सोनिया के मार्मिक अपील को कांग्रसी सूनेंगे…? एक सवाल

गोविन्द ठाकुर

सीडब्लूसी की बैठक में सोनिया गांधी ने कांग्रेस पदाधिकारियों को पार्टी का कर्ज चूकाने की मार्मिक अपील की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी हम सबको बहुत कुछ दिया है , और अब समय आ गया कि पार्टी के कर्ज को उतारा जाए। इससे पहले भी सोनिया गांधी ने दुसरे चिंतन शिविरों और अधिवेशनों में ऐसी बातें उठा चूकी है। 1999 से लेकर 2003 तक पंचमढी और शिमला सम्मेलन में कही थी। नतीजा रहा कि कांग्रेस को सत्ता हासिल हुई। लेकिन 2013 के बाद जितने भी सम्मेलन बुलाए गये हैं उसमें भी सोनिया ने ऐसी अपील की थी मगर नतीजा क्या रहा लोग पार्टी छोड़कर भागते रहे। ऐसे में सोनिया गांधी ने एकबार फिर से अपील की है, सबाल उठता है कि ऐसी परिस्थिति में सोनिया की बात का इन सत्ताभोगी कांग्रेसियों पर असर होगा…?

12 मई की शाम सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन पर कांग्रेस नेताओं की भारी जमावड़ा… सभी का एक ही मकसद किसी तरह राहुल गांधी के बगल में एकबार आ जायें और फोटो क्लिक हो जाये। इसके एबज में भले ही क्यों ना उनके चप्पल- जूते या कमीज फट जाये…हां, राहुल के साथ 74 कांग्रेसी मेवाड़ एक्सप्रेस में सवार हो गये..। मगर इसमें से अधिकत्तर वैसे नेता थे जो पार्टी के चिंतन शिविर में कम मगर राहुल के साथ रेल में सफर करना अधिक मुनाशिफ समझ रहे थे। खुलकर कहें तो ये गणेशी नेता थे जिन्हें शिविर में नहीं बल्कि रेल में ही परिक्रमा करनी थी। ऐसा क्यों, इसका जबाव है, कांग्रेस के इतिहास देखें तो पहले भी नेता आलाकमान के परिक्रमा लगे रहते थे मगर कुछ अंतर भी था। अंतर यह था कि पहले के नेता अपना रसूख और वोट भी रखते थे, उन्हें पद तो चाहिए थे मगर जीत वे खुद सूनिश्चत करते थे। मगर राहुल गांधी के साथ जो भीड़ दिख रही है उसमें से अधिकतर अपने बल पर जमानत भी नहीं बचा सकते हैं। मगर रुतवा देखिए ये आज भी जो बचे खुचे जमीनी नेता हैं उसके रेल में टिकट नहीं होने दी । उन्हें तो मालूम ही नहीं चला कि राहुल गांधी मेवाड़ रेल से उदयपुर जा रहे हैं।

वापस चलते हैं सोनिया गांधी के उस भाषण पर जिसमें उन्होंने कांग्रेसियों को संगठित होकर मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कही है। सोनिया ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि पार्टी का कर्ज उतारा जाए। क्या किसी को लगता है कि सोनिया के इस अपील का असर उन कांग्रेसियों पर होगा जो वर्षों से विपरीत विचारधारा में जाने की जुगत में है। क्या वे एक कान से सुनकर दुसरे से नहीं निकालेंगे..? जरुर निकालेंगे क्योंकि उनका इतिहास रहा है, जब तक आलाकमान शक्तिशाली है वे गणेश परिक्रमा करेंगे नहीं तो दुसरे शक्तिशाली आलाकमान ढूंढ लेंगे। सबाल उठता है कि आखिर कांग्रेसी ही सबसे ज्यादा पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं, इसका जबाव है, कि उनका कोई ऐसी विचारधारा नहीं है जैसा कि बीजेपी का है। कांग्रेस कभी भी लंबे समय तक विपझ में नहीं रही वह गाहे बगाहे सता में या सत्ता के करीब रही है। जिससे कांग्रेसी खुद को राजा या राजकुमार के तौर पर देखा है मगर मोदी और शाह के बीजेपी में उनकी बुद्धी काम नहीं कर रही है, तो आलाकमान सभी कारणों के लिए दोषी है। उन्हें तो सत्ता चाहिए पार्टी उसे लाकर दे नहीं तो वे विरोधी सत्ता में जुगाड़ लगा लेंगे….ये सत्ता में कैसे लौटें इसके लिए उनकी कोई जिम्मेवारी नहीं है।

कांग्रेस के इस विचारधारा के मानने वालों की तीन के केटोगरी है। जिनमें पहले नंबर पर वे नेता हैं जो कांग्रेसी होने का दावा इससे करते हैं कि वे राहुल गांधी या सोनिया प्रियंका गांधी के करीबी हैं… इनका काम बहाने से ही सही मगर दरबार में इनकी उपस्थिति लगी रहे। इनका दुसरा भी काम है कि कोई भी जमीनी नेता जो दरबार में मथ्था टेकने की कोशिश करे उसे बे-रंग वापस करा दें। बड़े पदों पर बने रहें, कोशिश रहेगी कि राहुल और सोनिया इनकी ही बात सूने..अगर इसमें थोड़ी भी खटास आये तो मौके की तलाश में विरोधी खेंमे में जाने की जुगत करें। इस केटोगरी में महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, आरपीएन सिंह हैं। जिसे सीधे मौका परस्त कह सकते हैं आज भी कई नेता इस भरोसे बैठे हैं कि कब ज्वाईन करने का फोन आ जाए। दुसरे केटोगरी में वे नेता है जो पार्टी काम भी करते थे मगर उन्हें पहले केटोगरी के नेता ने आलाकमान के पास दाल नहीं गलने दी फिर वे अपनी विरोधी विचाराधारा के साथ चले गये.. ये नेता आलाकमान सीधे गलती के कारण पार्टी नहीं छोड़ी बल्कि उनकी चापलूसी और अपनी बेचारगी के कारण पार्टी छोड़ी…इसमें हिमंता विस सरमा, जगन रैड्डी, केसीआर हैं। तीसरे में शरद पवार, ममता बनर्जी है जिसके महत्वाकांझा के सामने कांग्रेस छोटी पड़ गई। राहुल के करीबी तो पार्टी छोड़कर चले गये मगर सोनिया के करीबी आलाकमान से मूंह फुलाकर रुठे बैठे हैं। जी 23 के नेता सत्ता के करीब रहे हैं उन्हे सत्ता चाहिए, जहां से भी हो आलाकमान इन्हें पावर दें खुद जनता के बीच नहीं जा सकते। ये बड़े नेता हैं रसूख है सत्ता सूख का अनुभव है…ये अपने कामों य़ा वयानों से समय समय पर पार्टी को बैकफुट पर घकेलते रहते हैं।

ऐसे नेताओं से सोनिया गांधी की अपील कितना मायने ऱखता है…आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं। अच्छा होगा सोनिया इनको अपील करने से, पहले पार्टी को मजबूत करने, संगठन को धार देने और गठबंधन को को अमली जामा पहनाये…जो 2024 के लिए कारगर हो।