राजेश कुमार पासी
बंगाल में कानून का शासन खत्म हो गया है क्योंकि वहां कोई सुरक्षित नहीं है लेकिन सवाल उठता है कि क्या एक गैंग रेप की घटना के बाद किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है । अदालत की टिप्पणियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बंगाल राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पूरी तरह से उपयुक्त राज्य है । किसी राज्य में गैंगरेप की घटना होना राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार नहीं बन सकता लेकिन राज्य सरकार ने जिस तरह से इस घटना पर कार्यवाही की है, इसके कारण बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है । कोलकाता हाई कोर्ट की टिप्पणियों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि अदालत को राज्य सरकार पर बिल्कुल भरोसा नहीं है । पहली सुनवाई में ही अदालत ने मामला सीबीआई के हवाले कर दिया । महिला की लाश ही बताती है कि उसके साथ गैंगरेप किया गया है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी इस ओर इशारा कर रही है , इसलिए पुलिस पर सवाल उठता है कि उसने क्यों इस घटना को आत्महत्या बताने की कोशिश की । अदालत ने यही कहा है कि हमें पुलिस पर विश्वास नहीं है. हमें समझ नहीं आ रहा है कि पुलिस ने इसे आत्महत्या साबित करने की कोशिश क्यों की ।
ये घटना देश, राज्य, पुलिस, लोकतंत्र, मानवता और राज्य सरकार के लिए बहुत शर्मनाक है । अदालत पूछ रही है कि गैंग रेप को छुपाने की कोशिश क्यों की गई है, क्या किसी को बचाने की कोशिश की जा रही है । अदालत ने कहा है कि सरकार पीड़िता और उसके परिवार के साथ खड़ी दिखाई नहीं दे रही है । सवाल उठता है कि फिर सरकार किसके साथ खड़ी हुई है । हैरानी की बात यह है कि यह सब एक महिला की सरकार में हो रहा है । सवाल यह भी है कि घटना के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वाले डॉक्टरों पर हमला क्यों किया गया है जबकि वो एक जगह बैठकर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे । हमलावरों ने घटनास्थल को नुकसान पहुंचाने की कोशिश क्यों की । राज्य पुलिस हमलावरों को क्यों नहीं रोक सकी ।
इन घटना के विरोध में पूरे देश के डॉक्टर कई बार काम रोक चुके हैं जिसके कारण देश भर में मरीजों को परेशानी हो रही है । बंगाल सरकार की नाकामी के कारण पूरे देश में समस्या खड़ी हो गई है । ममता बनर्जी हालात को संभालने की जगह खुद ही प्रदर्शन कर रही हैं । सवाल उठता है कि वो किसके खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं, वो तो बंगाल की मुख्यमंत्री हैं तो इंसाफ की मांग किससे कर रही है । अगर वो इंसाफ करती तो सीबीआई को मामला नहीं जाता । बंगाल पुलिस घटना के विरोध में सोशल मीडिया में लिखने वालों को नोटिस भेज रही है, देखा जाये तो ये मीडिया की आवाज दबाने की कोशिश है । जो मुख्यमंत्री दिन-रात संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देती रहती है, उसकी पुलिस का रवैया पूरी तरह से लोकतंत्र विरोधी दिखाई दे रहा है । देखा जाए तो बंगाल में संविधान के अनुसार सरकार नहीं चल रही है । यहां सीबीआई, ईडी और केंद्रीय सुरक्षा बलों पर हमले किये जाते हैं । अगर केन्द्र सरकार राष्ट्रपति शासन लगा देती है तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता लेकिन केन्द्र सरकार ऐसी कोई कोशिश करती दिखाई नहीं दे रही है ।
मीडिया इसको लेकर केन्द्र सरकार से सवाल पूछ रहा है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाया जा रहा है । भाजपा समर्थक इस मामले में मोदी सरकार से नाराज हैं और निराश भी हैं । उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि केन्द्र सरकार बंगाल में कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है । लेकिन सवाल तो यह भी है कि क्या अकेला बंगाल ही है, जहां राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए । राष्ट्रपति शासन तो दिल्ली में भी लगना चाहिए क्योंकि मुख्यमंत्री केजरीवाल पिछले 6 महीने से जेल में हैं और दिल्ली सरकार बिना मुख्यमंत्री के चल रही है । दिल्ली में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाया जा रहा है। मणिपुर कई महीनों तक दंगों की आग में जलता रहा लेकिन वहां भी राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया । पंजाब में कानून व्यवस्था बहुत बुरी हालत में है लेकिन केंद्र सरकार ने एक चेतावनी तक पंजाब सरकार को नहीं दी है।
प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति कुछ अलग किस्म की है, वो सख्त फैसले लेने वाले नेता हैं लेकिन जनता के आदेश के खिलाफ नहीं जाते । वो चाहते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से बनी हुई सरकार लोकतांत्रिक तरीके से ही हटाई जाए तो बेहतर है। जब तक किसी राज्य में ऐसे हालात नहीं उत्पन्न होते कि उसके कारण देश खतरे में आ जाए तब तक मोदी राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार करने वाले नहीं हैं। वो जानते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से लड़कर जो जीत मिलती है वो केंद्र की शक्ति का इस्तेमाल करके नहीं मिल सकती । वो अच्छी तरह से भारत की जनता की मानसिकता को समझते हैं कि ये जनता नेताओं के साथ बड़ी जल्दी सहानुभूति दिखाने लगती है। दिल्ली में इसलिए राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया है क्योंकि मोदी नहीं चाहते कि दिल्ली सरकार को बर्खास्त करने से केजरीवाल को शहीद बनने का मौका मिल जाए । मोदी जानते हैं कि केजरीवाल की राजनीति धीरे धीरे खत्म होने की ओर जा रही है । केजरीवाल की जेल से सरकार चलाने को जिद्द पूरी पार्टी पर भारी पड़ रही है इसलिए बहुत जरूरी होने पर भी दिल्ली में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया है। केजरीवाल को दोबारा खड़ा होने का मौका केंद्र सरकार नहीं देना चाहती है। केजरीवाल की जिद के पीछे एक बड़ी वजह भी यही है कि वो चाहते हैं कि केंद्र सरकार उनकी सरकार को बर्खास्त कर दे । पंजाब के हालात से मोदी अच्छी तरह से वाकिफ हैं लेकिन पंजाब के बारे में वो कुछ नहीं बोलते । बंगाल में पहले कई बार ऐसे मौके आए हैं जब वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता था लेकिन केंद्र सरकार इस बारे में कभी कुछ करने की कोशिश भी करती दिखाई नहीं दी।
अक्सर पत्रकार यह बात कहते हैं कि अगर दिल्ली और बंगाल में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता तो संविधान से राष्ट्रपति शासन का प्रावधान ही खत्म कर देना चाहिए। भाजपा समर्थक भी इसी बात को लेकर परेशान रहते हैं। सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति शासन से इन राज्यों की समस्या खत्म हो जाएगी। मेरा मानना है कि समस्या घटने की अपेक्षा बढ़ सकती है। राष्ट्रपति शासन कोई स्थाई व्यवस्था नहीं है, वो तो सिर्फ एक अस्थाई व्यवस्था है । स्थाई व्यवस्था तो राज्य में चुनी हुई सरकार का शासन ही है। दिल्ली में कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए दिल्ली सरकार को ही तय करना चाहिए कि क्या वो चुनाव तक बिना मुख्यमंत्री के सरकार चलाएगी । जहां तक दिल्ली की जनता की बात है तो वो अपना विरोध जताने के लिए सड़को पर उतर सकती थी लेकिन उसे कोई परवाह नहीं है। बंगाल की बात करें तो अभी लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी को बड़ी जीत मिली है।
भाजपा को पिछले चुनाव से भी कम सीटें मिली हैं। कांग्रेस और सीपीएम का सूपड़ा साफ हो गया है। जब जनता ममता बनर्जी के साथ हैं तो मोदी क्यों बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाएं। अगर जनता राज्य सरकार से दुखी है तो लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी कैसे जीत गईं। पंजाब में भाजपा को लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली है। मोदी नहीं चाहेंगे कि पंजाब में सरकार के साथ कोई छेड़छाड़ की जाए । महाराष्ट्र में सरकार के साथ छेड़छाड़ का नतीजा भाजपा भुगत चुकी है। अगर महाराष्ट्र में विपक्षी दलों की सरकार चल रही होती तो भाजपा को वहां लोकसभा चुनाव में नुकसान नहीं होता। मोदी बहुत दूर की सोच कर राजनीति करते हैं और वो देश की जनता की मानसिकता को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं इसलिए सोच समझ कर कदम उठाते हैं, चाहे उसके कारण उनके समर्थक ही क्यों न नाराज हो जाएं। इसलिए राष्ट्रपति शासन मोदी की रणनीति में शामिल नहीं है, देशहित में जरूरत पड़ी तो इसका इस्तेमाल हो सकता है।