नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली : राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री, कांग्रेस के स्टार प्रचारक और परिसंपत्ति (ऐसेट) कहें जाने वालेसचिन पायलट ने मंगलवार को जयपुर में अपनी ही पार्टी कांग्रेस की राज्य सरकार के विरुद्ध आज जयपुर मेंअहिंसात्मक ढंग की एक ऐसी विस्फोटक पारी खेली कि उन पर अब तक भरोसा करने वाला आलाकमान भीदंग रह गया। प्रदेश में विपक्ष की भूमिका निभाने वाली भाजपा ने इसका खूब मज़ा लिया और यहाँ तक कहदिया कि सचिन पायलट कांग्रेस के ताबूत में आख़िरी कील लगा रहें है।
सचिन पायलट ने जयपुर में राजस्थान विधान सभा के निकट शहीद स्थल पर प्रातः ग्यारह से शाम पाँच बजेतक घोषित अपने अनशन के मुक़ाबले पाँच घंटा चले अपने अनशन के बाद यह घोषणा भी की कि उन्होंनेभाजपा की राष्ट्रीय नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के शासन काल में हुए कथित घोटालों पर कार्यवाहीकरने की जो जंग छेड़ी है उस पर समुचित कार्यवाही नही होने तक उसे आगे भी जारी रखेंगे।
सचिन के अनशन के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को राज्य मंत्रीमंडल और मंत्रिपरिषद की बैठकबुलाई है जिसमें कोई बड़ा फैसला होने की उम्मीद है। देखना होगा कि राजस्थान के गाँधी माने जाने वालेअशोक गहलोत, सचिन पायलट के अनशन के कदम से उनकी सरकार और कांग्रेस पार्टी की छवि को हुएनुक़सान को बेअसर करने के लिए अब कौन सी गुगली भरी जादूगरी का इस्तेमाल करेंगे?
सचिन पायलट के अनशन को पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा द्वारा पार्टी विरोधी कहे जाने औरइस प्रकार के मामले पार्टी मंच पर उठा कर सामूहिक रणनीति बनाने की जरुरत बताने तथा कांग्रेस के राष्ट्रीयसंचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश द्वारा अशोक गहलोत सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं कीप्रशंसा और अशोक गहलोत के नेतृत्व में विधान सभा चुनाव लड़ने की तैयारी का ज़िक्र करने के बावजूद पार्टीलाईन से अलग जाने पर सचिन पायलट द्वारा उठाए गए इस कदम के खिलाफ़ पार्टी हाई कमान क्या रुखअख़्तियार करेगा यह भी देखना होगा। सभी का मानना है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा गलत नही बल्कि उसे उठाने कातरीक़ा और समय ठीक नहीं है।
सचिन पायलट ने प्रदेश के विभिन्न भागों से अपने समर्थकों को विशेष कर गुर्जर समुदाय को जयपुर में अनशनस्थल पर बुला कर एक बड़ा शो करने का जो प्रयास किया है उससे उनकी दवाब की राजनीति के साथ ही इस अंदेशा को भी बल मिल रहा है कि वे अपना नया राजनीतिक रास्ता भी खोज रहें है। साथ ही एक और चर्चा नेभी जन्म लिया है कि सचिन पायलट के इस चुनावी वर्ष में इस आत्मघाती कदम से भाजपा को अधिक लाभहोगा और वह एक तीर से कई निशाने करेंगी।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक यह बात कहने लगे है कि सचिन पायलट द्वारा अपने समर्थकों के साथराज्य सरकार को गिराने और पार्टी से बगावत कर भाजपा शासित हरियाणा के मानेसर में डेरा जमाने की घटनासे सबक़ लेकर हाई कमान उस वक्त ही कोई सख़्त कदम उठाता तो आज पार्टी को यह दिन नही देखनापड़ता।
अति-महत्वाकांक्षा रखने वाले विशेष कर मुख्य मंत्री बनने को हमेशा उतावले दिखने वाले सचिन पायलट आजअपने अपरिपक्व फ़ैसलों से स्वयं अपने बुने जाल में बुरी तरह फँस गए है और यदि उन्हें अपने इस आख़िरीप्रयास में भी सफलता नही मिली तो उनके राजनीतिक भविष्य पर भी प्रतिकूल असर होंगा।यदि वे अपने पिताकी उम्र के अशोक गहलोत को पहले दिन से ही सम्मान देकर कन्धे से कन्धा मिला कर चलते तो न तो उनका उपमुख्यमंत्री पद जाता और नहीं प्रदेश अध्यक्ष का पद ही गँवाना पड़ता और युवा पायलट को अपनी लम्बी उम्र केशेष रहते आगे मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा भी अवश्य मिलता लेकिन मुख्यमंत्री बनने की जल्द बाजी दिखा करउन्होंने अपरिपवक्ता का ही परिचय दिया है।राजनीतिक पण्डित मानते है कि कांग्रेस हाईकमान द्वारा भी हमेशाकी तरह सही समय पर सही फैसले नही लेना भी वर्तमान हालातों के लिए ज़िम्मेदार हैं।
जैसा क़यास लगाया जा रहा है कि यदि सचिन पायलट अब कांग्रेस छोड़ किसी अन्य दल में जाते भी है तों इसबात की कोई गारण्टी नही है कि उन्हें वहाँ मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल ही जायेगा। हाँ सत्ता हासिल करने मेंउनका उपयोग अवश्य किया जा सकता है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजस्थान में अभी तक कभी भी तीसरा मोर्चा सफल नही हुआ है औरकेवल एक जाति की राजनीति को भी वह सफलता नही मिली है कि अकेले उस बलबूते पर कोई दल प्रदेश मेंअपनी स्थाई सरकार बना सका है।