आर.के. सिन्हा
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को निरस्त किए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने का फैसला सुनाकर उन लोगों को अच्छा-खासा झटका दे दिया, जो चाहते थे कि राज्य में पहले वाली व्यवस्था की बहाली हो जाए और उसे विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए। किसी राज्य को खास कहना सरासर गलत और एक तरह से संविधान विरोधी है जो किसी राज्य को अलग अधिकार नहीं देता। देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से श्यामा प्रसाद मुखर्जी की ‘एक देश-एक विधान और एक निशान’ की विचारधारा को भी स्वीकृति मिल गयी और भारत के विघटन का सपना देखने वालों को करारा जवाब भी मिल गया। बेशक, धारा 370 को निरस्त करने का सारा श्रेय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री श्री अमित शाह को ही जाता है जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से सही मायनों में जम्मू-कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ा है। मैं भी उन सौभाग्यशाली सांसदों की श्रेणी में हूँ जिन्होंने 2019 में राज्य सभा में श्री अमित भाई शाह के प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाला था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की फुल बेंच ने सर्वसम्मति से फ़ैसला देते हुए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने का फ़ैसला बरकरार रखा। इस फैसले से सारा देश गदगद है। सिर्फ उन्हीं की छाती पर सांप लोट रहा है जो भारत की एकता और अखंडता को बना हुआ देखना नहीं चाहते। देश उनके इरादों को कभी सफल नहीं होने देगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि इनमें कुछ सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील भी हैं, जो यह विरोध मात्र अपने कांग्रेसी आकाओं को खुश करने के लिये कर रहे हैं। क्योंकि, उन्हें यह पता है कि यदि सर्वोच्च न्यायलय ने कोर्ट के अवमानना का संज्ञान ले लिया तो वे बुरी तरह फसेंगे।
फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ”राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से लिए गए केंद्र के फ़ैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है। अनुच्छेद 370 युद्ध जैसी स्थिति में एक अंतरिम प्रावधान था। इसके टेक्स्ट को देखें तो भी पता चलता है कि यह पूर्णत: एक अस्थायी प्रावधान था।” इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए आदेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फ़ैसले को वैध मानता है। अब यह मानकर चलिए कि जम्मू-कश्मीर का सर्वांगीण विकास और रफ्तार पकड़ लेगा। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में सबको विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ना चाहती हैI इसका प्रमाण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर के 14 शिखर नेताओं से व्यक्तिगत रूप से मिल भी चुके हैं, जिनमें तत्कालीन राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
अफसोस होता है कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने के सवाल पर कांग्रेस का रवैया बेहद नीचता भरा रहा है। कांग्रेस के नेता और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह कहते रहे हैं कि केन्द्र में उनकी पार्टी की सरकार आएगी तो वे संविधान के अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल कर देंगे। हालांकि, अब कांग्रेस के नेता और जम्मू-कश्मीर के राजा रहे हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया है।
पर कांग्रेस के शिखर नेताओं जैसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी को यह बताना होगा कि वे दिग्विजय सिंह की राय के साथ हैं या नहीं? अर्थात क्या कांग्रेस चाहती है कि जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त 2020 से पहल की व्यवस्था लागू हो? कांग्रेस के कई नेता चीख-चीखकर बेशर्मी से कहते रहे है कि धारा 370 को खत्म करना लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों पर सीधा हमला है। यकीन मानिए कि जिस भाषा में दिग्विजय सिंह मांग करते रहे हैं, वही तो पाकिस्तान भी बोलता है। चीन भी यही चाहता है। चीन कहता रहा है कि जम्मू- कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म करना अवैध और अमान्य है। वह भारत के आंतरिक मामले में दखल देने से बाज नहीं आता। चीन ने भारत के धारा 370 को हटाने के कदम को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया था। अगर बात पाकिस्तान की करें तो उसका तो अब रहा-सहा चैन भी खत्म हो गया है।
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा तो देर-सवेर मिल ही जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इस तरह का देश को भरोसा दिया है। पर अब अनुच्छेद 370 इतिहास के गटर में चला गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राज्य के नेता जैसा महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला विरोध कर रहे हैं। उनसे यही उम्मीद भी थी। उन्हें बरगलाने वाली राजनीति के लिये कोई मसला रहा नहीं। पर उन्हें अब कौन पूछता है।
आखिर अनुच्छेद 370 में क्या खास बात थी जिसकी मांग कांग्रेस तथा कश्मीरी नेता करते रहे हैं? क्या यह सच नहीं है कि अनुच्छेद 370 राज्य को भारत से जोड़ने में विफल रहा था?
अनुच्छेद 370 से ही कश्मीर में अलगाववाद बढ़ा था। क्यों वहां पर कभी अल्पसंख्यक आयोग नहीं बना? क्या वहां पर हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई और सिख नहीं रहते? अनुच्छेद 370 से राज्य के अल्पसंख्यकों के साथ घोर अन्याय हुआ। क्यों अनुच्छेद 370 के दौर में वहां पर सरकारी नौकरिर्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों से संबंध रखने वालों को आरक्षण नहीं मिला?
शिक्षा का अधिकार देश की संसद ने दिया था पर जम्मू-कश्मीर के बच्चों को यह अधिकार नहीं थाI क्योंकि, वहां अनुच्छेद 370 लागू था। और तो और वहां इसी धारा 370 के कारण आरटीआई एक्ट तक लागू नहीं हो पाया था। बहरहाल, एक लंबे अंतराल के बाद अब जम्मू-कश्मीर से खुशनुमा बयार बहने लगी है। उसे सारा देश ही महसूस कर रहा है। भारत विरोधी नेता और शक्तियां अब जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में अब पूरी तरह अप्रसांगिक होती जा रही हैं। जम्मू- कश्मीर में फिर से फिल्मों की शूटिंग के लिए बेहतर माहौल बनाया जा रहा है। बर्फ की चादर में लिपटी कश्मीर की हसीन वादियों को भारतीय फिल्मों को गुजरे सालों के दौरान खूब दिखाया गया है। कश्मीर में हर जगह फिल्म शूटिंग हो सकती है। यह एक सदाबहार शूटिंग स्थल है। यहां दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं के लिए शूटिंग की पूरी संभावना है। बॉलीवुड के कई फिल्म निर्माता यहां कश्मीर में शूटिंग के लिए आना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा दिन-रात राज्य के चौतरफा विकास को लेकर सक्रिय रहते हैं। उनसे मेरे खुद के बहुत घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध तब से जब वे बी. एच. यू. छात्र संघ के अध्यक्ष हुआ करते थे। उन्हें जो जिम्मेदारी मिलती है, उसे वे पूरी लगन से पूरा करते हैं। वे बेहद अनुभवी गंभीर और ईमानदार राजनेता हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद अब खूब जम्मू-कश्मीर राज्य देश की मुख्यधारा से जुड़कर जल्द ही विकास की बुलंदियों को छूने लगेगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)