अध्यक्ष बनने से क्याें कतरा रहे हैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता?

संदीप ठाकुर

कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव के ऐलान के बाद से ही एक यक्ष
प्रश्न है कि अध्यछ काैन ? राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ने के स्टैंड पर
कायम है । कांग्रेस पार्टी का कोई बड़ा नेता अध्यक्ष बनने के लिए तैयार
नहीं हो रहा है। जिस किसी नेता का नाम चलाया जा रहा है वह अपने को
अध्यक्ष पद से अलग करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। यह बड़ी हैरानी की बात है। कोई नेता
कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का नेतृत्व नहीं करना चाह रहा
है,आखिर क्याें ?

अगले महीने 20 सितंबर तक पार्टी अध्यक्ष चुने जाने की डेडलाइन तय है।
अभी तक कोई दावेदार सामने नहीं आया है। कांग्रेस के जिन दो नेताओं के नाम
की सबसे ज्यादा चर्चा है वे हैं- अशोक गहलोत और कमलनाथ। गहलोत राजस्थान
के मुख्यमंत्री हैं और कमलनाथ को लग रहा है कि अगले साल के अंत में वे
मुख्यमंत्री बन जाएंगे। इसलिए गहलोत और कमलनाथ दोनों सबसे अधिक वजनदार
तरीके से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस
अध्यक्ष पद 2019 के बाद से खाली है, लेकिन उसके लिए पार्टी में टालमटोल
होता रहा है। कई बार कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के चुनाव के एक्सटेंशन
किया जा चुका है और फिर से 20 सितंबर की तारीख तय की गई है। तारीख तय हाे
गई है ताे काेई अध्यक्ष बनने काे तैयार नहीं है। मल्लिकार्जुन खड़गे को
भी अध्यक्ष बनाने की चर्चा है लेकिन वे भी इस बात की मांग कर रहे हैं कि
राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया जाए। मीरा कुमार, केसी वेणुगोपाल और मुकुल
वासनिक के नाम भी चर्चा तेज है। तमाम बड़े नेताओं के हिचक की आखिर क्या
वजह हाे सकती है। तर्क की कसौटी पर यदि कसा जाए ताे इनकी हिचक का एक बड़ा
कारण यह है कि इन नेताओं काे पता है कि अध्यक्ष बनने के बाद भी ये सिर्फ
मुखाैटा बन कर रहे जाएंगे। वे अपनी पसंद से कोई फैसला नहीं कर पाएंगे।
उन्हें गांधी परिवार के हिसाब से ही काम करना होगा। दूसरी वजह यह भी है
कि कांग्रेस के सारे बड़े नेता मान रहे हैं कि अगले चुनाव में पार्टी
नहीं जीतने वाली है। सो, उनको लग रहा है कि अध्यक्ष बने तो हार का ठीकरा
फूटेगा। इसके लिए कोई नेता मानसिक रूप से अपने आप काे तैयार नहीं कर पा
रहा है। एक अन्य वजह यह भी है कि एक बार अध्यक्ष बन गए तो उसके बाद वे
किसी पद के लायक नहीं रह जाएंगे।

गत अगस्त में अध्यक्ष के चुनाव का कार्यक्रम तय करने के लिए कार्य समिति
की ऑनलाइन बैठक हुई तो उसमें लगभग सभी नेताओं ने राहुल गांधी को अध्यक्ष
बनाने की बात कही थी। कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ और बुजुर्ग नेताओं में से
एक मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनें, पूरी पार्टी
उनके पीछे खड़ी है। दूसरे वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने भी यह बात दोहराई कि
राहुल अध्यक्ष बनें। तीसरे वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता सलमान खुर्शीद ने भी
कहा कि राहुल को अध्यक्ष बनना चाहिए। एक तरफ गुलाम नबी आजाद कह रहे हैं
कि राहुल के पार्टी की कमान संभालने के बाद वरिष्ठ नेताओं से सलाह-मशविरा
करने का सिस्टम खत्म हो गया तो दूसरी ओर पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल के
पीछे एकजुट हो रहे हैं! हां, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक
पृथ्वीराज चव्हाण ने जरूर कहा था कि अगर राहुल अध्यक्ष बनने को तैयार
नहीं होते हैं तो चुनाव करा कर किसी को चुना जाए। सनद रहे चव्हाण जी-23
समूह के नेता हैं, जिन्होंने संगठन चुनावों को लेकर सोनिया गांधी को
चिट्ठी लिखी थी। इस समूह के नेता एक-एक करके कांग्रेस से दूर हो रहे हैं।

1929 का कैसा साल रहा होगा जब लाहौर के अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू
अध्यक्ष बनते हैं तब उनकी उम्र 40 साल थी। 1947 तक कांग्रेस के 45
अध्यक्ष बन चुके थे। अपनी स्थापना यानी 1885 से लेकर 1947 के बीच 58 बार
अध्यक्ष बदला। तब कांग्रेस एक जीवंत राजनीतिक पार्टी थी। 45 लोगों का
अध्यक्ष बनने का मतलब है समय समय पर अलग अलग प्रतिभाओं के नेता का बनना
और उभरना। हर अध्यक्ष अपनी नई सोच लेकर आया। नई प्रतिभा लेकर आया। कोई
आकर फेल हुआ तो कोई आकर पास हुआ। आज वो प्रक्रिया बंद हो गई है। यदि बंद
नहीं हुई होती तो कांग्रेस में राहुल का विकल्प तुरंत मिल जाता। पार्टी
भले न ढूंढ पा रही हो लेकिन जनता या कार्यकर्ता को दिख जाता कि राहुल की
जगह हमारा अध्यक्ष यह भी तो हो सकता है। लेकिन ऐसी कोई आवाज़ सुनाई नहीं
पड़ रही है। इसका मतलब है एक बड़ा वैक्यूम कांग्रेस मे आ चुका है जिसे
भरना आसान नहीं है। कांग्रेस में एक फायदा यह है कि जो अध्यक्ष बनेगा वह
इतिहास का हिस्सा होगा। उसका नाम 137 साल पुरानी पार्टी के महान नेताओं
के साथ लिखा जाएगा। उस सूची में नाम शामिल हो जाएगा, जिसमें महात्मा
गांधी, सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू के नाम हैं।
यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। बावजूद इसके कांग्रेस काे अध्यक्ष
नहीं मिल रहा है।