अशोक भाटिया
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी जब भी विदेश दौरे पर होते हैं तो भारत का अपमान किए बिना नहीं रहते हैं। अपने विवादित बयानों से कभी वह खालिस्तान अलगाववादियों के जमीन तैयार कर देत हैं तो कभी चीन की वाहवाही करते हैं। इस बार उन्होंने भारत के लोकतंत्र का अपमान किया है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने जर्मनी के बर्लिन में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्र की भाजपा सरकार पर तंज कसा है. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा प्रवर्तन निदेशालय (ED) और सेंट्रल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (CBI) का इस्तेमाल कर राजनीतिक विरोधियों को निशाना बना रही है. भाजपा ने गांधी की टिप्पणियों की निंदा करते हुए उन्हें भारत विरोधी करार दिया और उनके व्यवहार को बचकाना बताया.
इसके पहले अमेरिका यात्रा के दौरान बोस्टन यूनिवर्सिटी में भारतीय चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए समझौता करने वाला बताया। राहुल गांधी के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने तीखा हमला करते हुए इसे विदेशी भूमि पर देश का अपमान बताया। भाजपा नेता संबित पात्रा ने कहा कि राहुल गांधी विदेशी भूमि पर जाकर वही कर रहे हैं, जो वो कई दशकों से करते आ रहे हैं, यानि भारत की बेइज्जती और भारत का अपमान। अमेरिका में राहुल गांधी ने भारत का अपमान किया है।
इस बयान के बाद यह सवाल फिर से उठने लगा है कि क्या राहुल गांधी जानबूझकर विदेशी धरती पर भारत की छवि को खराब कर रहे हैं? पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी ने कई बार विदेशी मंचों का इस्तेमाल भारत को लेकर विवादास्पद बयान देने के लिए किए हैं। इन बयानों पर अक्सर बीजेपी और अन्य दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मसलन, बोस्टन में उन्होंने चुनाव आयोग को लेकर जो कुछ भी कहा है, उसे उनकी ‘भारत बदनाम यात्रा’ कहा जा सकता है। आइए जानते हैं उन 10 मौकों के बारे में जब राहुल गांधी के विदेश में दिए गए बयानों पर देश क बदनाम करने से नहीं चुकते ।
राहुल गांधी ने बोस्टन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ‘कंप्रोमाइज्ड’ है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके सिस्टम में कुछ तो ‘बहुत गलत’ है। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का उदाहरण देते हुए दावा किया कि दो घंटे में 65 लाख वोट जुड़ गए। उन्होंने कहा कि यह ‘फिजिकली इंपॉसिबल’है।
वैसे तथ्य यह है कि चुनाव आयोग इन आरोपों का कई बार सिलसिलेवार जवाब भी दे चुका है और इन आरोपों को खारिज किया जा चुका है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी राष्ट्रीय नेता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की संवैधानिक संस्थाओं पर इस तरह के आरोप लगाने चाहिए? हर किसी को आलोचना करने का अधिकार है, लेकिन आलोचना करने के तरीके से इरादे पर सवाल उठने भी लाजिमी हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में कहा कि ‘भारत में लोकतंत्र पिछले 10 सालों से टूटा (ब्रोकेन) हुआ था, अब यह लड़ रहा है।’ दरअसल, इन चुनावों में 10 साल बाद कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में विपक्ष के नेता का पद हासिल हो पाया था, क्योंकि वह 99 सीटों पर पहुंची थी। ऐसे में राहुल पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या 2014 और 2019 में देश में जो चुनाव हुए, उसमें देश की जनता ने वोट नहीं डाला था? उनका यह कहना लोकतंत्र की मूल भावना पर ही सवाल उठाता है। खासकर तब जब भारत में लगातार चुनाव होते रहे हैं और सरकारें बदलती रही हैं। बीते 10-11 वर्षों में देश में कई ऐसी सरकारें बनी हैं, जिसे बीजेपी को हराने के बाद कांग्रेस को मौका मिला है। मतलब, अगर नतीजे राहुल और उनकी पार्टी के लिए अच्छे रहें तो लोकतंत्र ठीक है और नहीं तो वह ‘ब्रोकेन हो जाता है।
सितंबर 2023 में राहुल गांधी ने ब्रसेल्स में यूरोपियन यूनियन में कहा कि भारत में ‘फुल स्केल एसॉल्ट’हो रहा है। उन्होंने भारतीय संस्थाओं की निष्पक्षता पर संदेह जताया। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में भेदभाव और हिंसा बढ़ रही है। इस तरह के बयान भारत की अंदरूनी राजनीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाते हैं। राहुल गांधी यह क्यों भूल जाते हैं कि भारतीय चुनाव आयोग ने ही वे चुनाव संपन्न करवाए हैं, जिनके दम पर वह आज विपक्ष के नेता पद पर बैठे हुए हैं। उनके परिवार के तीन-तीन सदस्य इन्हीं चुनावी प्रक्रियाओं का सहारा लेकर संसद में मौजूद हैं। यहीं की संवैधानिक संस्थाओं ने उन्हें इतनी राहत दी हुई है कि नेशनल हेराल्ड केस में गंभीर आरोपों के बावजूद वो और उनका मां सोनिया गांधी को जमानत मिली हुई है।
मई 2022 में लंदन में ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ सम्मेलन में राहुल गांधी ने कहा कि भारत की संस्थाएं ‘परजीवी’ बन गई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘डीप स्टेट’ (CBI, ED) भारत को चबा रहा है। यहां ‘डीप स्टेट’ का मतलब सरकार के अंदर छिपे हुए ऐसे ताकतवर लोग हैं जो अपने फायदे के लिए काम करते हैं। राहुल गांधी ने भारत की तुलना पाकिस्तान जैसे अस्थिर लोकतंत्र से भी कर दी।
अगस्त 2018 में यूके और जर्मनी में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा कि वे ‘देशभक्त नहीं’ हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि वे जनता के गुस्से का इस्तेमाल देश को नुकसान पहुंचाने में कर रहे हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के एक चुने हुए प्रधानमंत्री पर गंभीर आरोप था। इसे विदेशी मंच पर कहना स्वाभाविक रूप से विवाद पैदा करने वाला रहा।
मार्च 2018 में मलेशिया में राहुल गांधी ने नोटबंदी को लेकर तंज कसा। उन्होंने कहा कि अगर वह प्रधानमंत्री होते तो इस प्रस्ताव को ‘कूड़ेदान में फेंक देते’। राहुल गांधी ने कहा कि अगर वह प्रधानमंत्री होते तो वह ऐसा नहीं करते। देश के आर्थिक फैसलों का इस तरह विदेश में मजाक बनाना भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
2018 में ही सिंगापुर में ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में राहुल गांधी ने कहा कि भारत में ‘डर और नफरत’ का माहौल है। उन्होंने कहा कि बहुलता की विचारधारा खतरे में है। बहुलता का मतलब है कि अलग-अलग तरह के लोग एक साथ शांति से रहें। राहुल गांधी ने कहा कि यह चीज खतरे में है। उनका यह बयान भारत की लोकतांत्रिक छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर खराब करने वाला था।
जनवरी 2018 में बहरीन में NRI सम्मेलन में राहुल गांधी ने कहा कि सरकार बेरोजगारी से निपटने में नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि इसका असर सड़कों पर गुस्से और नफरत के रूप में दिख रहा है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह समुदायों के बीच नफरत फैलाने में जुटी है। राहुल गांधी ने कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही इस तरह का बयान दिया था। उन्होंने ऐसे मंच पर यह बयान दिया, जिससे भारत को आर्थिक नुकसान होने की आशंका थी।
सितंबर 2017 में अमेरिका के बर्कले स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार सिर्फ टॉप 100 कंपनियों के लिए काम कर रही है। उन्होंने ‘अहिंसा’ के विचार के खतरे में होने की बात भी की। विदेशी शैक्षणिक संस्थानों में ऐसे बयान देना भारत की नीतियों को गलत तरीके से पेश करता है। अमेरिका की धरती पर इस तरह के बयान से भारत के हित के प्रभावित होने की आशंका थी, लेकिन राहुल को जो मन में आया बोल आए।
2017 में ही अमेरिका में राहुल गांधी ने कहा कि भारत अब वह नहीं रहा जहां हर कोई कुछ भी कह सकता है। उन्होंने विदेश की धरती पर भारत में ‘फ्री स्पीच’की स्थिति पर संदेह पैदा करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि भारत में सहनशीलता खत्म हो गई है। जबकि, हकीकत ये है कि राहुल गांधी संसद से लेकर बाहर तक जब जो जी में आता है, बयान देते रहे हैं और सरकार को छोड़ दें, शायद ही कोई संवैधानिक संस्था बची हो, जिसपर उन्होंने निशाना न साधा हो।
राहुल गांधी का यह तर्क रहा है कि वे भारत की ‘असली तस्वीर’ दुनिया के सामने रख रहे हैं। लेकिन, आलोचना और बदनामी में एक बारीक फर्क होता है। एक राष्ट्रीय नेता को यह समझना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिए गए बयान सिर्फ घरेलू राजनीति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वे भारत की छवि, निवेशकों के भरोसे और वैश्विक कूटनीतिक संबंधों पर भी असर डालते हैं।





