सभी बड़े फैसले में अमित शाह ही फोकस में क्यों ?

Why is Amit Shah in focus in all major decisions?

गोविन्द ठाकुर

“…बिगत कुछ समय में देखें तो यह साफ दिख जायेगा कि प्रधानमंत्री मोदी संसद भवन हो या फिर संसद के बाहर सभी बड़े फैसले गृहमंत्री अमित शाह को ही आगे करके कर रहे हैं..चाहे वह नया नवेला वक्ख कानून हो या फिर पहले का तीन तलाक, यूसीसी, एनआरसी, 370धारा, .. वो सारे मुददे जो हिन्दुत्व या फिर राष्टृवादी हो सभी पर अमित शाह ही फोकस में होते हैं..क्या यह संयोग है या फिर कोई प्रयोग… वैसे मोदी जी के विकल्प की चर्चा जोर पकड़ रही है तो कहीं उसी दिशा में बांकियो से आगे निकलने की होड़ तो नहीं है…”

यह अनजाने में नहीं हुआ कि इस बार संसद के बजट सत्र में पूरा फोकस अमित शाह के ऊपर रहा है और सत्र के बाद भी अमित शाह राजनीति करने और प्रशासन संभालते दिख रहे हैं। वैचारिक मुद्दों से जुड़े जो भी मुद्दे भारत के विशाल हिंदू मध्यवर्ग के मन में हैं उनका समाधन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं। यह पूरा काम योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है और इसका मकसद उत्तर मोदी काल यानी पोस्ट मोदी एरा के लिए भाजपा का नेतृत्व तैयार करना है। कई जानकार यह मान रहे हैं कि अगर यथास्थिति रहती है यानी सब कुछ अभी जैसा चल रहा है वैसे चलता रहा तो पोस्ट मोदी एरा में देश की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा राहुल गांधी होंगे। भाजपा की ओर से कोई भी चेहरा अखिल भारतीय स्तर पर उनके मुकाबले का नहीं दिख रहा है। तभी अमित शाह की राजनीतिक और प्रशासनिक क्षमता को उभारने और उसके प्रचार की रणनीति पर काम हो रहा है।

इस रणनीति की एक झलक वक्फ संशोधन बिल पर संसद में हुई चर्चा में दिखी। संसद के दोनों सदनों में बिल पास कराने और विपक्ष का जवाब देने का जिम्मा अमित शाह ने संभाल रखा था। बिल अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू का था लेकिन उस पर सबसे ज्यादा अमित शाह बोले। इस बिल का प्रशासनिक मकसद जो भी रहा हो लेकिन राजनीतिक मकसद यह है कि हिंदुओं में यह मैसेज जाए कि भाजपा की सरकार है तो मुस्लिमों को सुधारा जा रहा है। तीन तलाक के फैसले से यही मैसेज गया था। लेकिन तब यह कहा गया था कि मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को राहत दिलाई है। इस बार अमित शाह के वक्फ बोर्ड कानून बना कर मुस्लिम संगठनों को ठीक करने मैसेज दिया गया है। तभी प्रधानमंत्री मोदी वक्फ बिल के दौरान संसद में नहीं गए। वे बिम्सटेक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए गुरुवार को बैंकॉक गए। लोकसभा में बुधवार को जब बिल पेश हुआ तो वे दिल्ली में थे लेकिन सदन में नहीं गए। इतना ही नहीं उनके बाद भाजपा के दोनों बड़े नेता राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी भी इस बिल पर नहीं बोले। जब अमित शाह बोल रहे थे तब अगली बेंच पर वे अकेले थे। उस बेंच पर मोदी, राजनाथ और गडकरी तीनों बैठते हैं लेकिन तीनों सदन में नहीं थे। वक्फ बिल का पूरा क्रेडिट शाह को जाने दिया गया।

इसके बाद संसद का सत्र खत्म होते ही अमित शाह छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा पहुंचे। वहां उन्होंने नक्सलियों से एक भावुक अपील करते हुए कहा कि कोई भी नक्सली मारा जाता है तो किसी को अच्छा नहीं लगता इसलिए उनको हथियार छोड़ कर मुख्यधारा में लौट आना चाहिए। लेकिन साथ ही यह संकल्प भी दोहराया कि अगले साल चैत्र नवरात्रि तक नक्सलवाद का नामोनिशान मिट जाएगा। वक्फ और मुस्लिम की तरह नक्सलवाद और अरबन नक्सल भी मध्य वर्ग की एक ग्रंथि है। दंतेवाड़ा से लौट कर अमित शाह तीन दिन के लिए जम्मू कश्मीर गए। वहां उन्होंने सुरक्षा स्थितियों का जायजा लिया और विकास के कामों को लेकर बैठक की। ध्यान रहे कश्मीर भी भारत के लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है। सो, तमाम भावनात्मक और वैचारिक मुद्दे अब अमित शाह हैंडल कर रहे हैं।