निर्मल कुमार शर्मा
भारत और यूरोप के देशों उदाहरणार्थ जर्मनी,ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य आदि देशों में अपने देश की नदियों ,अपने भूगर्भीय जल संरक्षण ,प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण करने की सोच और कृतित्व में जमीन-आसमान का फर्क है..इसी विषय पर लिखा मेरा लेख तुलनात्मक स्तर पर लिखा गया है, मैं अक्टूबर 20 19 के प्रथम सप्ताह में उक्त तीनों देशों के लगभग आधा दर्जन शहरों में घूमने गया था ,वहाँ के समाज के लोगों की जीवन शैली ,उनकी निश्छलता ,उनकी सहायता करने की तत्परता ,सदाशयता ,विनम्रता आदि व्यवहार को देखकर मैं अभिभूत हो गया हूँ ,यहाँ कहने को हमारा देश विश्वगुरु और आध्यात्मिक गुरू होने का मिथ्या ढोंग किया जाता है,यूरोप के सामान्यत: तौर पर लोग मानवीय गुणों ,संवेदनशीलता में भी हम लोगों से बहुत आगे हैं ,इसके अतिरिक्त उनकी अपनी नदियों के प्रति,अपने भूगर्भीय जल के प्रति ईमानदारी की हद तक स्पष्टता है, ऐसा नहीं है कि वे लोग हम लोगों की तरह अपनी नदियों में प्रतिदिन शाम को आरती उतारने का ढोंग करते हों और दूसरी तरफ उसी नदी में शहर का सारा सीवर डाल रहे हों ,ऐसा बिल्कुल नहीं है !
यूरोप की अधिकांशत: नदियों को वहाँँ के लोग इतनी ही हिफाज़त और बचाकर रखे हैं जिससे वहाँ की नदियाँ आज भी इतनी साफ-सुथरी हैं,कि आप उनके पानी से निर्भय होकर अपनी प्यास बुझा सकते हैं ! वहाँ हम लोग जर्मनी के सेक्सनी राज्य में बहने वाली एल्ब नदी के किनारे गये थे,इसी नदी के किनारे जर्मनी के सप्रसिद्ध शहर ड्रेसडेन बसा हुआ है,इस नदी के किनारे के स्थान को ब्रूहल टेरेस कहते हैं,जिसे हिन्दी में ‘ यूरोप की बालकनी ‘ भी कह सकते हैं।
वहाँ मैंने ध्यानपूर्वक देखा नदी में जगह-जगह मोटे-मोटे पाइपों के द्वारा जो पानी नदी में गिर रहा था ,वह भारतीय शहरों यथा वाराणसी ,इलाहाबाद ,कानपुर ,आगरा और दिल्ली में गिरने वाले पाइपों के सीवर के गंदे और झाग और तमाम रासायनिक प्रदूषण से युक्त पानी की तरह नहीं था ,बल्कि वह बिल्कुल साफ -सुथरा पानी था । हमें लगा वह पानी शहर द्वारा प्रयोग किया पानी ही था ,परन्तु वहाँ के नगर निगम और सरकारों द्वारा उस पानी को परिशोधित करके ही नदी में डाला जा रहा था ।
जर्मनी के शहरों में मैंने देखा वहाँ के बहुमंजिली इमारतों में भारत के शहरों की तरह हर फ्लैट में विद्युत मोटर नहीं लगी है ,न बोरिंग करके सबमर्सिबल पंप लगे हैं । वहाँ के नगर निगम द्वारा आपूर्ति किया हुआ नल का पानी ही इतना शुद्ध और मृदु है कि उस पानी को आप पीने और खाना बनाने के लिए निःसंकोच प्रयोग कर सकते हैं ।
इससे जर्मनी में करोड़ों विद्युत मोटरों,उनके द्वारा किया गया खर्च विद्युत,उतने ही आर.ओ.सिस्टम, सबमर्सिबल पंप का खर्च या भारत में जैसे जगह-जगह अमूल्य भूगर्भीय जल को अवैध और अनियंत्रित रूप से खींचकर प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी बोतलों में भरकर आम जनता को बेच दिया जाता है और सबसे बड़ी बात हम अपने लाखों सालों से प्रकृति द्वारा संचित अमूल्य भूगर्भीय जलरूपी धन का अकूत दोहन करके हम अपने भावी पीढ़ियों का भविष्य ही अंधकारमय बना रहे हैं ! वहां इस तरह की अवैध व अनियंत्रित जलदोहन मुझे कहीं होता नहीं दिखा ।
जर्मनी के एक प्रान्त बाडेन वुर्टेनम्बर्ग की राजधानी श्टुटगार्ट के शहरी परिक्षेत्र के जंगलों और पहाड़ों के नीचे पानी का इतना बड़ा भूगर्भीय भंडार है,जो अपने 19 दिन-रात बहने वाले झरनों से प्रतिदिन 2.2 करोड़ लीटर पानी बाहर निकालता रहता है ,जिसका जल बहुत से मिनरल से संपन्न ,स्वास्थ्य वर्धक और चिकित्सकीय गुणों से भरपूर है ।
जर्मनी के सुप्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर लाटेर्नजर के अनुसार यह पानी का भंडार इतना विशाल है कि यह पिछले पाँच लाख साल से लगातार बह रहा है । उनके अनुसार आज जो पानी धरती से निकल रहा है,वह बीसियों साल पूर्व बारिश और भाप की प्रक्रिया से गुजरकर छन-छन कर धरती में संग्रहित हुआ जल है । समय -समय पर इस भूगर्भीय जल की गुणवत्ता की जांच भी होती रहती है ,ताकि कोई प्रदूषण की संभावना भी न रहें । इसे वहां की सरकार इसके एक-एक बूँद को सहेजकर पाइपों के सहारे जर्मनी के दूरस्थ स्थानों को पेय जल और स्पा सेंटरों को स्वास्थ्य लाभ हेतु भेजती है ।
सबसे दु:ख और हतप्रभ करनेवाली बात यह भी है कि इस देश के अरबों गंगा मैया के पुत्रों के साथ भारतीय राष्ट्र राज्य के सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति,जो आजकल इस भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री के पद पर बैठा है,श्रीयुत् श्रीमान नरेंद्र दास दामोदरदास मोदी जी भी गंगा मैया का कथित काबिल बेटा है ! यह बात कोई और नहीं खुद श्रीयुत् श्रीमान नरेंद्र दास दामोदरदास जी केन्द्रीय सत्ता में आने से पूर्व 26 अप्रैल 2014 की वाराणसी में होने वाली खचाखच भरी सभा में अपनी चिरपरिचित नाटकीय ढंग से यह जुमले बाजी करके सभा में उपस्थित हर व्यक्ति को धोखा दिया कि ‘ मुझे वाराणसी में बीजेपी ने नहीं भेजा है अपितु मुझे यहां गंगा मैया ने बुलाया है !’लेकिन सत्ता में आने के कुछ ही वर्षों के बाद में ही श्रीयुत् श्रीमान् नरेन्द्र दास दामोदरदास मोदी ने अपनी अकर्मण्यता और कोई भी सृजनात्मक कार्य न करने की इच्छा शक्ति के अभाव में इस कथित गंगा पुत्र का गंगा सफाई अभियान सदा के लिए ठंडे बस्ते में चला गया !
यही नहीं उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित वाराणसी से संसद के लिए मई 2014 में निर्वाचित होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘मां गंगा की सेवा करना मेरे भाग्य में है। ’ विदेशों में भी यथा अमेरिकी शहर न्यूयार्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में वर्ष 2014 में हजारों भारतीय समुदाय के हजारों लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम गंगा मईया साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है !’
हांलांकि अब तक गंगा सफाई के छद्म नाटक के नाम पर कांग्रेसियों के शासन के दौरान 12000 करोड़ और बीजेपी शासन के दौरान नमामि गंगे मंत्रालय के गठन के बाद 20000करोड़ रूपये मतलब अब तक 32000 करोड़ रूपये मतलब 3खरब 20अरब रूपये ख़र्च हो चुका है, लेकिन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार 2014 के बाद कथित गंगा पुत्र के सत्ता में आने के बाद गंगा मैया की सेहत और भी खराब हुई है ! गंगा मैया और गंदी हुई है ! प्रश्न यह उठता है कि जब गंगा मैया की सफाई हुई नहीं,तो ये खरबों रूपए कहां खर्च हो गए ? मिडिया के अनुसार इन रूपयों का पंचतारा होटलों में सैकड़ों गोष्ठियों, सम्मेलनों और सेमिनारों आदि के व्यर्थ के चोंचलेबाजी करने के नाम पर गुलछर्रे उड़ाकर बर्बाद कर दिया गया !
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन आने वाली संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सीपीसीबी के मुताबिक पीने वाले पानी में टोटल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की संख्या प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 50 एमपीएन सामान्य संख्या या इससे कम और नहाने वाले पानी में 500 एमपीएन या इससे कम होनी चाहिए या According to the Central Pollution Control Board (CPCB), an Organization under the Ministry of Environment, Forest and Climate Change, the number of total coliform bacteria in drinking water is 50 mpn or less per 100 ml of water and 500 mpn or less in bathing water. to be less.
वर्तमान समय में इन खतरनाक कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया Coliform Bacteria जिनके संक्रमण से मितली, उल्टी, बुखार और दस्त होने लगती है ,हरिद्वार में ये संख्या 1600 है। वहीं उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 48,000, वाराणसी में 70,000, कानपुर में 1,30,000, बिहार के बक्सर में 1,60,00,000, पटना में 1,60,00,000,पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 2,40,000 हैं ! इस तरह के भर्जी गंगा सफाई अभियान से गंगा मैया तो हजारों सालों तक भी प्रदूषण मुक्त नहीं होंगीं !
क्या हम ,हमारा समाज और हमारी सरकारें यूरोप के समाज,उनके शहरों के सीवेज निस्तारण के तरीकों और वहां की सरकारों से भूगर्भीय जल को सहेजने,अपनी नदियों के जल को शुद्ध रखने और भूगर्भीय जल की व्यर्थ बर्बादी रोकने के लिए प्रेरणा नहीं ले सकते ! काश ! भारत में भी ऐसा होता !