टाटा ग्रुप में कोई महिला अभी तक सीईओ के ओहदे पर क्यों जगह नहीं बना सकी?

आर.के. सिन्हा

टाटा ग्रुप ने अपनी इस तरह की छवि बनाई है, जिसके चलते उसे सिर्फ मुनाफा कमाने वाले ग्रुप के रूप में ही नहीं देखा जाता है। यह एक सामान्य बात तो नहीं है। टाटा ग्रुप को भारत के विकास तथा प्रगति से भी जोड़कर देखा जाता है। पर, यह समझ नहीं आता कि नमक से स्टील का उत्पादन करने वाले और अपनी कई एयरलाइन तक चलाने वाले टाटा ग्रुप की किसी भी कंपनी में कोई महिला पेशेवर मैनेजिंग डायरेक्टर या सीईओ के ओहदे पर अभी तक अपनी जगह क्यों जगह नहीं बना सकी?

टाटा ग्रुप की 100 से अधिक छोटी बड़ी कंपनियां बताई जाती हैं। आमतौर पर टाटा ग्रुप की कंपनियों की चर्चा होने लगती है तो टाटा स्टील,टाटा मोटर्स, वोल्टास, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस), जागुआर मोटर्स जैसी कंपनियों का ही ज्यादा जिक्र होता है। पर इसका हिस्सा तो बहुत सी श्रेष्ठ कंपनियां हैं। जिसे टाटा समूह को जमशेदजी टाटा, सर दोराब टाटा, जेआरडी टाटा, रूसी मोदी, रतन टाटा और अब एन. चंद्रशेखरन जैसी महान शख्सियतों ने नेतृत्व दिया हो, वहां पर किसी महिला को शिखर पर जगह न मिले , यह हैरान अवश्य करता है। टाटा ग्रुप के मौजूदा चेयरमेन एन. चंद्रशेखरन ने भी हाल ही में एक इंटरव्यू में माना कि उनके समूह में महिला पेशेवर शिखर पर जगह नहीं बना सकी हैं। इस तरफ हमें सोचना होगा।

सब जानते हैं कि टाटा ग्रुप के प्रोमोटर्स पारसी हैं और मुंबई से संबंध रखते हैं। टाटा की तरह ही गोदरेज उद्योग समूह के प्रमोटर भी पारसी हैं तथा मुंबई से ही हैं। गोदरेज ने अपने यहां आधी दुनिया को शिखर पर जगह देने में कसर नहीं छोड़ी। नायरिका होल्कर 12,000 करोड़ रुपये की कंपनी गोदरेज एंड बायस की मैनेजिंग डायरेक्टर बनने जा रही हैं। नायरिका ताले से लेकर रेफ्रिजरेटर तक बनाने वाली इस 125 साल पुरानी कंपनी में अभी एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। उन्हें जमशेद जी गोदरेज के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था। जमशेद गोदरेज की भांजी हैं नायरिका। जमशेद गोदरेज ने उन्हें गुरु दक्षिणा देते हुए सलाह दी है कि वह फाइनेंस के मामले में कंजरवेटिव रुख अपनाएं और कंपनी के लिए अगले 125 साल की योजना बनाकर चलें। नायरिका ने 2017 में गोदरेज के बोर्ड को जॉइन किया था। उन्होंने अमेरिका को कोलाराडो कॉलेज से फिलॉसफी और इकनॉमिक्स में बीए करने के बाद ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से एलएलबी और एलएलएम की डिग्री ली थी।

गोदरेज और नयारिका के बाद अब बात करेंगे देश के एक अन्य उद्योग समूह की जिसके प्रोमोटर पारसी हैं। हम बात कर रहे हैं वाडिया ग्रुप की। इसके चेयरमेन नुस्ली वाडिया ने अपने ग्रुप की एक महत्वपूर्ण कंपनी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया था विनीता बाली को। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के पौत्र नुस्ली वाडिया ने विनीता बाली में काबिलियत देखी और उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंप दी। विनीता ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए भी किया। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा ग्रुप की कंपनी वोल्टास से की थी, जहां उन्होंने शीतल पेय ब्रांड रसना को लांच किया था। उन्होने चौदह वर्षों तक कैडबरी में काम किया, जहां उन्होने भारत और अफ्रीका में कंपनी की बाजार का विस्तार किया। वर्ष 1994 में, उन्होने कोका कोला में विपणन निदेशक के रूप में कार्य किया और उसके बाद वे लैटिन अमेरिका के लिए विपणन उपाध्यक्ष नियुक्त हुईं। कोक में अपने नौ वर्षों के दौरान, उन्होने विपणन की रणनीति के अंतर्गत उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। कहने का मतलब यह है कि विनीता बाली ने कोरपोरेट संसार में खूब मेहनत से अपनी जगह बनाई और वह शिखर तक गईं।

टाटा ग्रुप की तरह से जब गोदरेज और वाडिया ग्रुप में महिलाएं अहम पदों पर पहुँच रही हैं, तो सवाल तो पूछा जाएग कि उन्हें टाटा ग्रुप में महिलाओं को हक मिलने में देरी क्यों हो रही है? टाटा ग्रुप के कामकाज पर नजर रखने वालों को पता है कि इधर अजित केरकर (ताज होटल), एफ.सी. सहगल (टीसीएस), प्रख्यात विधिवेत्ता ननी पालकीवाला (एसीसी सीमेंट), रूसी मोदी (टाटा स्टील) के मैनेजिंग डायरेक्टर रहे हैं। ये सभी भारत के कोरपोरेट जगत के बेहद खास नाम रहे हैं। अगर बीत दसेक सालों की बात करें तो एन. चंद्रशेखरन और सी.डी. गोपीनाथ (टीसीएस) ने अपने नेतृत्व के गुणों से टाटा ग्रुप को भरपूऱ लाभ और प्रतिष्ठा दिलवाई है। पर टाटा ग्रुप में किसी महिला सीईओ का न होना खल जाता है। इसलिए क्योंकि टाटा ग्रुप भारत का सबसे सम्मानित औद्योगिक घराना है।

देखिए ये सब जानते हैं कि भारत में भी आधी दुनिया अपने हिस्से के आसमान को छून रही है। इनकी उपलब्धियां सुकून दती हैं। ये कॉरपोरेट संसार में भी शिखर पदों पर पहुंच रही है। सरकारी क्षेत्र के उपक्रम हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में निशि वासुदेवा मैनेजिंग डायरेक्टर तथा ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) में अलका मित्तल का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त किया जाना साफ करता है कि अब महिला पेशेवरों को सरकारी उपक्रमों के सबसे ऊंचे पायदान पर काम करने के अवसर मिल रहे हैं। अब उनकी क्षमताओं पर सबको भरोसा है। इस बीच, माधवी पुरी बुच भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) की प्रमुख हैं। सेबी की चेयरपर्सन बनने वाली बुच पहली महिला हैं। हां, ये सच है कि बॉम्बे शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड में अब भी सिर्फ 18 फीसद ही महिला पेशेवर हैं। साफ है कि अभी कम से कम सूचीबद्ध कंपनियों में महिला निदेशकों की संख्या 45-50 फीसद होने में वक्त लगेगा।

देश में सन 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण की जो बयार बहने लगी तो उसने कॉरपोरेट संसार का चेहरा बदलना चालू कर दिया। उसके बाद धीरे-धीरे आधी दुनिया आंत्रप्यूनर भी बनने लगीं और उन्हें दिग्गज कंपनियों में अहम पद भी हासिल होने लगे। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि अवसरों की बाढ़ सी आ गई। बहरहाल, दुर्गा, सीता और गांधारी की पूजा करने वाले भारत में आधी दुनिया अपना हिस्सा लेती रहेंगी। उससे न तो टाटा ग्रुप अछूता रहेगा और न ही कोरपोरेट जगत।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)