झारखण्ड में क्यों धराशाई हो गए नफ़रत फैलाने के विशेषज्ञ ?

Why did the experts in spreading hatred fail in Jharkhand?

निर्मल रानी

गत दिनों महाराष्ट्र व झारखण्ड के विधानसभा चुनाव नतीजे घोषित हुये। दोनों ही राज्यों ने सत्तारूढ़ दलों को ही पुनः सत्ता सौंपने का जनादेश दिया। परन्तु भोंपू मीडिया ने महाराष्ट्र में भाजपा व शिवसेना (शिंदे ) की जीत को कुछ इस तरह पेश किया गोया उसने आगामी 2029 के लोकसभा चुनावों का सेमीफ़ाइनल जीत लिया हो। महाराष्ट्र की जीत को ‘हिंदुत्व की जीत’ प्रचारित किया गया। भाजपा द्वारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’ जैसे विवादित व वैमनस्य पूर्ण नारों का सहारा लिया गया। इसतरह वही भाजपा जिसने कभी बाल ठाकरे की शिवसेना की बैसाखी के सहारे महाराष्ट्र में अपने पैर रखने के प्रयास किये थे। उसी भाजपा ने शिवसेना को खंडित कर शिंदे गुट को अपने साथ मिलाकर पहले तो उद्धव ठाकरे की निर्वाचित सरकार गिराई। साथ ही शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस में फूट डलवाकर अजित पवार व उनके साथी विधायकों को अपने साथ जोड़ा। और अब ताज़ा तरीन चुनावों में शिव सेना शिंदे गुट को भी पीछे छोड़ भाजपा ने अपने दम पर सबसे अधिक सीटें जीत कर महायुति गठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की है। महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों पर हुये चुनाव में बीजेपी ने 125 सीटें, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) ने 57 सीटें और अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसतरह महायुति गठबंधन ने 234 सीटें हासिल कर राज्य में ज़ोरदार जीत हासिल की।

भाजपा द्वारा तोड़ फोड़, वैमनस्य और सत्ता बल के दुरूपयोग के अलावा नफ़रत फैलाने साम्प्रदायिकता भड़काने का खेल झारखण्ड में भी खेला गया। वहां भी इन्हीं बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ़ हैं जैसे नारों का सहारा तो लिया ही गया साथ ही जानबूझकर बंग्लादेशी घुसपैठिये के नाम पर अल्पसंख्यक विरोध की जमकर राजनीति भी की गयी। निर्वाचित मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सत्ता का दुरूपयोग कर जेल भेजा गया। चंपई सोरेन जिन्हें हेमंत सोरेन ने जेल जाते समय अपना उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री बनाया था उस चंपई को भी भाजपा ने एकनाथ शिंदे की ही तर्ज़ पर अपने साथ मिला लिया और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को कमज़ोर करने की कोशिश की गयी। भाजपा ने राज्य के चुनावों में नफ़रती ज़हर घोलने के लिये केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान व असम के मुख्यमंत्री हेमंता विस्वा सर्मा जैसे दो नेताओं को स्थाई रूप से झारखण्ड चुनावों में तैनात किया। इन नेताओं ने ही यहाँ बड़ी ही प्रमुखता से बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया। असम के मुख्यमंत्री हेमंता विस्वा सर्मा का नाम इसलिये भी उल्लेखनीय है क्योंकि इनके कांग्रेस में रहते हुये भाजपा इन्हीं को कांग्रेस पार्टी का सबसे भ्रष्ट नेता बताती थी। और इन्हीं को बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाने के लिये झारखण्ड भेजा गया ? इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,गृह मंत्री अमित शाह,भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा की पूरी सेना राज्य में मतों के ध्रुवीकरण के प्रयास में लगी रही परन्तु इन सबके बावजूद चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आ सके और झामुमो गठबंधन पुनः अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाने में सफल रहा।

ग़ौरतलब है कि भाजपा अपने मिशन के अनुसार लंबे समय से इस शांतप्रिय आदिवासी बाहुल्य राज्य को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने का असफल प्रयास करती रही है। याद कीजिये जब जुलाई 2018 में केंद्र सरकार में तत्कालीन मंत्री और झारखंड के हज़ारीबाग से भाजपा सांसद जयंत सिन्हा मॉब-लिंचिंग के आरोपियों को ज़मानत मिलने पर फूल-माला पहनाकर उन्हें सम्मानित करते व उन हत्यारों को मिठाई खिलाते नज़र आये थे। 2017 में इन आठ साम्प्रदायिक हत्यारों ने एक मुस्लिम मांस व्यापारी की रामगढ़ में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। ज़मानत मिलने के बाद यह हत्यारे केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के हज़ारीबाग़ स्थित उनके आवास पर पहुंचे थे जहाँ मंत्री जयंत सिन्हा ने इन सभी का सम्मान किया। उसके बाद भी इस राज्य में मॉब लॉन्चिंग व साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने की अनेक घटनायें हुईं। परन्तु इन सब के बावजूद झारखण्ड के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बचा पाने में झामुमो कांग्रेस व राजद जैसे सहयोगियों का गठबंधन पूरी तरय सफल रहा। हाँ इस चुनाव में राज्य को झामुमो की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के रूप में एक नई युवा महिला नेता ज़रूर मिल गयी। साथ ही चंपई सोरेन को भी राज्य के मतदाताओं ने पटखनी देकर यह बता दिया कि राज्य की जनता ‘विभीषणों ‘ के साथ हरगिज़ नहीं है। न ही राज्य के लोगों ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर मुस्लिम विरोध की भाजपाई साज़िश को स्वीकार किया।

ठीक इसके विपरीत राज्य के बहुसंख्य आदिवासियों ने पूरी एकता के साथ व आदिवासी अस्मिता की रक्षा की ख़ातिर झारखण्ड के स्थाई निवासियों को घुसपैठिया बताने वालों को ही घुसपैठिया चुनाव प्रचारक बताकर 5 वर्षों के लिये चुनावी परिदृश्य से बाहर धकेल दिया। निश्चित रूप से राज्य के मतदाताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी को भी आदिवासी अस्मिता पर हमले के तौर पर देखा। अन्यथा केंद्रीय सत्ता,भारी धनशक्ति,मीडिया,शासन तंत्र,लालच,भय,झूठ व अफ़वाह का आडम्बर,नफ़रती विष बेल क्या नहीं था भाजपा के पास, परन्तु कुछ भी झारखण्ड में काम न आया ? निश्चित रूप से राज्य के लोगों ने ‘एक हैं तो सेफ़ हैं ‘ जैसे भाजपाई नारों का अनुसरण करते हुए पूरी एकता का प्रदर्शन करते हुये उन ‘बाहरी’ लोगों के मंसूबों पर पानी फेर दिया जो अन्य प्रदेशों से आकर राज्य के संयुक्त समाज व सभ्यता यहाँ की सांझी तहज़ीब आदि को समाप्त करना चाह रहे थे। सही मायने में झारखण्ड के लोगों ने पूरे देश के मतदाताओं को यही सन्देश दिया है कि केंद्रीय सत्ता,धनशक्ति,मीडिया,भय,झूठ व अफ़वाह तथा नफ़रती भाषणों के बावजूद ऐसी शक्तियों को पराजित किया जा सकता है जोकि मात्र सत्ता हासिल करने की ग़रज़ से अन्य राज्यों से आकर स्थानीय लोगों के बीच फूट डलवाने व उन्हें आपस में लड़वाने का काम करती हैं। झारखण्डवासियों की इसी एकता के चलते नफ़रत फैलाने के विशेषज्ञ राज्य चुनावों में बुरी तरह धराशाई हो गए ?