
अशोक भाटिया
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है । बताया जाता है कि अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारने से संबंधित प्रस्ताव लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी पास कर दिया है। इसे लेकर अब चिराग पासवान का भी बयान आया है। एलजेपीआर के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा है कि खुद को बहुत लंबे समय तक केंद्र की राजनीति में नहीं देखता। उन्होंने यह भी कहा है कि बिहार वापस जाना चाहता हूं।चिराग पासवान ने कहना है कि मेरे राजनीति में आने का कारण बिहार और बिहारी रहे हैं। जिस सोच के साथ राजनीति में आया हूं, वह ये है कि मेरा राज्य बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में आए। उन्होंने कहा कि यही मेरी इच्छा है और तीसरी बार सांसद बनकर मुझे समझ आया कि दिल्ली में रहकर बिहार के लिए काम करना संभव नहीं होगा। चिराग ने कहा कि मेरा अपना एक विजन भी है ‘बिहार फर्स्ट,बिहारी फर्स्ट’।
चिराग पासवान का कहना है कि कि मेरा राज्य बिहार विकसित राज्यों की बराबरी पर आकर खड़ा हो, यह चाहता हूं। चिराग ने यह भी कहा कि पार्टी के सामने अपनी इच्छा रखी थी। जल्द वापस बिहार जाना चाहता हूं। मेरे विधानसभा चुनाव लड़ने से पार्टी को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि पार्टी इसका आकलन कर रही है। हम चाहे जितनी सीटों पर भी चुनाव लड़ें, हमारा ध्यान स्ट्राइक रेट पर है।चिराग ने कहा कि मेरे चुनाव लड़ने से मेरी पार्टी और मेरे गठबंधन का प्रदर्शन अगर बेहतर होता है, तो जरूर लडूंगा। गौरतलब है कि एक दिन पहले चिराग पासवान ने कहा था कि पार्टी की तरफ से मेरे विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव आया है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस पर अभी और विस्तार से चर्चा होगी। पार्टी ने प्रस्ताव दिया है कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ूं। हालांकि, अभी इस पर और चर्चा होना बाकी है।
वैसे चिराग पासवान केंद्र सरकार में मंत्री हैं। केंद्रीय मंत्री रहते हुए अगर वह बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, तो जाहिर है उनका लक्ष्य मंत्री बनना तो नहीं ही होगा। फिर उनका प्लान क्या है? दरअसल, चिराग पासवान जानते हैं कि केंद्रीय राजनीति में भी उनके पैर तब तक ही जमे हैं, जब तक वह बिहार में मजबूत हैं। आखिरकार, उनकी सियासत का बेस तो बिहार ही है। बीजेपी मध्य प्रदेश और राजस्थान से लेकर हरियाणा तक, केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ाती आई है। 2020 के बिहार चुनाव में चिराग की पार्टी शून्य सीट पर सिमट गई थी। खुद मैदान में उतरने के पीछे चिराग की रणनीति यह भी हो सकती है कि शायद इससे एलजेपीआर को कुछ सीटों पर फायदा मिल जाए।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि राजनीति में कोई अस्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। चिराग की रणनीति कुछ सीटें जीतकर अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाने की हो सकती है, खासकर ऐसे माहौल में जब नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति हो। चिराग भी भविष्य के सीएम दावेदारों में गिने जाते हैं, ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ जैसे कैंपेन से अपनी मौजूदगी बनाए रखते हैं। वह बिहार की सियासी पिच खाली नहीं छोड़ना चाहते। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी कम सीटें होने के बावजूद सीएम बन सकते हैं, निर्दलीय मधु कोड़ा झारखंड के सीएम बन सकते हैं, नीतीश कुमार तीसरे नंबर की पार्टी का नेता होने के बावजूद पांच साल सरकार चला सकते हैं, तो सियासत में कुछ भी हो सकता है। चिराग को भी नीतीश के भविष्य पर संशय में अपने लिए उम्मीद दिख रही है।
साल 2005 में दो बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में त्रिशंकू जनादेश आया था। तब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में मंत्री थे। केंद्र सरकार में गठबंधन साझीदार होने के बावजूद एलजेपी ने बिहार चुनाव अकेले लड़ा और पार्टी 29 सीटें जीतकर किंगमेकर के तौर पर उभरी। तब आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और 92 सीटों के साथ एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन। कांग्रेस के 10, सपा के चार, एनसीपी के तीन और लेफ्ट के 11 विधायक थे। आरजेडी को कांग्रेस और इन छोटी पार्टियों के साथ ही केंद्र में गठबंधन सहयोगी एलजेपी के समर्थन से सरकार बना लेने का विश्वास था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
सत्ता की चाबी लेकर घूम रहे रामविलास पासवान ने तब मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर पेच फंसा दिया। नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए ने सरकार बनाई, लेकिन अल्पमत की यह सरकार भी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी। नीतीश को कुर्सी छोड़नी पड़ी और उसी साल अक्टूबर में दोबार चुनाव हुए। 2005 के दूसरे चुनाव में एलजेपी की सत्ता की चाबी खो गई और एनडीए ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इन चुनावों में क्या चिराग भी अपनी पार्टी के लिए सत्ता की चाबी खोज रहे हैं?
चिराग पासवान के हालिया रुख के बाद 2020 के बिहार चुनाव की यादें ताजा हो आई हैं। तब चिराग पासवान अपने पिता की बनाई पार्टी एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। चिराग की पार्टी तब 30 सीट की मांग कर रही थी। बात नहीं बनी तो चिराग की पार्टी ने अकेले मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। चिराग ने 137 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे, खासकर उन सीटों पर जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही थी। लेकिन बात 20 साल पुरानी कहानी की भी हो रही है।
चिराग की पार्टी ने जब 2020 में एकला चलो की राह पकड़ी थी, तब भी वही पार्टी के अध्यक्ष थे। तब पार्टी एनडीए में भी थी। हालांकि, चिराग तब केंद्र में मंत्री नहीं थे। 20 साल पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था। तब चिराग के पिता रामविलास पासवान केंद्र सरकार में मंत्री थे। केंद्र में यूपीए की सरकार थी और जब बिहार चुनाव की बारी आई, एलजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा। केंद्र की सरकार में साथ होते हुए भी रामविलास पासवान का समर्थन आरजेडी को नहीं मिल पाया और पार्टी सत्ता से ऐसी चूकी कि नीतीश के बगैर सत्ता का स्वाद चखने की स्थिति में कभी आ नहीं पाई। क्या चिराग इस बार एनडीए के लिए वही कहानी दोहरा पाएंगे?
चिराग ने यह भी कहा कि उनके चुनाव लड़ने से बिहार में एनडीए को फायदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह फैसला सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का नहीं है, बल्कि पार्टी और NDA गठबंधन की रणनीति का हिस्सा है।लेकिन तीन बार के सांसद और मंत्री चिराग पासवान अब विधायक क्यों बनना चाहते हैं। क्या उनका मकसद सिर्फ विधायक बनने तक सीमित है या इसका अगला कदम मुख्यमंत्री पद की दावेदारी होगा? इसका जवाब तो आगे मिलेगा। लेकिन चिराग पासवान के इस दांव ने बिहार में सियासी सरगर्मी जरूर बढ़ा दी है। एलजेपी के सांसद और प्रदेश प्रभारी अरुण भारती ने अपने नेता का समर्थन करते हुए बिहार में चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया है।उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि चिराग हमेशा कहते हैं कि उनकी राजनीति बिहार केंद्रित है और उनका विजन ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ एक विकसित और आत्मनिर्भर बिहार का संकल्प है। यह तभी संभव है जब वे खुद बिहार में रहकर नेतृत्व करें। जब मैं प्रदेश प्रभारी के रूप में गांव-गांव गया, हर जगह लोगों की एक ही मांग थी कि चिराग को अब बिहार में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। हाल ही में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में खुद चुनाव लड़ें।अरुण भारती ने आगे कहा कि कार्यकर्ताओं की यह भी भावना है कि इस बार वे किसी आरक्षित सीट से नहीं, बल्कि एक सामान्य सीट से चुनाव लड़ें ताकि यह संदेश जाए कि वे अब सिर्फ एक वर्ग नहीं, पूरे बिहार का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं।
चिराग के चुनाव लड़ने पर आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में चुनाव से पहले ही NDA में सिर फुटव्वल शुरू हो गई है और मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो गए हैं। तिवारी ने कहा कि LJP(R) अब चिराग पासवान को सीएम कैंडिडेट बता रही है और जेडीयू-बीजेपी नीतीश कुमार को सीएम कैंडिडेट बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि NDA में चिराग की पार्टी की लगातार उपेक्षा हो रही है।
आरजेडी प्रवक्ता के बयान से साफ है कि चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने को विपक्ष भी अपने लिए एक मौके के तौर पर देख रहा है। अगर चुनाव नतीजों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो ऐसे में चिराग की भूमिका अहम हो सकती है। तेजस्वी यादव के साथ वह पहले ही अपने पारपारिक संबंधों को हवाला दे चुके हैं, ऐसे में उनका पाला बदल भी मुमकिन हो सकता है। लेकिन फिलहाल औपचारिक तौर पर चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने का इंतजार है।
अब उनकी पार्टी के तमाम प्रकोष्ठों ने उन्हें चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है। खुद चिराग ने भी कह दिया है कि वे एनडीए में रह कर ही चुनाव लड़ेंगे। मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नहीं करेंगे। नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेंगे। पार्टी इस बाबत सर्वेक्षण करा रही है कि उनके चुनाव लड़ने से दल और एनडीए को कितना फायदा होगा। बहरहाल, चिराग अगर चुनाव लड़ते हैं तो इससे निश्चित तौर पर एनडीए को फायदा होगा। अलबत्त्ता महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की निगाहें दलित वोटरों पर लगी हुई हैं।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार