संदीप ठाकुर
जी 20 के मेहमानों के स्वागत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए
गए रात्रिभोज में खींची गई एक तस्वीर इनदिनों राजनीतिक गलियारों में
चर्चा का विषय बनी हुई है। इस तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी,अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार हैं। मोदी नीतीश काे बाइडेन से मिलवाते हुए नजर आ रहे हैं।
रात्रिभोज में तो कई राज्यों के मुख्यमंत्री ने शिरकत की थी लेकिन
प्रधानमंत्री ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काे ही बाइडेन से
क्याें मिलाया ? इस मुलाकात काे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। गलियारे
में चर्चा है कि नीतीश कुमार कहीं पलटी मारने की तो नहीं सोच रहे हैं ?
उनके अतीत से इस आशंका काे बल मिल रहा है। नीतीश कब पाला बदल लें, कहा
नहीं जा सकता।
नीतीश कुमार राजनीति के नौसिखिए खिलाड़ी नहीं हैं। इसलिए ये तस्वीर यूं
ही ताे नहीं हाे सकती। वैसे यह कहा जा रहा है कि महागठबंधन के साथ जाने
के बाद नीतीश कुमार काे अब इस बात का अंदाजा लग गया है कि उनसे चूक तो
हुई ही है। शायद यही वजह है कि जी-20 की बैठक के दौरान राष्ट्रपति की ओर
से आयोजित भोज कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने शामिल होने का फैसला लिया।
भोज कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की जैसी तस्वीरें
सामने आई हैं, उसे देख कर किसी को भी सहज भरोसा हो जाएगा कि जेडीयू और
बीजेपी में भीतरी स्तर पर कोई ‘खिचड़ी’ पक रही है। नीतीश कुमार की ओर से
ऐसी तस्वीरों या भोज में शामिल होने के बारे में कोई टिप्पणी अब तक सामने
नहीं आई है। आरजेडी या बिहार के महागठबंधन में शामिल दूसरे दलों को इस
बात का अनुमान है कि नीतीश का मन कभी भी बदल सकता है। अगर नीतीश को
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का संयोजक बनाने की चर्चाओं पर विराम लग गया तो
इससे समझा जा सकता है कि जेडीयू से इतर महागठबंधन के दूसरे घटक दल उनके
बारे में क्या सोचते हैं।
बिहार की राजनीति में दखल रखने वालों का मानना है कि नीतीश को विपक्षी
गठबंधन में अपनी औकात का अंदाजा लग चुका है। वे अब किनारे होने का बहाना
ढूंढ़ रहे हैं। इसके लिए वे दो बातों को आधार बना सकते हैं। पहला यह कि
तेजस्वी यादव अब रेलवे में जमीन के बदले नौकरी मामले में चार्जशीटेड हैं।
इस मामले में जब पहली बार 2017 में तेजस्वी का नाम आया था तो नीतीश ने
आरजेडी से पल्ला झाड़ लिया था। अब तो वे चार्जशीटेड हो गए हैं। दूसरा
कारण सीटों का बंटवारा बनेगा। नीतीश कुमार को सभी सिटिंग सीटें चाहिए।
यानी बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में अकेले नीतीश कुमार की पार्टी
जेडीयू को ही 16 सीटें चाहिए। ऐसा हुआ तो 24 सीटों में ही आरजेडी,
कांग्रेस और वाम दलों को बंटवारा करना होगा। आरजेडी किसी कीमत पर जेडीयू
से कम सीटें नहीं चाहेगा। दोनों दलों के बीच अगर बराबर सीटें बंट जाएं तो
32 तो उन्हीं के खाते में चली जाएंगी। तब सिर्फ 8 सीटें कांग्रेस और वाम
दलों के लिए बचती हैं। कांग्रेस ने पहले ही 10 और सीपीआई ने 5 सीटों की
दावेदारी ठोंक दी है। बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू को 17
सीटें दी थीं। इनमें 16 सीटें जेडीयू जीत भी गया था। बीजेपी भी इतनी ही
सीटों पर लड़ी थी। इस बार बीजेपी ने सहयोगी दलों की संख्या भी बढ़ा ली
है। अपने लिए बीजेपी ने 30 सीटें रखी हैं। अगर सीटों का बंटवारा करना
पड़ा तो अपनी सीटों में से आधी सीटें बीजेपी नीतीश कुमार को दे सकती है।
इसलिए माना जा रहा है कि नीतीश आखिरकार बीजेपी खेमे के साथ ही हो जाएंगे।
विपक्षी गठबंधन में सीटों के बंटवारे से असंतोष को वे आधार बनाएंगे।