सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से लड़कर क्या अब कांग्रेस जीतेगी चुनाव

प्रदीप शर्मा

राजस्थान के उदयपुर में चल रहे चिंतन शिविर के बीच पार्टी ने अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों को पार्टी में ज्यादा नुमाइंदगी देने के लिए बड़ा कदम उठाया है. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए पार्टी के सभी पदों में से 50 फीसदी पद आरक्षित करने की योजना तैयार की है. पार्टी ने शनिवार को इसकी जानकारी दी. मिशन 2024 के लिए मजबूत तैयारी कर रही कांग्रेस के लिए इन वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का फैसला बेहद अहम माना जा रहा है. चिंतन शिविर के दूसरे दिन चर्चा के बाद प्रेस वार्ता में यह जाकारी दी गई. इस चिंतन शिविर में पार्टी संगठन को दोबारा खड़ा करने, लगातार चुनावी हार से सबक लेते हुए अच्छे नतीजों औऱ नेतृत्व जैसे मुद्दों पर पार्टी के पदाधिकारी गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं.

चुनावों में हार पर हार झेल रही कांग्रेस में चिंतन चल रहा है। शिविर पार्टी शासित राजस्थान के उदयपुर में लगा है। आज आखिरी दिन है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने करीबियों के साथ बैठ कर यह मंत्रणा कर रही हैं कि देश में खोए कांग्रेस के जनाधार और जनता के भरोसे को कैसे फिर से वापस पाया जाए जिससे भगवा दल के विजयी रथ को रोका जा सके। मुश्किल घड़ी है, 2024 के लोकसभा चुनाव के रूप में एक बड़ा इम्तिहान आगे आने वाला है। पूरे देश के कांग्रेसियों और दूसरे दलों की नजरें कांग्रेस के इस चिंतन शिविर की ओर हैं। लोगों में आम धारणा यही है कि क्या इस बार सच मायने में कुछ बदलाव जैसा दिखेगा या फिर पिछले कई वर्षों की तरह नतीजा एक जैसा ही रहने वाला है। बहरहाल, अब तक मिले संकेतों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्म्युले पर बढ़ना चाहती है। वह भी बीजेपी की तरह समाज के अलग-अलग समूहों, वर्गों से खुद को जोड़ना चाहती है। हालांकि पार्टी के भीतर इस पर आम सहमति नहीं दिख रही है।

चिंतन शिविर में राजनीतिक मसले पर चर्चा के दौरान एक नेता ने सुझाव रखा कि पार्टों को ऐसी संस्थाओं/निकायों के साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए जो समाज के प्रमुख वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह धार्मिक, जाति और सामाजिक समूहों को अपने साथ लाने का बेहतर तरीका हो सकता है। कर्नाटक के विधायक बीके हरि प्रसाद जैसे कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया।

उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह फॉर्म्युला तो कांग्रेस को भी भाजपा की तरह बना देगा जो लोगों को धर्म के आधार पर लुभाती है। हालांकि आचार्य प्रमोद और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जैसे नेताओं ने प्रस्ताव का समर्थन किया। इन्होंने तर्क देते हुए कहा कि कांग्रेस की पहुंच समावेशी हो सकती है जहां इसका जुड़ाव जाति और धार्मिक विभाजन से परे होगा और यह भाजपा की उस रणनीति की नकल नहीं होगी जो एक धर्म पर केंद्रित पर होती है।

वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने इस मसले पर मध्यस्थ की भूमिका निभाई और आपसी तालमेल बिठाया। कांग्रेस के शिविर में सॉफ्ट हिंदुत्व पर भी जोरदार चर्चा हुई है। एक नेता ने तर्क दिया कि ध्रुवीकरण के मुद्दे पर पार्टी को डिफेंसिव नहीं होना चाहिए और विभाजनकारी राजनीति के लिए भाजपा की कड़ी आलोचना की जानी चाहिए।

हालांकि कुछ सदस्यों ने महसूस किया कि पार्टी को प्रत्यक्ष तौर पर आक्रामकता से बचना चाहिए। बघेल ने तर्क दिया कि कांग्रेस बिल्कुल ठीक सांप्रदायिकता को निशाना बनाती है, इसे हिंदुओं तक सांस्कृतिक जुड़ाव के साथ आगे बढ़ना चाहिए जैसे कांग्रेस छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन, गोरक्षा और गोबर की खरीद जैसी कई पहल अपना रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश के नेता कमलनाथ भी इसी नीति पर चल रहे हैं और उसके अच्छे नतीजे दिखे हैं और वह भाजपा को काबू में रखने में कामयाब रहे हैं।

‘नवसंकल्प चिंतन शिविर’ में कांग्रेस ने महिला आरक्षण को लेकर ‘कोटे के भीतर कोटा’ के प्रावधान पर अपने रुख में बदलाव की तरफ कदम बढ़ाते हुए निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की पैरवी का मन बनाया है।

कांग्रेस ने किसानों के लिए ‘कर्जमाफी से कर्जमुक्ति’ का संकल्प लिया और कहा कि अब देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार मिलना चाहिए और किसान कल्याण कोष की भी स्थापना होनी चाहिए।

इस पर भी चर्चा की गई कि क्या संगठनात्मक सुधार करने चाहिए जिससे पार्टी कमजोर तबकों को संदेश दे सके? चिंतन शिविर के लिए गठित कांग्रेस की सामाजिक न्याय संबंधी समन्वय समिति के सदस्य के. राजू ने बताया कि यह प्रस्ताव आया है कि एक सामाजिक न्याय सलाहकार समिति बनाई जाए जो सुझाव देगी कि ऐसे क्या कदम उठाए जाने चाहिए जिससे इन तबकों का विश्वास जीता जा सके।

समिति ने सिफारिश की है कि पार्टी को जाति आधारित जनगणना के पक्ष में रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी ‘सब-प्लान’ को लेकर केंद्रीय कानून और राज्यों में कानून बनाने की जरूरत है।

कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘सरकारी क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही हैं। ऐसे में हम पार्टी नेतृत्व से सिफारिश कर रहे हैं कि निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय संबंधी समिति की ओर से लोकसभा और विधानसभाओं में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान करने की भी पैरवी की गई है।

महिला आरक्षण विधेयक UPA सरकार के समय राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन कई दलों के विरोध के चलते यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया। महिला आरक्षण मामले पर पहले के रुख में बदलाव पर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा ने कहा, ‘इस पर (कोटा के भीतर कोटा) ऐतराज कभी नहीं था। उस समय गठबंधन की सरकार थी। सबको एक साथ लेना मुश्किल था। उस समय हम इसे पारित नहीं करा पाए। समय के साथ बदलना चाहिए। आज यह महसूस होता है कि इसे इसी प्रकार से आगे बढ़ना चाहिए।’