
सुरेश सौरभ
कुत्ते अपना केस जीत कर खुशी मना रहे थे। उनके खेमे में जश्न का माहौल पूरे शबाब पर था। पर कुछ युवा कुत्तों के चेहरों पर बारह बज रहे थे, कारण सभी जानते थे, बधियाकरण सरकारी स्कीम। बुजुर्ग और अधेड़ कुत्ते खुश थे, क्योंकि उन्हें अपना भरा-पूरा परिवार बसाने के बाद, बधियाकरण का लेश मात्र न भय था, न दुख। क्योंकि वह अपने जीवन के तमाम हेमंत, बसंत देख कर अघा चुके थे। इधर एक नेता जी बहुत दुखी ,परेशान थे, जीवन के उत्तरार्ध में पहुंच चुके थे, पर अभी भी खुद को सबका, बेटा बताते थे। शादी के बाद पत्नी को छोड़ दिया, परिवार छोड़ दिया। अपना पूरा का पूरा खानदान छोड़ दिया, सिर्फ और सिर्फ देश सेवा और समाज सेवा के लिये, जनाब सारी जिंदगी सेवा कार्य में लगे रहे, कभी गौ सेवा की, कभी कार सेवा की, कभी देवी-देवताओं की सेवा की, कभी मंदिर की सेवा की, कभी मोर की सेवा की, कभी सफाईकर्मियों के पांव पखार कर सेवा की, सारी उम्र देश की मिट्टी की सेवा की, संपूर्ण राष्ट्र की सेवा की, आदि इत्यादि उनकी अनगिन सेवाओं से पूरा देश, पूरा विश्व अभिभूत है। आलोकित है। चमत्कृत है। उनके सेवा कार्यों की प्रशंसा करना यानि सूर्य को दीपक दिखाने, मोमबत्ती दिखाने के समान है। फिर भी दुनिया अपने-अपने मुंह से, अपने-अपने अंदाज से उनकी तारीफों के पुल बांध रही है।
पर आजकल वह नेताजी बहुत उदास रहते हैं, क्योंकि जाने क्यों, उनसे लोग कहते हैं कि अपनी डिग्री दिखाओ? अपना डिप्लोमा दिखाओ अरे! डिग्री भी कोई दिखाने वाली चीज है, कबीर के पास कौन डिग्री थी, सूरदास के पास कौन डिग्री थी, दशरथ मांझी के पास कौन डिग्री थी, रफीक सदानी के पास कौन सी डिग्री थी।
हलधर नाग के पास कौन डिग्री है, धीरेंद्र शास्त्री के पास कौन सी डिग्री है। अनिरूद्राचार्य के पास कौन सी डिग्री है, आशाराम बापू, राम रहीम के पास कौन सी डिग्री है। जब कह दिया नेताजी ने उनके पास डिग्री है, तब भी लोग खामख्वाह उनकी साफ बेदाग छवि पर कीचड़ उछाल-उछाल कर उनकी सेवाओं को, उनके महान कार्यों को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं ,यह देश के लिए, समाज के लिए उचित नहीं है, जब हमारे लोकप्रिय जनप्रिय एक नेता जी ने अपना घर, परिवार, पत्नी सब कुछ छोड़-छाड़ कर समाज और देश के लिए अपना पूरा जीवन होम कर दिया, तब उनकी डिग्री पर, तब उसके व्यक्तित्व पर उंगली उठाई जाए, यह अशोभनीय है। घोर निंदनीय है, अभी तक कुछ लोग उन्हें फालतू में वोट चोर कह रहे थे, अब उन्हें लोग फरेबी, मौकापरस्त और पता नहीं क्या-क्या अभद्र उपमाएँ देने लगे हैं, मुझे लगता है, ऐसा करने वाले देशद्रोही ही हो सकते हैं। देशप्रेमी कतई नहीं।