अशोक मधुप
महिला आरक्षण बिल बुद्धवार को लोकसभा में पारित हो गया।भाजपा के बहुमत को देखते हुए लोकसभा में बहस सिर्फ खानापूरी तक ही रही। उसमें आए सुझाव पर भी विचार होने की उम्मीद नही है । संसद में भाजपा का बहुमत है, इसलिए बिल तो पास हो ही जाएगा।इस बिल में महिलाओं को संसद और विधान सभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था है। महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था, लेकिन पारित नहीं हो सका था। बार− बार ये बिल संसद में आया किंतु राजनैतिक दलों की इच्छाशक्ति न होने और अड़ंगेबाजी के कारण ये संसद के दोनों सदनों में पारित नही हो पाया। अब भाजपा के बहुमत और उसके रवैये से लगता है कि ये बिल पास हो जाएगा। किंतु देश में महिलाओं की आबादी आधी है। आधी आबादी को उनका आधा हिस्सा क्यों नही दिया जा रहा।33 प्रतिशत हिस्सा देने की बात क्यों हो रही है। 33 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल ही संसद में 27 साल से अटका है। आधे हिस्से की बात चली तो शायद ये बिल कभी पास ही नहीं होता। दूसरे संसद और विधान सभाओं में ही क्यों सभी नौकरी और राजकीय सेवाओं में महिलाओं को आधा हिस्सा क्यों नही दिया जाता? उसे उसके हिंस्से का आधा आसमान क्यों नही सौंपा जा रहा?
संसद की नई इमारत में कार्यवाही मंगलवार से शुरू हुई। पहले दिन क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिला आरक्षण से जुड़ा विधेयक पेश किया।इस विधेयक में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है।महिला आरक्षण के लिए पेश किया गया विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है। संसद के दोनों सदन, लोकसभा और राज्यसभा में इस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पास होना होगा।इसके बाद जनगणना के बाद परिसीमन की कवायद की जाएगी।परिसीमन में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीमाएं तय की जाती हैं।पिछला देशव्यापी परिसीमन 2002 में हुआ था। उसे 2008 में लागू किया गया था।परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भंग होने के बाद महिला आरक्षण प्रभावी हो सकता है।अभी ऐसा लग रहा है कि 2026 के लोक सभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण का लागू होना संभव नहीं है। ये आरक्षण लागू हो जाने के बाद महिला आरक्षण केवल 15 साल के लिए ही वैध होगा, लेकिन इस अवधि को संसद आगे बढ़ा सकती है।ज्ञातव्य है कि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें भी केवल सीमित समय के लिए ही थीं, लेकिन इसे एक बार में 10 साल तक बढ़ाया जाता रहा है।सरकार की ओर से पेश विधेयक में कहा गया है कि परिसीमन की हर प्रक्रिया के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन होगा। इसका विवरण संसद बाद में निर्धारित करेगी। सीटों के रोटेशन और परिसीमन को निर्धारित करने के लिए अलग एक कानून और अधिसूचना की ज़रूरत होगी।स्थानीय निकायों, जैसे पंचायत और नगर पालिकाओं में भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए पहले ही आरक्षित हैं। इनमें हर चुनाव में सीटों का आरक्षण बदलता रहता है। यानी रोटेशन होता है।अनुसूचित जाति के लिए सीटें किसी निर्वाचन क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षित की जाती हैं।यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।
पहले बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था। इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा।इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका। वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई।बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था।यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया। इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं।ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है।
साल में 2008 में इस बिल को क़ानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था। इसके दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे।इन लोगों ने कहा कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं. लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे। इन दोनों सदस्यों की सिफ़ारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फ़ीसदी से अधिक न हो।साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया, लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है।
संसद के विशेष सत्र के तीसरे दिन बुधवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) पास हो गया। पर्ची से हुई वोटिंग में बिल के समर्थन में 454 और विरोध में दो वोट पड़े । अब कल (गुरुवार को) यह बिल राज्यसभा में पेश होगा। वहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए जाएगा। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा। अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा। इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी।
बिल पर चर्चा में 60 सांसदों ने अपने विचार रखे। राहुल गांधी ने कहा- ओबीसी आरक्षण के बिना यह बिल अधूरा है, जबकि अमित शाह ने कहा- यह आरक्षण सामान्य, एससी और एसटी में समान रूप से लागू होगा। चुनाव के बाद तुरंत ही जनगणना और डिलिमिटेशन होगा और महिलाएं की भागीदारी जल्द ही सदन में बढ़ेगी। विरोध करने से रिजर्वेशन जल्दी नहीं आएगा।
चर्चा के दौरान टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने मुस्लिम महिलाओं को भी आरक्षण देने की मांग की। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने महुआ मोइत्रा का नाम लिए बगैर कहा- मुस्लिम आरक्षण मांगने वालों को मैं बताना चाहती हूं कि संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण वर्जित है। कांग्रेस नेत्री और सांसद सोनिया गांधी बोलीं- तुरंत अमल में लाएं। सरकार को इसे परिसीमन तक नहीं रोकना चाहिए। इससे पहले जातिगत जनगणना कराकर इस बिल में एसी-एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए।’एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले और एसपी सांसद डिंपल यादव ने भी बिल में ओवीसी महिलाओं को आरक्षण देने की मांग की। सोनिया ने कहा, ‘स्थानीय निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने वाला कानून सबसे पहले मेरे पति राजीव गांधी लाए थे, जो राज्यसभा में सात वोटों से गिर गया था। बाद में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने उसे पास करवाया। इसी का नतीजा है कि देशभर के स्थानीय निकायों में 15 लाख चुनी हुई महिला नेता हैं। राजीव का सपना अभी आधा ही पूरा हुआ है, यह बिल पास होने से सपना पूरा हो जाएगा।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि ये सिर्फ पीएम मोदी का बिल है। जिसने गोल किया, नाम उसी का होता है। हमारे प्रधानमंत्री और हमारी पार्टी ये बिल लेकर आई है तो इनके पेट में दर्द हो रहा है।टीएमसी सांसद काकोली घोष ने कहा, ‘देश में सिर्फ पश्चिम बंगाल में महिला मुख्यमंत्री है, भाजपा की 16 राज्यों में सरकार है, लेकिन एक भी राज्य में महिला मुख्यमत्री नहीं है।उधर, जेडीयू के सांसद ललन सिंह ने कहा कि ये 2024 का चुनावी जुमला है। आई.एन.डी.आई.ए गठबंधन से सरकार घबरा गई और ये बिल लेकर आई। इनकी मंशा सही होती तो 2021 में जनगणना शुरू करवा दी होती। इससे अब तक जनगणना पूरी हो जाती और महिला आरक्षण 2024 से पहले लागू हो जाता।आरजेडी, जेडीयू , एसपी और बीएसपी समेत कई विपक्षी पार्टियों ने ओबीसी महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने की मांग की है।भाजपा नेता उमा भारती और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी ओबीसी महिलाओं के लिए भी कोटा तय करने की मांग की है।
खैर यह लगभग तै है कि बिल पाए हो जाएगा,किंतु सबसे बड़ी बात यह है कि जब ये आरक्षण 2026 से लागू होना है, तो अब पास कराने की क्या जरूरत थी। अब बिल को पास कराने के पीछे भाजपा का सीधा मकसद आगे आने वाले चुनाव में इसका लाभ उठाना है। ये राजनीति है। सब दल अपने हित के लिए काम कर रहे हैं, तो सवाल है कि भाजपा ही क्यों पीछे रहे। उसे ये लाभ उठाने मौका मिला और वह लाभ उठा रही है। मजे की बात यह है कि भाजपा के इस तुरप के इक्के के सामने सारा विपक्ष चित्त नजर आ रहा है। पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार की हर बात का विरोध करने और संसद में बहस की जगह हंगामा करने वाला विपक्ष भी इस बिल के विरोध करने की हालत में नही । वह जान रहा है कि इस बिल के विरोध का मतलब महिलाओं को नाराज करना होगा। वह इसका समर्थन करके, अपना बिल बताकर वाहवाही लूटना चाहता है,जबकि सब जानते हैं नाम उसका होता है जो खेल में गोल करता है। इस बिल को पास कराकर भाजपा विपक्ष को चारों खाने में चित्त करने और महिलाओं की वाहवाही लेने में कामयाब हो गई। विपक्षी दल अपने गठबंधन का नाम इंडिया {आई.एन.डी.आई.ए} रखकर बहुत प्रसन्न थे।सोच रहे थे कि भाजपा के पास इसका कोई तोड़ नही है, किंतु उन्हें पता नही था कि भाजपा महिला आरक्षण बिल लाकर महिलाओं की आधी आबादी के वोट पर अपना दावा बना सकेगी। उधर महिलाओं को अभी संसद और राज्य सभा में 33 प्रतिशत हिंस्सा मिला है, उम्मीद है कि आने वाली सरकारें उनकी आधी दुनिया को उनका आधा हिंस्सा देंगी।
आज सब क्षेत्र में महिलाएं आगे आ रही हैं।पैरामिलेट्री फोर्स और सेना तक में वह अग्रिम मोर्चों पर आगे आ रही है।आइएएस और आईपीएस में पहले से ही वे अपनी प्रशासनिक क्षमताएं दिखाती रही हैं। चिकित्सा और तकनीकि क्षेत्र में भी उनका पहले से ही दबदबा है।अब तक राजनीति में प्रशासनिक अधिकारियों की पत्नी या चुनाव के लिए अयोग्य घोषित लालू यादव जैसों की पत्नी आकर मुख्यमंत्री तक बनती रहीं हैं। अब आरक्षण लागू करने के बाद राजनीति में शिक्षित और योग्य महिलाएं आकर देश को नई दिशा देंगी। उनकी देश की नीति निर्माण में भागीदारी बढ़ेगी। आरक्षणा पाकर आगे आई ये महिलाएं सुश्री मायावती, जयललिता,ममता बैनर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीया इंदिरा गांधी और विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज की तरह कार्य कर अपनी पहचान बनाएंगी ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)