विपक्ष के अविश्वास पर चर्चा पर विलम्ब क्यों?

विनोद तकियावाला

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर में यानि ससंद के दोनों सदनों में इन दिनों कुछ ठीक ठाक नही चल रहा है।यहाँ सता पक्ष व विपक्ष में जिस तरह के आचारण प्रर्दशित की गई है।वह शर्मसार करने वाली है।चाहे वह मणिपुर की घटना हो या पश्चिम बंगाल की घटना हो।संसद के इस मानसुन सत्र में लगातार दोनो सदन लोक सभा-राज्य सभा की कार्यवाही लगातार स्थगित किया जाना इस का सबुत है।संसद को सुचारू रूप से चलाने के लोक सभा के अध्यक्ष व राज्य सभा में सभापति (उपराष्ट्रपति)के साथ सता पक्ष व विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी होती है,ताकि संसद स्वस्थ चर्चा-देश की जनता के कल्याणकारी कार्य हेतु निर्णय व नियम बन सके।लेकिन इन दिनों संसद की वर्तमान तस्वीर को देखकर राष्ट्र शर्मसार महसूस कर रहा है।केन्द्र में भाजपा व एन डी ए गठबन्धन वाली सरकार आजादी के अमृत महोत्सव सरकारी खजाने से जनता की गाढ़ी कमाई अर्थात टेक्स के पैसे का पानी की तरह बहा कर जश्न मनाने में मशगुल है।वही दिपक्ष संसद के इस मानसून सत्र के दौरान मणिपुर के मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है।यह र्निणय विपक्ष,’INDIA’ की बैठक में हुआ।जैसा कि सर्व विदित है कि संसद के वर्तमान मानसुन सत्र में दोनो सदन में मणिपुर में हिंसा को लेकर कई दिनों से संसद में हंगामा जारी है।आप को बता दे कि संसद का मानसून सत्र शुरू होने के एक दिन पहले मणिपुर में 4 मई को महिलाओं को र्निवस्त्र कर घुमाए जाने का वीडियो वायरल होने के बाद से भारतीप राजनीति काफी ही गर्म है।इरा मुद्धे पर विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर के मुद्दे पर बयान की मांग कर रहे हैं।हालांकि,20 जुलाई को सत्र शुरू होने से पहले संसद के बाहर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने मणिपुर की घटना को शर्मनाक बताते हुए दोषियों की कड़ी सजा दिलाने की बात कही थी,लेकिन विपक्ष का कहना है कि पीएम को सदन के अंदर आकार बयान देना चाहिए।मंगलवार 25 जुलाई को इसी मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल सभी दलों की एक बैठक हुई।इस बैठक में सभी दलों ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया तथा विपक्षी दलों ने इसके साथ ही दोनों सदनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग जारी रखने का भी फैसला किया है।

लोकसभा में यह अविश्वास प्रस्ताव संसद के नियम 198 के तहत लाया जा सकता है।1952 में इस नियम में 30 लोकसभा सदस्यों के समर्थन का प्रावधान था।जो अब बढ़कर 50 सदस्यों के समर्थन जरूरी हो गया है।राजनीति के विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय संसद मे पिछले 60वर्षों में 28 वीं वार अविश्ववास प्रस्ताव लाया जा चुका है।ऐसे स्थिति तब आती है जब विपक्षी दलों की अनदेखी कर सरकार उनकी बात सुनती नहीं है,या विपक्ष सरकार के कामकाज को लेकर सत्ता पक्ष पर हमलावर होता है।उस समय अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से विपक्ष अपनी बात बेहतर तरीके से सदन के पटल पर रख पाता है।आज विपक्ष द्वारा लाये कुछ अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा करना चाहुंगा।

सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ पेश हुए हैं।जिनकी संख्या 15 है।वर्ष 1979 की बात है।जब केन्द्र में मोरारजी देसाई की सरकार के खिलाफ काँग्रेस पार्टी के तरफ से वाई वी चव्हाण द्वारा अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था।सदन में मतदान के पहले ही मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे दिया था।उसके बाद सन्1992 में पीवी नरसिम्हा राव के 5 साल के कार्यकाल में 3 बार अविश्वास प्रस्ताव आये।पहला अविश्वास प्रस्ताव जसवंत सिंह ने1992में पेश किया था।जिसमें 46 मतों के अंतर से सरकार अविश्वास प्रस्ताव को गिराने में सफल रही।वहीं1993में दूसरा अविश्वास प्रस्ताव अटल बिहारी बाजपेई के द्वारा प्रस्तुत किया गया था।इस को बचाने में सरकार सफल रही।1993 में तीसरी बार पी वी नरसिंहराव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।तब झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोकसभा सदस्यों ने सरकार को समर्थन दियाऔर सरकार अविश्वास प्रस्ताव में हुए मतदान में14मतों से जीत गई।नोट देकर वोट लेने का आरोप नरसिंहराव सरकार पर,उस समय विपक्ष ने लगाया था।इसकी जांच भी हुई बाद में मामला अदालत तक गया था।आप को स्पष्ट कर दे कि अविश्वास प्रस्ताव की तरह विश्वास प्रस्ताव का भी प्रावधान संसद के नियमों में है।विश्वास प्रस्ताव पेश करने के बाद तीन सरकारों को पराजय का सामना करना पड़ा।विश्वास प्रस्ताव में जो सरकारें सदन में गिर गई।उनमे 1990 में वीपी सिंह की सरकार ,1997 में एचडी देवघोड़ा की सरकार,1999 में अटलबिहारी वाजपेई की सरकार,विश्वास मत सदन में हासिल नहीं कर पाई।जिसके कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद खोना पड़ा।

इस बार संसद में कांग्रेस पार्टी के सांसद गौरव गोगोई द्वारा यह अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है।अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद यह माना जाता है,कि सरकार नैतिकता के आधार पर कोई भी कामकाज नहीं कर सकती है।अभी तक जितने भी अविश्वास प्रस्ताव पेश हुए हैं। उनमें परंपरा के अनुसार 24 घंटे के अंदर ही प्रस्ताव पर चर्चा सदन के अंदर कराई गई है।यह पहला मौका है,अभी तक इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा यह कहते हुए स्वीकार कर लिया गया है कि सदन में हम राजनीतिक दलों से चर्चा कर समय र्निधारित करेंगें,लेकिन इस संदर्भ में कोई निर्णय नहीं किया है। शुकवार को संसद के दोनो सदन स्थगन सोम बार के 11 बजे तक के लिए किया गया है।सोमवार को ही अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का समय र्निधारित किया जाएगा।जहाँ तक स्वस्थ संसदीय परम्परा की बात है तो आप को बता दे कि विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाने के 24 घंटे के अन्दर सदन में सरकार चर्चा कराती है।लेकिन यह पहली बार इतने दिनो के बाद भी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा अधर में लटका है।यह बात समक्ष में नही आ रहा है जिसके पास लोक सभा में संख्या बल प्रर्याप्त है,फिर भी पहली बार अविश्वास प्रस्ताव में चर्चा को लेकर सरकार तैयार क्यूं नही है।
निश्चित रूप से विपक्ष द्वारा जो अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को कोई खतरा नहीं है।लेकिन इतना तय है,कि सरकार को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से विपक्ष के सवालों का जवाब देना जरूरी नही है।

विपक्ष अपनी ताकत दिखाने का दांव विपक्षी दल मणिपुर हिंसा पर चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री के वक्तव्य के साथ करने की अपनी मांग पर महज इसलिए अड़े थे,ताकि यह बता सकें कि आइ एन डी आइ ए के गठन के बाद वे राजनीतिक रूप से कहीं अधिक शक्तिशाली हो गए हैं और प्रधानमंत्री को चुनौती देने की स्थिति में आ गए हैं।मोदी सरकार के इस कार्यकाल में यह पहली बार है,जब विपक्ष उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है।जो अध्यक्ष द्वारा स्वीकार भी हो गया।अब प्रतीक्षा है उस पर बहस की।आइएनडीआइए भले ही अविश्वास प्रस्ताव को अपनी जीत समझ रहा हो और यह मानकर चल रहा हो कि उसे संसद में अपनी एकजुटता एवं ताकत दिखाने का अवसर मिलेगा, लेकिन यह बात 100% इस प्रस्ताव का गिरना तय है।

विपक्ष अपने अविश्वास प्रस्ताव के जरिये ऐसा संदेश देने में सचमुच सफल हो सकेंगे।मोदी सरकार के इस कार्यकाल में यह पहली बार है,जब विपक्ष उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है।इसके पहले उसने यह काम 2018 में किया था।तब भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा था और इस बार भी ऐसा ही सुनिश्चित सा दिख रहा है,क्योंकि जहां भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के पास लोकसभा में 330 से अधिक सदस्य हैं,वहीं आइएनडीआइए के पास इसके आधे भी नहीं हैं।विपक्ष दलों के गठबन्धन I.N.D.I.Aद्वारा लाये गये इस अविश्वास से विपक्षी एकता को मजबूत का बल मिलेगा,वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली N.D.A के लिए सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में विजय श्री के रास्ते कई रोड ब्रेकर आयेगा।

क्योकि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पक्ष विपक्ष द्वारा की चर्चा रांवैधानिक तौर रिकार्ड में दर्ज किया जाता है।सरकार के द्वारा सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर संवैधानिक व नैतिक जिम्मेदारी से भागना कई शक,शंका व संसय उत्पन्न करते है।राजनीतिक महकमें में दबी जबान से यह काना फुसी होने लगी है क्या केन्द्र में भाजपा व एन डी ए को प्रचंड बहुमत रहते हुए मोदी सरकार की क्या ऐसी मजबुरी है जो सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा में इतनी देरी क्यूं।इसके पीछे मोदी सरकार की हट धर्मिता है,या अंहकार।इसका सही जवाब तो आने वाले समय देगा।