ललित गर्ग
भारत का सड़क यातायात तमाम विकास की उपलब्धियों एवं प्रयत्नों के असुरक्षित एवं जानलेवा बना हुआ है, सुविधा की खूनी एवं हादसे की सड़कें नित-नयी त्रासदियों की गवाह बन रही है। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर हुए दिल दहलाने एवं रूह कम्प-कम्पाने वाले एक भीषण एवं दर्दनाक हादसे में एक परिवार के कार में सवार छह लोगों की मौत ने एक बार फिर यह खौफनाक एवं डरावना तथ्य उजागर किया कि अपने देश में जैसे-जैसे अच्छी एवं सुविधा की सड़कें बन रही हैं, वैसे-वैसे ही दुर्घटनाएं या यातायात नियमों की अवहेलना भी बढ़ रही हैं और उनमें जान गंवाने वालों की संख्या भी। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर हादसा इसलिए हुआ, क्योंकि एक कार की भिड़ंत गलत दिशा से आ रही बस से हो गई। यह अंधेरगर्दी एवं घोर लापरवाही है कि यह बस करीब आठ किमी तक गलत दिशा में चलती रही, लेकिन किसी ने उसे रोका-टोका नहीं। आखिर कोई यह देखने वाला क्यों नहीं था कि बस चालक ट्रैफिक नियमों की अनदेखी कर अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डाल रहा है? जिस समय यह हादसा हुआ, उसके बाद भी उसी हाइवे एवं अन्य सड़क मार्गों पर ऐसी ही लापरवाही देखी गयी। ट्रेफिक पुलिस का ध्यान आज भी हादसों एवं यातायात नियमों की अवहेलना को रोकने की बजाय अपनी जेब भरने में लगा रहता है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय लोगों के सहयोग से वर्ष 2025 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत की कमी लाना चाहता है, लेकिन यह काम तभी संभव है जब सड़क दुर्घटनाओं के मूल कारणों का निवारण करने के लिए ठोस कदम भी उठाए जाएंगे। जैसा दर्दनाक हादसा दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर हुआ, वैसे देश भर में होते ही रहते हैं। एक्सप्रेसवे, हाईवे आदि पर होने वाले हादसों में न जाने कितने लोग मरते और अपंग होते हैं, लेकिन इसके ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं कि उनमें ट्रैफिक नियमों का पालन हो। यह तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए कि एक्सप्रेसवे या हाईवे पर गलत दिशा में वाहन चलें, खड़े रहे या जानवर उनमें प्रवेश करे, लेकिन ऐसा खूब होता है। एक्सप्रेसवे पर दोपहिया वाहन भी दिख जाते हैं और कभी-कभी तो तीन सवारी के साथ। सारे करतब मोटर साईकिल सवार इन सुविधा की आधुनिक सड़कों पर करते देखें जाते हैं। ट्रैफिक नियमों का ऐसा खुला उल्लंघन ही जानलेवा दुर्घटनाओं का कारण बनता है।
यह गंभीर चिंता का विषय है कि सड़कों पर बेलगाम गाड़ी चलाना कुछ लोगों के लिए मौज-मस्ती एवं फैशन का मामला होता है लेकिन यह कैसी मौज-मस्ती या फैशन है जो कई जिन्दगियां तबाह कर देती है। ऐसी दुर्घटनाओं को लेकर आम आदमी में संवेदनहीनता एवं लापरवाही की काली छाया का पसरना त्रासद है और इससे भी बड़ी त्रासदी सरकार की आंखों पर काली पट्टी का बंधना है। हर स्थिति में मनुष्य जीवन ही दांव पर लग रहा है। इन बढ़ती दुर्घटनाओं की नृशंस चुनौतियों का क्या अंत है? हमारे देश की तुलना में अमेरीका में पांच गुणा दुर्घटनाएं होती है तो जापान में लगभग हमारे देश जितनी ही, लेकिन वहां मरने वालों की संख्या नगण्य है, क्योंकि वहां के लोगांें में यातायात अनुशासन देखने को मिलता है, हमारे देश में ऐसा अनुशासन लाने के लिये सरकार को व्यापक प्रयत्न करने होंगे।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की ओर से दी गई यह जानकारी हतप्रभ करने वाली है कि देश में प्रतिदिन करीब 415 लोग यानी प्रति वर्ष डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाते हैं। यह बहुत बड़ी संख्या है, लेकिन इसके बाद भी सड़क दुघर्टनाओं को रोकने के लिए वैसे प्रयत्न एवं उपाय नहीं किए जा रहे, जैसे अनिवार्य हो चुके हैं। अपने देश में यातायात पुलिस की भारी कमी है, लेकिन उसे दूर करने का काम प्राथमिकता से बाहर है। जहां कहीं एक्सप्रेसवे, हाईवे आदि पर यातायात पुलिसकर्मी होते भी हैं, वे खानापूर्ति करते हैं। वे यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों का चालान कर कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। इन त्रासद आंकड़ों ने एक बार फिर यह सोचने को मजबूर कर दिया कि आधुनिक और बेहतरीन सुविधा की सड़के केवल रफ्तार एवं सुविधा के लिहाज से जरूरी हैं या फिर उन पर सफर का सुरक्षित होना पहले सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, तेज गति के लिए उपयुक्त इन सड़कों पर हर किस्म के वाहन गलत तरीके से चलते हैं।
‘दुर्घटना’ एक ऐसा शब्द है जिसे पढ़ते ही कुछ दृश्य आंखांे के सामने आ जाते हैं, जो भयावह होते हैं, त्रासद होते हैं, डरावने होते हैं, खूनी होते हैं। अध्ययन के मुताबिक, खूनी सड़कों एवं त्रासद दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं- वाहनों की बेलगाम या तेज रफ्तार, गलत दिशा में एवं शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट नहीं पहनना और सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करना शामिल हैं। भले ही हर सड़क दुर्घटना को केन्द्र एवं राज्य सरकारें दुर्भाग्यपूर्ण बताती है, उस पर दुख व्यक्त करती है, मुआवजे का ऐलान भी करती है लेकिन बड़ा प्रश्न है कि एक्सीडेंट रोकने के गंभीर उपाय अब तक क्यों नहीं किए जा सके हैं? जो भी हो, सवाल यह भी है कि इस तरह की तेज रफ्तार सड़कों पर लोगों की जिंदगी कब तक इतनी सस्ती बनी रहेगी? सचाई यह भी है कि पूरे देश में सड़क परिवहन भारी अराजकता का शिकार है। सबसे भ्रष्ट विभागों में परिवहन विभाग शुमार है।
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर जो बस कार सवार लोगों के लिए काल बनी, वह इसी हाइवे पर पूर्व में भी अनेक बार गलत दिशा में बस चलाता रहा है, उसका कम से कम 15 बार चालान हो चुका था। इसके बाद भी उसके चालक की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। यह समझा जाना चाहिए कि इस तरह के दिखावे के चालान से अराजक यातायात और उसके चलते होने वाले जानलेवा हादसों पर लगाम नहीं लगने वाली। लगाम तब लगेगी जब यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों को कठोर दंड का भागीदार बनाया जाएगा। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो यह है कि लोग यह जानते हुए भी मनमाने तरीके से वाहन चलाते हैं कि वे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो सकते हैं।
हमारी ट्रेफिक पुलिस एवं उनकी जिम्मेदारियों से जुड़ी एक बड़ी विडम्बना है कि कोई भी ट्रेफिक पुलिस अधिकारी चालान काटने का काम तो बड़ा लगन एवं तन्मयता से करता है, उससे भी अधिक रिश्वत लेने का काम पूरी जिम्मेदारी से करता है, प्रधानमंत्रीजी के तमाम भ्रष्टाचार एवं रिश्वत विरोधी बयानों एवं संकल्पों के यह विभाग धडल्ले से रिश्वत वसूली करता है, लेकिन किसी भी यातायात अधिकारी ने यातायात के नियमों का उल्लघंन करने वालों को कोई प्रशिक्षण या सीख दी हो, नजर नहीं आता। यह स्थिति दुर्घटनाओं के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है। परिवहन नियमों का सख्ती से पालन जरूरी है, केवल चालान काटना समस्या का समाधान नहीं है। देश में 30 प्रतिशत ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी हैं। परिवहन क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार है, लिहाजा बसों का ढंग से मेनटेनेंस भी नहीं होता। इनमें बैठने वालों की जिंदगी दांव पर लगी होती है। देश भर में बसों के रख-रखाव, उनके परिचालन, ड्राइवरों की योग्यता और अन्य मामलों में एक-समान मानक लागू करने की जरूरत है, तभी देश के नागरिक एक राज्य से दूसरे राज्य में निश्चिंत होकर यात्रा कर सकेंगे। तेज रफ्तार से वाहन दौड़ाने वाले लोग सड़क के किनारे लगे बोर्ड़ पर लिखे वाक्य ‘दुर्घटना से देर भली’ पढ़ते जरूर हैं, किन्तु देर उन्हें मान्य नहीं है, दुर्घटना भले ही हो जाए।