिस पर दिल्ली की भोली जनता ने दिल्ली सरकार के सता ना केवल तीन बारे के शीला दीक्षित को बाहर निकाल फेक कर अरविन्द केजरीवाल की सता पर आसीन किया।केजरीवाल के तीन बार मुख्यमंत्री बने रहें।भाग्य की विडम्बना देखिए जिस भष्ट्राचार , अपराध मुक्त विरोध में बुलन्द आवाज झण्डा चलते है।अंत स्वयं वे व उनकी आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता जेल चले गए,बाद में जेल से जमानत पर है।जहाँ तक इस बार दिल्ली विधान सभा का प्रशन है।तो मै स्पष्ट कर दूँ कि कुछ महीने पुर्व से ही केजरीवाल व उनकी पार्टी के खिलाफ माहौल चल रहा था।चुनाव आते आते ‘कट्टर ईमानदार’ केजरीवाल के कल तक जो कट्टर समर्थक थे और इसके जबरदस्त विरोधी हो गये थे।ठीक वैसे ही जैसे पाँच वर्ष पूर्व पहले से ही दबी जुबान में भी डंका केजरीवाल का ही बोल रहा था।दिल्ली की जनता जर्नादन का संदेश साफ साफ था कि केजरीवाल जी तुम्हारी‘गुमराहगीरी अब नहीं चलेगी।तुम अपने झूठ के सहारे एक बार नही बल्कि दो दो बार सता पा सकते हैं लेकिन बार बार नहीं,दिल्ली की जनता अब समझ चुकी थी कि अरविन्द केजरीवाल अपने विरोधी भाजपा व काँग्रेस पर जो आरोपों के सहारे तस्वीर बना रहे हैं।उनसे उनकी व आप की हार की लहर इन तस्वीरों में झलक रही थी।अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी की हार पर निश्चित तौर पर भाजपाई में खुशी है कि भारतीय राजनीति में केजरीवाल की मौकापरस्त व उनकी मूल्यविहीन राजनीति की हार है। उनका कहना है कि जिस अन्ना आंदोलन से लेकर अरविंद केजरीवाल ने अपना राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। सर्वविदित रहे कि अन्ना आंदोलन में सबसे पहले मंच पर भारत माता की बड़ी तस्वीर लगाई गई थी।लेकिन केजरीवाल और कंपनी ने जब देखा कि उससे इतना ज्यादा आकर्षण नहीं आ रहा है तो तुरंत उन्होंने अन्ना हजारे के पीछे महात्मा गांधी का बड़ा चित्र लगा दिया।
परिणान स्वरूप अरविंद केजरीवाल रातों-रात त्याग तपस्या की मूर्ति व ईमानदारी का चोला ओढ़कर सबसे बड़े गाँधीवादी बन गए।कई बार उन्होंने राजघाट पर बापू की समाधि पर मौन व्रत और शांतिपूर्ण धरना भी दिया।लेकिन पहला मौका पाते ही उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कार्यालय और फिर पंजाब में बनी सरकार के मुख्यमंत्री के कार्यालय से भी महात्मा धी की तस्वीर गायब कर दी।केजरीवाल की मौका परस्ती का यह बहुत बड़ा उदाहरण है। यहाँ पर मै स्पष्ट कर दूँ कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएसएस)हमेशा से गाँधी की विचारधारा का विरोधी रहा है लेकिन आरएसएस की पार्टी भाजपा के नेताओं ने भी कभी महात्मा गांधी की तस्वीर हटाने की हिम्मत नहीं की।जहाँ तक दिल्ली के मुसलमान के प्रशन है,तो दिल्ली के मुस्लीम मतदाताओं ने तीन चुनाव से आम आदमी पार्टी को वोट दे रहा है लेकिन शाहीनबाग में महिलाओं के धरने प्रदर्शन में मुख्यमंत्री केजरीवाल या उनका कोई व्यक्ति नहीं गया।दिल्ली के दंगों में उनकी भूमिका मुस्लिम विरोधी रही।सी ए ए(CAA)व एन आर सी(NRC)के मुद्दे पर वे खामोश रहे।भारत के इतिहास में जब पहली बार कश्मीर के रूप में किसी राज्य का पूर्ण राज्य का दर्जा छीनकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया तो केजरीवाल ने सबसे पहले उसका स्वागत किया।
और राजनीति में सत्यता और ईमानदारी की बात करने वाले केजरीवाल अंततः शराब घोटाले में फंस गए।मैं नहीं जानता कि वाकई यह घोटाला हुआ या नहीं,इसमें केजरीवाल या उनके लोगों ने पैसा खाया या नहीं,लेकिन इतना तो सब लोग जानते हैं कि उन्होंने दिल्ली के घर-घर में शराब आसानी से उपलब्ध कराने की नीति बनाई थी।कम से कम यह नीति उस नैतिकता के बिल्कुल उलट है,जिसका स्वांग केजरीवाल भरा करते थे।उनके आलीशान सरकारी बंगले की नुमाइश भी उनके सादगी के अभिनय पर भारी पड़ी।जब इन सब बातों को एक साथ मिलकर देखते हैं तो सोचना पड़ता है कि अगरभाजपा की जगह केजरीवाल जीत जाते तो आखिर भारत के संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कोई फायदा होने वाला तो नहीं था।
दबी जुबान से राजनीति पण्डितओं का मानना है कि अरविन्द केजरीवाल व आम आदमी पार्टी दिल्ली चुनाव में आप को अंहकार ले डुबी जहाँ तक मत के प्रतिशत का सवाल है तो दिल्ली कांग्रेस पार्टी ने अच्छा ही किया जो अपने दम पर चुनाव लड़ा 6.4 % से अधिक वोट पाए वहीकेजरीवाल की पार्टी करीब 2.4 प्रतिशत वोट से भाजपा से हार गई। उनका मानना है कि दिल्ली,पंजाब, गोवा,गुजरात,हरियाणा व उत्तराखंड में केजरीवाल व उनकी पार्टी ने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाया।इतना नुकसान खाने के बाद कम से कम कांग्रेस की यह नैतिक या रणनीतिक जिम्मेदारी नहीं थी कि वह भाजपा की बी टीम केजरीवाल की पालकी अपने कंधे पर ढोएते हुए काँग्रेस की पराजय को अपने गले मे हार बनाकर घुमते रहें।