
अशोक भाटिया
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले शुक्रवार को राजनीति से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपने एक बयान से बीजेपी और जेडीयू की मुश्किलें बढ़ा दीं है। चिराग पासवान ने बिहार में सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए में शामिल है। नीतिश कुमार की जेडीयू भी एनडीए का हिस्सा है। यानि लोजपा, भाजपा और जेडीयू बिहार मे इस समय साथ-साथ हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि चिराग पासवान क्या अपने सहयोगी दलों से अलग होकर सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।चिराग के इस ऐलान ने फिलहाल भाजपा और जेडीयू को सकते में डाल दिया है। बता दें कि चिराग पासवान इस समय एनडीए की मोदी सरकार में मंत्री भी हैं।चिराग पासवान ने रविवार को छपरा के राजेंद्र स्टेडियम में रविवार को आयोजित ‘नव संकल्प महासभा’ को संबोधित करते हुए कहा कि वह बिहार के हित में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उनके विरोधी उनके रास्ते में रोड़ा अटकाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बिहार की सभी सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
एलजेपीआर के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा है कि खुद को बहुत लंबे समय तक केंद्र की राजनीति में नहीं देखता। उन्होंने यह भी कहा है कि बिहार वापस जाना चाहता हूं।चिराग पासवान ने कहना है कि मेरे राजनीति में आने का कारण बिहार और बिहारी रहे हैं। जिस सोच के साथ राजनीति में आया हूं, वह ये है कि मेरा राज्य बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में आए। उन्होंने कहा कि यही मेरी इच्छा है और तीसरी बार सांसद बनकर मुझे समझ आया कि दिल्ली में रहकर बिहार के लिए काम करना संभव नहीं होगा। चिराग ने कहा कि मेरा अपना एक विजन भी है ‘बिहार फर्स्ट,बिहारी फर्स्ट’।
चिराग पासवान का कहना है कि कि मेरा राज्य बिहार विकसित राज्यों की बराबरी पर आकर खड़ा हो, यह चाहता हूं। चिराग ने यह भी कहा कि पार्टी के सामने अपनी इच्छा रखी थी। जल्द वापस बिहार जाना चाहता हूं। मेरे विधानसभा चुनाव लड़ने से पार्टी को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि पार्टी इसका आकलन कर रही है। हम चाहे जितनी सीटों पर भी चुनाव लड़ें, हमारा ध्यान स्ट्राइक रेट पर है।चिराग ने कहा कि मेरे चुनाव लड़ने से मेरी पार्टी और मेरे गठबंधन का प्रदर्शन अगर बेहतर होता है, तो जरूर लडूंगा। गौरतलब है कि एक दिन पहले चिराग पासवान ने कहा था कि पार्टी की तरफ से मेरे विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव आया है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस पर अभी और विस्तार से चर्चा होगी। पार्टी ने प्रस्ताव दिया है कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ूं। हालांकि, अभी इस पर और चर्चा होना बाकी है।
वैसे चिराग पासवान केंद्र सरकार में मंत्री हैं। केंद्रीय मंत्री रहते हुए अगर वह बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, तो जाहिर है उनका लक्ष्य मंत्री बनना तो नहीं ही होगा। फिर उनका प्लान क्या है? दरअसल, चिराग पासवान जानते हैं कि केंद्रीय राजनीति में भी उनके पैर तब तक ही जमे हैं, जब तक वह बिहार में मजबूत हैं। आखिरकार, उनकी सियासत का बेस तो बिहार ही है। बीजेपी मध्य प्रदेश और राजस्थान से लेकर हरियाणा तक, केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ाती आई है। 2020 के बिहार चुनाव में चिराग की पार्टी शून्य सीट पर सिमट गई थी। खुद मैदान में उतरने के पीछे चिराग की रणनीति यह भी हो सकती है कि शायद इससे एलजेपीआर को कुछ सीटों पर फायदा मिल जाए।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि राजनीति में कोई अस्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। चिराग की रणनीति कुछ सीटें जीतकर अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाने की हो सकती है, खासकर ऐसे माहौल में जब नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति हो। चिराग भी भविष्य के सीएम दावेदारों में गिने जाते हैं, ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ जैसे कैंपेन से अपनी मौजूदगी बनाए रखते हैं। वह बिहार की सियासी पिच खाली नहीं छोड़ना चाहते। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी कम सीटें होने के बावजूद सीएम बन सकते हैं, निर्दलीय मधु कोड़ा झारखंड के सीएम बन सकते हैं, नीतीश कुमार तीसरे नंबर की पार्टी का नेता होने के बावजूद पांच साल सरकार चला सकते हैं, तो सियासत में कुछ भी हो सकता है। चिराग को भी नीतीश के भविष्य पर संशय में अपने लिए उम्मीद दिख रही है।
साल 2005 में दो बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में त्रिशंकू जनादेश आया था। तब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में मंत्री थे। केंद्र सरकार में गठबंधन साझीदार होने के बावजूद एलजेपी ने बिहार चुनाव अकेले लड़ा और पार्टी 29 सीटें जीतकर किंगमेकर के तौर पर उभरी। तब आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और 92 सीटों के साथ एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन। कांग्रेस के 10, सपा के चार, एनसीपी के तीन और लेफ्ट के 11 विधायक थे। आरजेडी को कांग्रेस और इन छोटी पार्टियों के साथ ही केंद्र में गठबंधन सहयोगी एलजेपी के समर्थन से सरकार बना लेने का विश्वास था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
सत्ता की चाबी लेकर घूम रहे रामविलास पासवान ने तब मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर पेच फंसा दिया। नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए ने सरकार बनाई, लेकिन अल्पमत की यह सरकार भी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी। नीतीश को कुर्सी छोड़नी पड़ी और उसी साल अक्टूबर में दोबार चुनाव हुए। 2005 के दूसरे चुनाव में एलजेपी की सत्ता की चाबी खो गई और एनडीए ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इन चुनावों में क्या चिराग भी अपनी पार्टी के लिए सत्ता की चाबी खोज रहे हैं?
चिराग की पार्टी ने जब 2020 में एकला चलो की राह पकड़ी थी, तब भी वही पार्टी के अध्यक्ष थे। तब पार्टी एनडीए में भी थी। हालांकि, चिराग तब केंद्र में मंत्री नहीं थे। 20 साल पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था। तब चिराग के पिता रामविलास पासवान केंद्र सरकार में मंत्री थे। केंद्र में यूपीए की सरकार थी और जब बिहार चुनाव की बारी आई, एलजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा। केंद्र की सरकार में साथ होते हुए भी रामविलास पासवान का समर्थन आरजेडी को नहीं मिल पाया और पार्टी सत्ता से ऐसी चूकी कि नीतीश के बगैर सत्ता का स्वाद चखने की स्थिति में कभी आ नहीं पाई। क्या चिराग इस बार एनडीए के लिए वही कहानी दोहरा पाएंगे?
वैसे चिराग ने बिहार सरकार कि आलोचना करने से भी नहीं डर रहे । बिहार की राजधानी पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या के मामले पर चिराग पासवान ने चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘ऐसी घटनाएं उस सरकार में हो रही हैं, जिसकी पहचान सुशासन की है। मैं भी उस सरकार का समर्थन कर रहा हूं। यह वाकई चिंता का विषय है। मैं इस सवाल से भागने की कोशिश नहीं करूंगा, न ही हमारी सरकार को ऐसा करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर इतनी बड़ी घटना शहरी इलाकों में खुलेआम होती है, अगर इतने पॉश इलाके में होती है, तो यह बहुत गंभीर मामला है। मैं सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन के भी संपर्क में हूं… लेकिन ऐसी घटनाएं हमारी चिंता बढ़ाती हैं …. अगर परिवार (गोपाल खेमका का) डरा हुआ है, तो यह जायज है। यह ऐसा परिवार है जिसने पहले भी इसका सामना किया है। क्या स्थानीय प्रशासन ने परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई?….. यह प्रशासन की जिम्मेदारी थी।’चिराग पासवान ने कहा कि हत्या चाहे राजधानी पटना में हो या बिहार के किसी दूर-दराज के गांव में, सरकार को कानून-व्यवस्था के लिए जवाहदेह होना पड़ेगा। चिराग ने कहा कि सरकार जवाबदेही से भाग नहीं सकती। शहरी इलाके में खुलेआम घटना घट जाती है। थाना बगल में था, अधिकारी उसी इलाके में रहते हैं। इतने पॉश इलाके में ऐसी घटना घट जाती है तो चिंता का विषय है। सुशासन के राज में अपराधियों को इतना बल कहां से मिल गया ये हमें देखना होगा। सरकार को गंभीर होना होगा। लोजपा प्रमुख ने कहा कि बिहार में डोमिसाइल नीति लागू होनी चाहिए, मैं इसके समर्थन में हूं। उन्होंने तेजस्वी यादव का नाम लिए बिना कहा, ‘बिहार में 2023 में जब महागठबंधन की सरकार थी तो उस वक्त राजद के उपमुख्यमंत्री और राजद के शिक्षा मंत्री थे, जिन्होंने डोमिसाइल नीति को समाप्त किया।’
चिराग के चुनाव लड़ने पर आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में चुनाव से पहले ही NDA में सिर फुटव्वल शुरू हो गई है और मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो गए हैं। तिवारी ने कहा कि LJP(R) अब चिराग पासवान को सीएम कैंडिडेट बता रही है और जेडीयू-बीजेपी नीतीश कुमार को सीएम कैंडिडेट बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि NDA में चिराग की पार्टी की लगातार उपेक्षा हो रही है।
आरजेडी प्रवक्ता के बयान से साफ है कि चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने को विपक्ष भी अपने लिए एक मौके के तौर पर देख रहा है। अगर चुनाव नतीजों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो ऐसे में चिराग की भूमिका अहम हो सकती है। तेजस्वी यादव के साथ वह पहले ही अपने पारपारिक संबंधों को हवाला दे चुके हैं, ऐसे में उनका पाला बदल भी मुमकिन हो सकता है। लेकिन फिलहाल औपचारिक तौर पर चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने का इंतजार है।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार