क्यों मोहम्मद इकबाल को बनाया जाता है महान?

आर.के. सिन्हा

उर्दू के शायर मोहम्मद इकबाल एक बार फिर से खबरों में हैं। दरअसल वे इस बार खबरों में इसलिए हैं, क्योंकि; उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के फरीदपुर स्थित एक सरकारी स्कूल में ‘मदरसे वाली प्रार्थना’ कराये जाने का आरोप लगाते हुए एक स्कूल के प्रधानाचार्य और शिक्षा मित्र के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है। इन पर आरोप है कि ये सरकारी स्कूल में ‘मेरे अल्लाह, मेरे अल्लाह’ बोल वाली एक प्रार्थना कराकर दूसरे धर्मों की धार्मिक भावनाएं आहत कर रहे थे। इन पर जो भी कार्रवाई होनी होगी वह तो हो ही जाएगी। वैसे जिस रचना पर बवाल मचा है वह कहते हैं कि मोहम्मद इकबाल ने ही लिखी थी। अब कुछ सेक्युलरवादी यह कह रहे हैं कि मोहम्मद इकबाल तो बहुत महान शायर थे। उनकी लिखी रचना को स्कूल में पढ़े जाने पर बवाल करना गलत है।

इकबाल को महान बताने वालों को पता नहीं है कि ये वही शायर इकबाल हैं, जिन्होंने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के विरोध में गोरी सरकार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं लिखा या बोला । जब सारा देश उस जघन्य नरसंहार से सन्न था, तब इतना बड़ा शायर शांत बैठा था। वे उन मासूमों के चीखने की आवाजों पर कुछ भी नहीं लिख सके थे। उनकी कलम की स्याही शायद सूख गई थी। हालांकि, वे तब अमृतसर से कुछ ही दूर लाहौर में बैठे थे। जब इकबाल निर्विकार भाव से लाहौर में बैठे थे तब गुरुदेव रविन्द्रनाथ टेगौर ने अपना सर का खिताब ब्रिटिश सरकार को वापस कर दिया था। यह फर्क समझिये इन दो महान कवि आत्माओं का I गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने यह उपाधि विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक जलियांवाला कांड (1919) की घोर निंदा करते हुए लौटाई थी। उन्हें साल 1915 में गोरी सरकार ने ‘नाइट हुड’ की उपाधि दी थी। इसके विपरीत इकबाल ने जलियांवाला नरसंहार कत्लेआम के कुछ सालों के बाद 1922 में सर की उपाधि ली। शायद अंग्रेजों ने उनकी चुप्पी का इनाम दिया I

इकबाल को समझने के लिए उनका 29 दिसंबर, 1930 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के प्रयागराज में हुए सम्मेलन में दिए भाषण को पढ़ लेना चाहिए। वे अपनी तकरीर में यह खुली मांग करते हैं कि पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा राज्यों का विलय कर दिया जाए। ये सभी राज्य मुस्लिम बहुल थे। वे इनके लिए अतिरिक्त स्वायत्ता की मांग करते हैं। होना यह चाहिए था कि वे इन राज्यों के अल्पसंख्यकों जैसे हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों आदि के हितों के मसलों को भी उठाते। पर वे यह नहीं करते। इन सभी राज्यों में मुसलमानों की आबादी 70 फीसद से अधिक थी। तो भी वे मात्र मुस्लिम बहुसंख्यकों के पक्ष में बोल रहे थे । मतलब वे मुस्लिम बहुल राज्यों में उन्हीं को अतिरिक्त शक्तियां देने की वकालत करते थे । इन सभी सूबों को मिलाकर ही आगे चलकर पाकिस्तान बनता है। इसमें पूर्वी बंगाल और जुड़ जाता है। हालांकि वह पाकिस्तान के बनने के 25 सालों के बाद ही अलग भी हो जाता है। तो इकबाल ने एक तरह से पाकिस्तान का ख्वाब 1930 में ही देखना चालू कर दिया था।

हां, इकबाल ने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा… ’ जैसा अमर तराना भी लिखा। यह भी बताया जाता है कि उन्होंने राम को इमाम ए हिन्द भी कहा। यह सब बातें भी सही हैं। पर यह नहीं बताया जाता कि ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान…’ लिखने वाले इकबाल आगे चलकर पूरी तरह बदल जाते हैं। उनकी यह कविता साप्ताहिक ‘इत्तिहाद’ के 16 अगस्त, 1904 के अंक में छपी थी। लेकिन 1904 का इकबाल 1905 में लॉ की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड जाते हैं । वे वहां से फिर दर्शन में शोध करने के लिए जर्मनी चले जाते हैं। वे 1909 में पुनः भारत लौटते हैं। अब वे पूरी तरह बदलते हैं। वे 1910 में तराना-ए-मिल्ली कविता लिखते हैं। इसमें राष्ट्रवाद के बजाय मुसलमानों को बतौर मुस्लिम होने पर गर्व करने की सीख दी जाती है।

मोहम्मद इकबाल से राजधानी के जोरबाग में रहने वाले दीनानाथ मल्होत्रा परिवार को बहुत गिला रहा है। इसकी वजह है कि इकबाल उस शख्स के जनाजे में शामिल हुए थे जिसने मल्होत्रा जी के पिता श्री राजपाल का कत्ल किया था। हत्यारे का नाम था इल्मउद्दीन। इकबाल उस हत्यारे के जनाजे में खुलेआम शामिल हुए थे। दरअसल लाहौर में इल्मउद्दीन ने 1923 में प्रताप प्रकाशन के मालिक राजपाल को मार डाला था। राजपाल ने 1923 में रंगीला रसूल नाम से एक किताब छापी थी। इसके छपते ही पंजाब प्रांत में कठमुल्ला भड़क गए थे। उनका कहना था कि लेखक ईशनिंदा का दोषी है। वे लेखक की जान के प्यासे हो गए। लाहौर में उस लेखक के खिलाफ आंदोलन चालू हो गया। पर जब वो नहीं मिला तो इल्मउद्दीन ने उस किताब के प्रकाशक राजपाल को ही मार डाला। हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया गया।

इल्मउद्दीन उसी तरह से हीरो बन गया कठमुल्लों का, जैसे कुछ साल पहले उसी लाहौर में पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर को मारने वाला उनका सुरक्षा कर्मी हीरो बन गया था। सलमान तासीर को मुमताज कादरी ने इसलिए ही मार दिया था, क्योंकि उन्होंने आसिया बीवी नाम की एक सीधी-सादी ईसाई महिला का यह कहते हुए साथ दिया था कि इस पर ईशनिंदा का केस चलाना गलत है। राजपाल जी के पुत्र और हिन्द पॉकेट बुक्स के फाउंडर दीनानाथ मल्होत्रा बताते थे कि जब इल्मउद्दीन पर केस चल रहा था उस वक्त इकबाल उसके पक्ष में माहौल बना रहे थे। यानी वो एक हत्यारे के साथ खुलकर खड़े थे। इकबाल के हक में मुंबई से मोहम्मद अली जिन्ना भी इल्मउद्दीन के हक में पैरवी करने आए थे। पर कोर्ट ने इल्मउद्दीन को फांसी की सजा सुनाई थी। उसे 1929 में फांसी के बाद जब लाहौर दफनाने के लिए कब्रिस्तान में लेकर जा रहे थे तब उस जनाजे में इकबाल भी थे। दीनानाथ मल्होत्रा कहते थे कि इकबाल बड़े शायर थे, पर उन्होंने एक हत्यारे का खुलकर साथ दिया था। दीनानाथ जी का चंदेक साल पहले निधन हो गया था। दीनानाथ मल्होत्रा ने ही भारतीय कापी राइट एक्ट का प्रारूप तैयार किया था। वे फेडरेशन पब्लिशर्स ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे। पद्मश्री से सम्मानित श्री मल्होत्रा को यूनेस्को ने भी सम्मानित किया था। वह हिन्द पाकेट बुक्स के भी एमेरिटस अध्यक्ष रहे। उन्हें 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। दीनानाथ मल्होत्रा ने 1944 में पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर में मास्टर्स में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। 13 दिसंबर 2017 को इनकी मृत्यु हो गई थी। बेहतर होगा कि मोहम्मद इकबाल के व्यक्तित्व और कृतित्व का ईमानदारी से अध्ययन हो।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभंकार और पूर्व सांसद हैं)