ललित गर्ग
देश में स्वच्छता अभियान से ज्यादा जरूरी हो गया राजनीतिक स्वच्छता अभियान। क्योंकि आजादी के अमृतकाल को अमृतमय बनाने के लिये राजनीति का शुद्धिकरण यानी अपराध एवं भ्रष्टाचारमुक्त होना अपेक्षित है। आज कौन-सी पार्टी है जो सार्वजनिक जीवन में शुचिता का पालन कर रही है? शोचनीय बात यह है कि अब भ्रष्टाचार, आतंकवाद एवं साम्प्रदायिकता को पोषित करने वाले एवं देशविरोधी राजनीति के दोषी शर्मसार भी नहीं होते। इस तरह का राजनीतिक चरित्र देश के समक्ष गम्भीर समस्या बन चुका है। राजनीति की बन चुकी मानसिकता और भ्रष्ट आचरण ने पूरे लोकतंत्र और पूरी व्यवस्था को प्रदूषित कर दिया है। स्वहित और स्वयं की प्रशंसा में ही लोकहित है, यह सोच हमारी राजनीति मंे घर कर चुकी है। यह रोग राजनीति को इस तरह जकड़ रहा है कि हर राजनेता लोक के बजाए स्वयं के लिए सब कुछ कर रहा है। अधिकतर राजनीतिकों का मकसद बस किसी तरह चुनाव जीतना और सत्ता में जाना हो गया है। चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जाता है, और सत्ता में आने पर पैसा बनाने के सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौ वर्ष पहले स्वच्छता अभियान छेड़ा, जिसका व्यापक असर हुआ। अब देश में दूषित होती राजनीति में स्वच्छता अभियान शुरू करने की पहल करने की अपेक्षा है।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव इसी साल के अंत में होने हैं और इसके बाद अगले वर्ष लोकसभा चुनाव का बिगुल बज उठेगा। ऐसे दौर में राजनीति में सुधार की कोरी बातें ही नहीं बल्कि संकल्पित होने का वक्त आ गया है। यह वक्त देखा जाए तो चुनाव सुधार एवं राजनीति में नैतिक मूल्यों को बल देने का बिगुल बजाने का है। चुनाव में अच्छे एवं ईमानदार, लोग चुन कर आएं इसके लिए राजनीति में अपराधियों का प्रवेश तो रोकना ही होगा, वंशवाद, जातिवाद, धनबल व बाहुबल जैसी राजनीति में घुस आई गंदगी को साफ करने के लिए ‘जागरूकता की झाड़ू’ को उठाना ही होगा। अभी तो आम धारणा यही बनती जा रही है कि ईमानदारी के बलबूते चुनाव जीतना आसान नहीं है। लेकिन आगामी चुनावों में इस धारणा को बदल देना है। चुनाव सुधारों को लेकर उच्चतम न्यायालय से लेकर चुनाव आयोग तक की सिफारिशें एवं सुझाव हर बार हवा होते रहे हैं। उन पर अमल करने की परवाह किसी को नहीं होती। ठीक इसी तरह राजनीति के शुद्धिकरण का संकल्प भी हर चुनाव में खारिज होता रहा है, लेकिन कब तक? प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति में नैतिक एवं ईमानदार चेहरा को प्रोत्साहन दिया है। ऐसा करके उन्होंने यह भी जता दिया कि राजनीति की चली आ रही परिभाषाएं अब बदलने लगी है। अब मोदी के नाम पर उन राज्यों में चुनाव जीतने के कीर्तिमान स्थापित हुए है, जहां चुनाव जीतना किन्हीं खास धनबल, बाहुबल एवं अपराधिक तत्वों के नाम लिखे हुए थे।
बात लोकसभा चुनाव की नहीं, विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों की है कि मोदी के नाम पर ये चुनाव इतने सफल क्यों एवं कैसे हो रहे हैं? पार्टी के कद्दावर नेता, जिनके बिना राज्य में चुनाव जीतना असंभव माना जाता रहा है, उन नेताओं के नाम की बजाय मोदी के नाम पर वोट मांगने की परम्परा मजबूत एवं सफल होती जा रही है, क्योंकि मोदी एक प्रतीक है विकास का, मूल्यों का, जन समस्याओं के समाधान का। गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने हिंदू हृदय सम्राट की छवि बनाई। दूसरे कार्यकाल के बाद विकास, शांति एवं सौहार्द का प्रतीक बन गए। गुजरात मॉडल का प्रचार इतना जबर्दस्त रहा कि अन्य राज्यों में भी इसकी चर्चा होने लगी। बिहार-यूपी जैसे सुदूर क्षेत्रों के लोग भी गुजरात मॉडल की बात करने लगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद ब्रांड मोदी और भी मजबूत हो गया। 2019 लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद मोदी अपराजेय दिखने लगे। 2024 के चुनाव में भी विपक्षी गठबंधन इंडिया के सामने यही सवाल खड़ा है कि नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाला नेता कौन होगा? इंडिया के सामने नेता घोषित करने की दोहरी चुनौती है। अगर चुनाव से पहले इंडिया का नेता चुन लिया गया, तो उसकी तुलना नरेंद्र मोदी से होगी। अगर नहीं चुना गया तो विपक्ष बिखरा ही दिखाई देगा।
नरेंद्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में आलोचना की परवाह किए बगैर कई ऐस देशहित के बड़े फैसले लिए, जिनसे न सिर्फ विपक्ष बल्कि भारत की जनता भी चौंक गई। नोटबंदी, उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक, पाकिस्तान समर्थित कश्मीर में एयर स्ट्राइक की विपक्ष ने आलोचना की, कश्मीर में राजनीतिक स्थिति में भारी बदलाव करते हुए विधानसभा सहित केंद्रशासित प्रदेश बना दिया तथा लद्दाख को भी जम्मू कश्मीर से अलग करके उसे भी अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इन निर्णयों से कश्मीर के नेता बौखला गये, भारी विरोध किया, मगर नरेंद्र मोदी ने इस पर कभी अफसोस नहीं जताया। कोरोना की दूसरी लहर में लॉकडाउन के फैसला भी विरोधियों के निशाने पर रहा। सीएए को लेकर भी काफी हो-हल्ला हो चुका है। 2024 के चुनाव में जाने से पहले नरेंद्र मोदी चौंकाने वाला फैसला ले सकते हैं। 18 सितंबर 2023 से संसद का विशेष सत्र में नारी वन्दन विधेयक पारित किया। वैसे चुनाव से पहले राम मंदिर का उद्घाटन होना तय है।
मोदी की साफ-सुथरी छवि एवं भ्रष्टाचारमुक्त राजनीति का ही परिणाम है कि विपक्ष की अनेक कोशिशों के बावजूद वे उनके खिलाफ कोई एक भी मुद्दा नहीं खोज पाये। केंद्र की मोदी सरकार ने राजनीति में बड़े बदलाव भ्रष्टाचार और करप्शन के मुद्दे पर किए हैं। 1989 के चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स का मुद्दा उछाला था। बोफोर्स से जुड़े कांग्रेस नेताओं के नाम पर उन्होंने चुनाव जीता। नरसिंह राव की सरकार भी घोटालों के घिरी थी, जिसका फायदा बीजेपी समेत विपक्ष को मिला था। 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार कोयला घोटाले, 2जी और कॉमनवेल्थ घोटाले की चर्चा के बीच चुनाव में गई थी, नतीजा कांग्रेस चुनाव हार गई। कांग्रेस ने भी लगातार नरेंद्र मोदी सरकार को घोटाले पर घेरने की कोशिश की, मगर ब्रांड मोदी के सामने उसे चुनावी मुद्दा नहीं बना पाई। 2019 में कांग्रेस ने राफेल में करप्शन का मुद्दा उठाया। नोटबंदी में करप्शन के आरोप लगाए। अडानी और अंबानी के मुद्दे को चुनाव में उठाया, मगर मोदी मैजिक के सामने सारे वार फेल हो गए। 2024 से पहले कांग्रेस फिर अडानी और अंबानी के इर्द-गिर्द घूम रही है। इससे उलट इंडिया के कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच चल रही है।
देश में आशावाद और सकारात्मकता का माहौल है, लोग जी20, चंद्रयान और अर्थव्यवस्था की सफलता का उत्सव मना रहा है, 2024 में एक बड़ी जीत के लिए आश्वस्त दिखते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति को अपराध एवं भ्रष्टाचारमुक्त करने की ठानी है तो यह समय आम मतदाता के जागरूक एवं सर्तक होने का भी है। राजनीति में सुधार चाहने वालों के लिए यह घर बैठने का समय नहीं है। राजनीति में नैतिकता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच चुनाव सुधारों की कोरी बातें ही नहीं बल्कि उन पर अमल लाने की भी जरूरत है। सबसे बड़ी जिम्मेदारी राजनीतिक पार्टियों की है कि वे ठोक-बजाकर उम्मीदवारों का चयन करें। चिंता इस बात की है कि जनता ही दागियों को वोट देकर सत्ता में लाती है। इसलिए प्रमुखतः राजनीति में स्वच्छता के लिए कदम उसे भी बढ़ाने होंगे। वर्ना मोदी का करिश्मा एवं जादू तो अपना असर दिखायेगा ही, क्योंकि उनके पास सत्य एवं नैतिकता का बल है। मोदी ने ही देश पर लगे गरीब होने के दंश को हटाने की सार्थक पहल की है, उन्हीं के शब्दों में लंबे वक्त तक, भारत की पहचान एक अरब से अधिक भूखे पेटों वाले देश के रूप में रही है, लेकिन अब, भारत को एक अरब से अधिक उम्मीदों से भरे दिमाग, दोे अरब से अधिक कुशल हाथों और करोड़ों युवाओं के देश के रूप में देखा जा रहा है। ऐसी स्थितियों में मोदी के नाम पर मांगे जा रहे वोट उन्हें ऐतिहासिक जीत दे तो कोई आश्चर्य नहीं है।