
अशोक भाटिया
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद देश में उपराष्ट्रपति पद के लिए मध्यावधि चुनाव की स्थिति आ गई है। संविधान में उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों के निर्वहन के लिए कार्यवाहक का प्रावधान नहीं है इसलिए राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह उनकी अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता करेंगे। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सोमवार रात दिए गए इस्तीफे से देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद खाली हो गया है। इसका मतलब है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई है। वे भारत के इतिहास में कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देने वाले केवल तीसरे उपराष्ट्रपति हैं।इससे पहले वीवी गिरि और आर वेंकटरमन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा दिया था, जिसके बाद क्रमश: गोपाल स्वरूप पाठक और शंकर दयाल शर्मा उपराष्ट्रपति बने थे। भारतीय संविधान में कार्यवाहक उपराष्ट्रपति का प्रविधान नहीं है। हालांकि, उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं ।
राष्ट्रपति पद के लिए, संविधान के अनुसार रिक्त पद को छह महीने के भीतर भरना आवश्यक है लेकिन उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसी कोई निश्चित समय-सीमा नहीं है। केवल यह आवश्यक है कि पद रिक्त होने के बाद यथाशीघ्र चुनाव कराए जाएं। चुनाव आयोग कार्यक्रम की घोषणा करेगा। यह चुनाव राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत होता है। परंपरा के अनुसार, संसद के किसी भी सदन के महासचिव को बारी-बारी से निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया जाता है।ये चुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि जगदीप धनखड़ ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है, लेकिन नया उपराष्ट्रपति पदभार ग्रहण करने की तिथि से पूरे पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करेगा न कि केवल धनखड़ का शेष कार्यकाल।
उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों और मनोनीत सदस्यों से मिलकर बने एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति चुनाव के विपरीत, इसमें राज्य विधानसभाएं भाग नहीं लेतीं। यह चुनाव संसद भवन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार गुप्त मतदान द्वारा सिंगल ट्रांसफरेबल वोट के माध्यम से किया जाता है। प्रत्येक सांसद उम्मीदवारों को वरीयता क्रम के हिसाब से वोट डालता है।निर्वाचित होने के लिए, किसी उम्मीदवार को न्यूनतम आवश्यक मतों की संख्या प्राप्त करनी होती है, जिसे कोटा कहा जाता है। इसकी गणना कुल वैध मतों की संख्या को दो से विभाजित करके और एक जोड़कर की जाती है। यदि पहले चरण में कोई भी उम्मीदवार कोटा पार नहीं करता है, तो सबसे कम प्रथम वरीयता वाले मत पाने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है, और उनके मत द्वितीय वरीयता के आधार पर शेष उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि एक उम्मीदवार कोटा पार नहीं कर लेता। उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए, कम से कम 35 वर्ष का होना चाहिए, राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के योग्य होना चाहिए और किसी भी संसदीय क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए। उन्हें राष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री जैसे पदों को छोड़कर, केंद्र या राज्य सरकारों के अधीन किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।
जगदीप धनखड़ का अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज होने के बाद अब इस अहम पद के लिए नए नामों की चर्चा शुरू हो गई है और कई बड़े लोगों के नाम पहले ही सामने आ चुके हैं। अब इसमें एक और चौंकाने वाला नाम जुड़ गया है – केंद्रीय राज्य मंत्री और जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर। बुधवार शाम को उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की, जिसके बाद अटकलें और तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि एनडीए रामनाथ ठाकुर को इस पद पर बैठाकर कई सियासी संदेश देना चाहती है, खासतौर पर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले।
ज्ञात हो कि रामनाथ ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं। वह राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं, और कई अहम पदों पर रह चुके हैं। वे लालू यादव की पहली कैबिनेट में गन्ना मंत्री रह चुके हैं और बाद में 2005 से 2010 तक नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। इस समय वे मोदी सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री हैं। उनके पिता को हाल ही में भारत रत्न से नवाजा गया है, जिससे उनके परिवार का राजनीतिक कद और बढ़ गया है। उपराष्ट्रपति पद की रेस में उनका नाम आना बिहार की राजनीति को एक नई दिशा दे सकता है।
एनडीए सरकार को इस समय जेडीयू और टीडीपी जैसे सहयोगी दलों का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में यदि जेडीयू के किसी नेता को उपराष्ट्रपति बनाया जाता है, तो यह न सिर्फ गठबंधन को मज़बूती देगा बल्कि बिहार में एनडीए को चुनाव से पहले बड़ा फायदा भी मिलेगा। नीतीश कुमार खुद इस पद की रेस से बाहर दिख रहे हैं क्योंकि वे शायद ही अभी मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहें। ऐसे में रामनाथ ठाकुर का नाम NDA के लिए एक परफेक्ट बैलेंस हो सकता है – नीतीश खुश, गठबंधन मजबूत और बिहार में बड़ा राजनीतिक संदेश।
रामनाथ ठाकुर के अलावा भी कई और नाम संभावित उपराष्ट्रपति की रेस में हैं। इनमें हरिवंश नारायण सिंह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा जैसे नाम सामने आए हैं। हालांकि, बीजेपी की रणनीति को देखते हुए किसी चौंकाने वाले नाम की घोषणा भी मुमकिन है। मोदी सरकार अक्सर आखिरी वक्त में ऐसा नाम सामने लाती है जिसकी उम्मीद कम ही होती है। अब सबकी निगाहें बीजेपी की ओर हैं कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा – क्या रामनाथ ठाकुर पर दांव चलेगी बीजेपी?
गौरतलब है कि हैरान बीजेपी के अंदर भी कुछ अलग चर्चाओं का दौर जारी है। अलग-अलग खेमे में अलग-अलग अटकलें लगाई जा रही हैं। मसलन, जब एनबीटी ऑनलाइन ने दिल्ली में बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से बात की तो उन्होंने नाम की गोपनीयता की शर्त पर कहा कि ‘हो सकता है कि यह चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव तक टल जाए। क्योंकि, इसे करवाने की इतनी जल्दी नहीं लग रही।’ उन्होंने संभावना जताई कि ‘अगर बिहार चुनाव तक यह टल जाता है तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के भावी प्रत्याशी हो सकते हैं।’ लेकिन, उन्होंने सबसे ज्यादा जोर राज्यसभा के उपसभापति हरवंश के नाम पर दिया। उनका कहना है कि ‘नीतीश की जेडीयू अबकी बार जो एनडीए में आई है तो उसमें हरिवंश ही बड़े किरदार रहे हैं।’ इसके साथ ही उन्होंने एक तरह से दावा किया कि जो भी होगा, वह ‘बिहार का हो सकता है।’
इधर कांग्रेस के नेता उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से संयुक्त उम्मीदवार उतारने के संकेत दे रहे हैं। इसे सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव के नए दौर का संकेत माना जा रहा है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया से कहा कि यह एक चुनाव की प्रक्रिया नहीं, वैचारिक लड़ाई है। हम सरकार के कदम का इंतजार कर रहे हैं और इंडिया ब्लॉक ही नहीं, इससे बाहर के विपक्षी दलों से भी बातचीत कर रहे हैं। कांग्रेस सूत्रों का यह भी दावा है कि उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ का इस्तीफा सामान्य नहीं है।कांग्रेस सूत्रों का यह भी कहना है कि न फेयरवेल हुआ, ना ही फेयरवेल स्पीच। बस अचानक एग्जिट हो गई। राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जगदीप धनखड़ से शिष्टाचार वार्ता की। कांग्रेस का मानना है कि राज्यसभा में विपक्ष की रणनीति से जो राजनीतिक तूफान आया, उसमें फंसकर जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया है।विपक्ष के सूत्रों की मानें तो राज्यसभा में दो जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए गए थे। एक जस्टिस यशवंत वर्मा और दूसरा जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ। जगदीप धनखड़ ने इन्हें स्वीकार करने से बचने के लिए इस्तीफा दिया होगा। सोमवार को जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से पहले क्या घटनाक्रम हुए, विपक्षी नेताओं ने इसे लेकर भी जानकारी दी है।
कांग्रेस के संसदीय रणनीति समूह के एक वरिष्ठ सदस्य ने मीडिया को बताया कि उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवारों पर इंडिया ब्लॉक के नेताओं के बीच अभी तक कोई औपचारिक या अनौपचारिक चर्चा तो नहीं हुई है, लेकिन यह समझ है कि गठबंधन एनडीए जिसे भी चुनेगा, उसके खिलाफ चुनाव लड़ेगा। कांग्रेस के इस दिग्गज ने कहा, (इंडिया गठबंधन से उम्मीदवार चुनने पर) चर्चा जल्द ही होगी और हम निश्चित रूप से अन्य विपक्षी दलों से संपर्क करेंगे, जो औपचारिक रूप से इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं हैं, जिनमें हाल ही में छोड़ने वाले दल (यानि आप) भी शामिल हैं, ताकि उनका समर्थन हासिल किया जा सके। जहां तक मुझे पता है, कांग्रेस आलाकमान हमारे किसी नेता को उम्मीदवार के रूप में चुनने के लिए तब तक दबाव नहीं डालेगा जब तक कि हमारे सहयोगियों की ओर से इस आशय का कोई सुझाव न हो। प्राथमिकता कांग्रेस उम्मीदवार को मैदान में उतारना नहीं है, बल्कि एक ऐसे उम्मीदवार को खड़ा करना है जिसका समर्थन पूरा गठबंधन करने को तैयार हो। उन्होंने कहा, हम 2022 जैसी स्थिति दोबारा नहीं चाहते (जब मार्गरेट अल्वा की उम्मीदवारी ने ममता बनर्जी को नाराज कर दिया था, जिन्होंने अपने टीएमसी सांसदों को उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहने का निर्देश दिया था, जबकि बंगाल के राज्यपाल के रूप में धनखड़ के कार्यकाल के दौरान उनकी पार्टी और सरकार के उनके साथ कटु संबंध थे)।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार