ललित मोहन बंसल
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रुस की दो दिवसीय यात्रा में अपने सखा व्लादिमीर पुतिन को रुस-
यूक्रेन युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक नायाब नसीहत दी है। यह नसीहत चीन के
राष्ट्रपति शी चिनफ़िंग और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन को भले रुचिकर न लगे,
रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने परम मित्र और विशिष्ट अतिथि नरेंद्र मोदी की
नसीहत ‘शिरोधार्य’ करने में किंचित् देर नहीं लगाई! मोदी अपने मित्र के हाथों रुस के सब से
बड़े सम्मान ‘पत्र-पुष्प’ और अद्भुत भोज ग्रहण कर अगले ही दिन 8 जुलाई को अपने अगले
पड़ाव आस्ट्रिया की राजधानी विएना के लिए निकल गए। इस बीच भारतीय प्रधान मंत्री ने
अपनी पहली ‘ख़ुशनुमा’ यात्रा से एक दिन पहले यूक्रेन में एक बच्चों के बड़े अस्पताल पर रूसी
सेना के मिसाइली हमले में बच्चों की दिल दहलाने वाली मौत और बच्चों के लहुलुहान होने की
खबरें देखी, सुनीं तो वह अंदर तक आहत हुए बिना नहीं रह सके।
इस हृदय विदारक घटना की दुनिया भर के मानवतावादी ख़ेमों में तो रुस की कड़ी निंदा हुई ही,
वाशिंगटन में 75वें नाटो शिखर सम्मेलन में भी राष्ट्रपति जो बाइडन नाटो देशों के प्रतिनिधियों
ने भी कड़ी निंदा की। ऐसी स्थिति में नई दिल्ली जी बीस देशों के शिखर सम्मेलन में ‘वसुधेव
कुटुंबकम्’ का उद्घोष करने और महात्मा गांधी के जन-जन तक ‘शांति और सद्भाव’ का मंत्र
फूंकने को आतुर नरेंद्र मोदी भला बच्चों की अकाल मृत्यु और रक्त रंजित बच्चों के दोषी एवं
अपने ही मित्र को नसीहत देने से कैसे बच सकते थे? उन्होंने रुस के सबसे बड़े ‘एंड्रुज नागरिक
सम्मान’ ग्रहण करने से पहले पुतिन को नसीहत दे डाली। उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि
युद्ध समस्या का हल नहीं है। इसके लिए मिसाइली हमलों की नहीं, दोनों पक्षों के लिये शांति
और सद्भाव से वार्ता एक मात्र विकल्प है। इसके लिए मोदी ने पुतिन से मदद का हाथ बढ़ाया।
इस पर पुतिन ने भी उसी गर्मजोशी से मित्र मोदी की नसीहत का सम्मान करते हुए उनका
आभार भी जताया।
हमें यहाँ यह भूलना नहीं चाहिए कि दुनिया में एक और जहां इंग्लैंड और फ़्रांस और अमेरिकी
नेता लोकतंत्र की दहलीज़ पर लुढ़कपुढ़क रहे हैं, वहीं नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सब से बड़े
लोकतंत्र में लोगों का विश्वास मत जीत कर तीसरी बार प्रधान मंत्री बने हैं। देशवासियों को भी
यह बात समझ आ गई है कि मोदी ने पुतिन, शी चिन्फ़िंग और किम जोंग उन की तिकड़ी को
भी एक संदेश में अग्रज की भूमिका निभाई है। यह बात पुतिन, शी चिन्फ़िंग और किम जोंग
उन जैसे निरंकुश शासकों के गले कहाँ तक उतर पाएगी, कहना मुश्किल है। चीन के राष्ट्रपति
शी चिन्फ़िंग ने नाटो शिखर सम्मेलन के शुरू होने से पहले ही ‘रोना’ शुरू कर दिया। उन्होंने
सीधे सीधे अमेरिका पर आरोप जड़ दिया कि उसके नेतृत्व में सुरक्षा के नाम पर क्षेत्र में मिलिट्री
सेना का जमावड़ा और असुरक्षा का माहौल खड़ा किया जा रहा है। हालाँकि सोमवार को शी
चिन्फ़िंग ने हंगरी के प्रधान मंत्री विक्टर ऑर्बन से भेंट के बाद वैश्विक शक्तियों का आह्वान
किया कि वे रुस और यूक्रेन के बीच वार्ता करने के लिए आगे आये। आर्बन ने चिन, यूरोप और
अमेरिका से बीच बचाव करने का आग्रह किया है।
हाँ, यूक्रेन के राष्ट्रपति वल्डीमिर जेलेंस्की को मोदी-पुतिन की ग़लबाहियाँ रुचिकर नहीं लगी।
उन्होंने एक ट्वीट करते हुए कहा कि यह कहाँ तक जायज़ है कि एक और जब यूक्रेन के दस
क्षेत्रों में चालीस मिसाइल छोड़े जा रहे हों, जिनमें ३५ से अधिक लोगों की जानें चली गईं और
मोदी पुतिन से ग़लबहियाँ कर रहे हों? यही नहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की अध्यक्षता
में वाशिंगटन में नाटो देशों के प्रतिनिधियों ने इस घटना को महज़ एक इतफ़ाक़ बताया, जबकि
नाटो के महासचिव स्टोलनबर्ग ने पुतिन के बच्चों के अस्पताल पर मिसाइली हमले की कड़े
शब्दों में निंदा कर डाली। यहाँ प्रश्न उठता है कि चीन और रुस की विस्तारवादी नीतियों के
मद्देनज़र शांति और सद्भाव पूर्ण बातचीत के बिना कोई विकल्प है?
जो बाइडन ने बत्तीस देशों के नाटो के 75वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि रुस के
मिसाइली हमलों से हवाई सुरक्षा के लिए यूक्रेन के बचाव में चार देशों से ‘पेट्रियट’ सुरक्षा प्रदान की
जाएगी। उन्होंने कहा कि हवाई सुरक्षा के लिए जर्मनी, इटली, नीदरलैंड और रोमानिया ने हवाई
सुरक्षा बंदोबस्त का भरोसा दिलाया है।
रुस की कोशिश यूक्रेन का नाम दुनिया के मानचित्र से हटाना है। बाइडन जिस समय नाटो देशों के
सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, उनकी पार्टी के अनेक सांसद और नेता उनकी आयु और स्वास्थ्य को
लेकर उनके फिर से राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने पर सवालिया निशान लगा रहे थे। बाइडन गुरुवार
को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन सभी सवालों का जवाब देंगे।
इस अवसर पर उन्होंने नाटो के गौरवशाली इतिहास का चित्रण किया और नाटो महासचिव जींस
स्टॉलनबर्ग को मेडल ऑफ़ फ़्रीडम से अलंककृत किया। यह सम्मेलन उसी स्थान पर हो रहा ही, जहां
इसकी स्थापना हुई थी। उनका कहना था कि आज नाटो सर्वशक्ति संपन्न है।