अजय कुमार
उत्तर प्रदेश की लखनऊ लोकसभा सीट देश की सबसे चर्चित सीटों में शामिल रही है। प्रभु श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की नगरी लखनऊ ने अपने लम्बी जीवन यात्रा में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।यहां मुगलों ने भी शासन किया।इसी दौर में अवध की शाम की चर्चा ता समुंदर पार तक होने लगी,लेकिन इसमें खट्टी-मीठी दोनों तरह के यादें शामिल हैं। तहजीब के इस शहर के आबो-हवा और सुकून के चर्चे तो दुनियाभर में मशहूर हैं। इसी के लिए लोग यहां खिंचे चले आते हैं।लखनऊ शहर की खासियत के बारे में यहां के मशहूर शायर अजीज लखनवी ने लिखा है-‘वो आबो-हवा, वो सुकून, कहीं और नहीं मिलता। मिलते हैं बहुत शहर, मगर लखनऊ-सा नही नहीं मिलता’। यहां के वर्तमान सांसद देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं। भाजपा ने लगातार तीसरी बार राजनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जबकि सपा ने इस बार रविदास मेहरोत्रा पर दांव लगाया है। वहीं बसपा ने अपने कोर वोटर के साथ अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए सरवर मलिक को चुनावी रण में उतारा है।इस बार यहां लड़ाई लगातार आठ बार से जीत हासिल कर रही भाजपा को अपना गढ़ बचाने की है और राजनाथ सिंह को अपने खुद की जीत की हैट्रिक लगाने की है। लखनऊ के वोटर क्या तीसरी बार भी अपने सांसद और देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के लिये रक्षा कवच बनेंगे यह 04 जून को नतीजे आने पर पता चलेगा। वहीं विपक्षी खेमा राजनाथ सिंह की हैट्रिक नहीं पूरी होने देने की तमन्ना पाले हुए है और भाजपा के मजबूत किला को तोड़ने की तैयारी कर रहा है। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के राजनाथ सिंह ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को 3,47,302 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में राजनाथ सिंह को 6,33,026 और पूनम सिन्हा को 2,85,724 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम को 1,80,011 वोट मिले थे।वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान इस सीट पर पहली बार राजनाथ सिंह उतरे और कांग्रेस के दिग्गज नेत्री रहे रीता बहुगुणा जोशी को 2,72,749 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में राजनाथ सिंह को 5,61,106 और रीता बहुगुणा जोशी को 2,88,357 वोट मिले थे।जबकि बसपा के नकुल दुबे को 64,449 और सपा के अभिषेक मिश्रा को 56,771 वोट मिले थे। वहीं आम आदमी पार्टी के सैयद जावेद अहमद जाफ़री को 41,429 वोट मिले थे। लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सामान्य और मुस्लिम वर्ग के मतदाता हैं। जिसमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक है। इसके बाद मुस्लिम आबादी है, जिसमें शिया की संख्या ज्यादा है। फिर वैश्य समाज के मतदाता आते हैं। यहां कायस्थ वोटरोें की भी अच्छी खासी संख्या है। इस सीट पर दलित और ओबीसी मतदाताओं की संख्या सामान्य और मुस्लिम वर्ग की तुलना में बेहद कम है।
बात अतीत की कि जाये तो 1951-52 में जब देश के पहले लोकसभा चुनाव हुए, उस वक्त उत्तर प्रदेश में लखनऊ जिला-बाराबंकी जिला और लखनऊ जिला मध्य नाम से दो सीटें थीं। लखनऊ जिला मध्य सीट से कांग्रेस की विजय लक्ष्मी पंडित जीती थीं। इसरी के साथ 1951 से लेकर 1984 तक दो बार के अलावा यहां से कांग्रेस की ही जीत का परचम फहराया। 1967 में निर्दलीय आनंद नारायण मुल्ला तो इमरजेंसी के बाद 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोकदल से हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव जीते। देश में पहली बार 1951 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस की विजय लक्ष्मी जो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं, ने चुनाव जीता था। 1957 में पुलिन बिहारी बनर्जी,1962 में बीके धवन,1971 और 80 में शीला कौल ने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी यहां से जीत हासिल की। इसके बाद 1989 में जनता दल से मांधाता सिंह फिर 1991 से 2004 तक पांच बार यहां से बीजेपी के अटल बिहारी वाजेपयी सांसद रहे,लेकिन दो चुनावों में अटल जी को हार का भी सामना करना पड़ा था। अटल जी के राजनीति से सन्यास लेने के बाद 2009 में बीजेपी लालजी टंडन यहां से सांसद बने। तत्पश्चात 2014 और 2019 में बीजेपी के राजनाथ सिंह यहां से सांसद चुने गये।तीसरी बार भी वह लखनऊ से किस्मत अजमा रहे हैं। वहीं, सपा ने रविदास मेहरोत्रा को अपना प्रत्याशी है। लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभाएं आती हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ लोकसभा में पड़ने वाली पांच में से तीन विधानसभा सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। वहीं, दो सीटों पर सपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।
बहरहाल,अतीत के पन्नों मो पलटा जाये तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लगातार पांच बार यहां से सांसद रहे हैं। उसी दौरान यहां बीजेपी ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। उनके समय से ही इस सीट पर भाजपा का दबदबा हो गया,जो सिलसिला फिर रूका नहीं। यहां के वर्तमान सांसद देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं। भाजपा ने लगातार तीसरी बार राजनाथ सिंह को उम्मीदवार हैं। कुल मिलाकर प्रदेश में भले ही शासन करने वाले राजनैतिक दल बदलते रहे हों, पर लोकसभा चुनाव में राजधानी में कांग्रेस और भाजपा का वर्चस्व रहा है। इस वर्चस्व के बावजूद लखनऊ की संसदीय सीट पर वर्ष 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी की जीत का डंका बजा। उस समय आनंद नारायण मुल्ला ने कांग्रेस के वीआर मोहन को आसानी से मात दी थी।आनंद नारायण मुल्ला कश्मीरी ब्राह्मण थे। उनके पिता जगत नारायण मुल्ला मशहूर सरकारी वकील थे। आनंद नारायण वकालत करने के साथ ही उर्दू के कवि भी थे। उनकी रचनाओं पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1967 में जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने भी पर्चा दाखिल किया। देश में उस समय कांग्रेस की लहर चल रही थी। इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। इसी के बूते वे चुनाव में खड़े हो गए। चुनाव में कांग्रेस से उनके मुकाबले वेद रत्न मोहन मैदान में उतरे। वेद रत्न मोहन लखनऊ के पूर्व मेयर रह चुके थे तथा साधन-संपन्नता में भी कोई कमी नहीं थी। भारतीय जनसंघ से चुनाव में आरसी शर्मा को टिकट मिला था। रिजल्ट की घोषणा हुई तो पहले स्थान पर आनंद नारायण मुल्ला रहे और उन्हें 92,535 वोट मिले। दूसरे नंबर पर वेद रत्न मोहन थे, और उनके खाते में 71,563 वोट आए। वहीं आरसी शर्मा को 60,291 वोट मिले और वे तीसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी का नाम भी चर्चा में था। सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापक जगदीश गांधी ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उन्हें 9449 मत मिले। अलीगढ़ से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव जीत चुके जगदीश गांधी ने इससे पहले वर्ष 1962 का लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था। हालांकि उस बार भी उनको हार झेलनी पड़ी। चुनाव में 14774 वोट के साथ वे तीसरे नंबर पर रहे।