गोपेंद्र नाथ भट्ट
राजस्थान विधानसभा में इस बार एक श्रेष्ठ और अनुकरणीय संसदीय परम्परा का निर्वहन करते हुए विधानसभा अध्यक्ष पद पर भारतीय जनता पार्टी के वासुदेव देवनानी को सर्वसम्मति से निर्विरोध चुना गया । यहाँ तक कि उनके प्रस्तावक और समर्थक भी पक्ष-विपक्ष के शीर्ष नेता बने।
वासुदेव देवनानी निश्चित रूप से एक योग्य और शिक्षक पृष्ठभूमि के वरिष्ठ विधायक है और उन्हें विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों का भी लम्बा अनुभव है। आरएसएस से जुड़े होने के कारण वे मृदु भाषी,व्यवहार कुशल और अनुशासन प्रिय व्यक्तित्व के धनी है।वे अजमेर से पाँच बार से निरन्तर विधायक है और एक से अधिक बार प्रदेश के शिक्षा मन्त्री भी रहे है।उम्मीद है उनकेकार्यकाल में विधानसभा में नए कीर्तिमान स्थापित होंगे लेकिन अभी भी राजनीतिक क्षेत्रों में यह यक्ष प्रश्न चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या इस बार भी राजस्थान विधानसभा उपाध्यक्ष रहित रहेंगी? पन्द्रहवीं विधानसभा का पूरा कार्यकाल विधानसभा उपाध्यक्ष के बिना ही पूरा हो गया।पहली विधान सभा से चौहदवीं विधानसभा के बाद इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पाँच वर्षों तक विधानसभा उपाध्यक्ष के पद को रिक्त ही रखा । इसके पीछें क्या कारण रहें ? इसका जवाब तों उनके अलावा और कोई नहीं दे सकता लेकिन अपनी पार्टी की अंदरूनी जिन चुनौतियों के मध्य उन्होंने अपना यह पूरा कार्यकाल निकाला,वह भी किसी से छुपा हुआ नही है।
सौलहवीं विधानसभा में
भाजपा दौ सौ सीटों वाली राजस्थान विधान सभा में 115 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत में आई है तथा आठ निर्वाचित निर्दलियों में भी सात भाजपा से ही हैं।पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा ने प्रदेश के चौहदवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है। शर्मा मुख्यमंत्री के साथ विधान सभा में सदन के नेता भी है। वे अपने मंत्रिपरिषद में नियमानुसार तीस मन्त्री शामिल कर सकते है । उन्होंने विधानसभा के पहलें सत्र ने विधान सभा अध्यक्ष का निर्विरोध चुनाव करवाने में सफलता हासिल कर पहली बार में ही अपनी छाप छोड़ी है।इसके अलावा उन्हें अब विधानसभा उपाध्यक्ष, सरकारी मुख्य सचेतक और उप सचेतक तथा संसदीय सचिवों आदि का चयन भी करना है।
मुख्यमंत्री बनते ही भजन लाल शर्मा ने जिस प्रकार की राजनीतिक और प्रशासनिक सूझबूझ का परिचय दिया है उसकी सभी ओर सराहना की जा रही है। अपना कार्यभार सम्भालते समय पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और पार्टी के अन्य दिग्गजों की मौजूदगी उनके लिए सकूँन देने वाली थी । इसके बाद प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों की पहली बैठक में उन्होंने यह कह कर कि मैं कोई पूर्वाग्रह के साथ नही आया हूँ और अपनी सरकार की प्राथमिकताएँ तथा चुनाव संकल्प पत्र को सरकारी दस्तावेज के रूप में पेश कर उसे शत प्रतिशत लागू करने में कोई कौताही नही बरतने तथा हर विभाग को सौ दिन की कार्य योजना बनाने की हिदायत देकर अपनी मंशा को मज़बूती से व्यक्त किया है । साथ ही केन्द्र सरकार से कर हस्तांतरण की अतिरिक्त किश्त के रूप में करीब 4400 करोड़ रु की पाने में भी सफलता पाई है।जिससे प्रदेश को माली हालत से उबरने में मदद मिलेंगी।
मुख्यमंत्री शर्मा ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सरकारी निवास पहुँच कर पिछलें तीस वर्षों से बंद एक स्वस्थ परम्परा को भी फिर से बहाल किया है।राजस्थान में पक्ष-विपक्ष के नेताओं के मध्य शुरू से ही मर्यादित व्यवहार और आचरण सदैव बना रहा है । पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे भी हर बजट सत्र के बाद सभी विधायकों के साथ कोई फिल्म देखने तथा स्नेह मिलन का आयोजन करती थी। प्रदेश में एक से अधिक बार मुख्यमंत्री रहें मोहनलाल सुखाडिया,भैरों सिंह शेखावत,हरिदेव जोशी,शिवचरण माथुर,वसुन्धरा राजे एवं अशोक गहलोत आदि सभी मुख्यमंत्रियों के प्रतिपक्ष के साथ अच्छे सम्बन्ध रहें है तथा देश के कतिपय प्रदेशों की तरह आपसी कटुता और बदले की भावना से कार्य करने की परम्परा राजस्थान में कभी नही रही है।
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा चल रही है कि मुख्यमंत्री शर्मा कोअपने मंत्रिपरिषद के गठन की अग्नि परीक्षा के साथ ही विधान सभा में फ्लोर मेनेजनेंट की कठिन परीक्षा से भी गुजरना पड़ सकता है । इसके लिए उन्हें सुयोग्य मुख्य सचेतक,उप सचेतक के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष की मदद के लिए विधानसभा उपाध्यक्ष को भी चुनना होगा।इस बार की विधानसभा पक्ष-विपक्ष के दिग्गजों से भरी हुई है।
राजस्थान विधान सभा में अब तक 19 विधानसभा उपाध्यक्ष रहें है।1952 से अब तक सिर्फ़ 15वीं विधान सभा में ही कोई उपाध्यक्ष निर्वाचित नही हुआ था। प्रदेश में अब तक लाल सिंह शेखावत, निरंजन नाथ आचार्च,नारायण सिंह मसूदा,पूनम चंद विश्नोई,राम नारायण चौधरी,राम सिंह यादव,राम चंद्र,अहमद बक्श सिन्धी,गिरिराज प्रसाद तिवाड़ी,किशन मोटवानी,यदुनाथ सिंह,हीरा सिंह चौहान,शान्ति लाल चपलोत, समरथ लाल मीणा, तारा भण्डारी,देवेन्द्र सिंह,राम नारायण बिशनोई ,राम नारायण मीणाऔर राव राजेन्द्र सिंह उपाध्यक्ष रहें हैं।
राजस्थान की पहली विधानसभा में प्रतिपक्ष के विधायक को उपाध्यक्ष बनाया गया था। राज्यसभा और लोकसभा में प्रायः प्रतिपक्ष के नेताओं को उप सभापति एवं लोकसभा का उपाध्यक्ष बनाया जाता रहा है लेकिन विधान सभाओं में यह परम्परा नही चल पा रही है। ऐसे में प्रदेश के नए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा प्रतिपक्ष के किसी नेता को विधान सभा उपाध्यक्ष बना कर एक नई परम्परा शुरू कर मील का एक नया पत्थर स्थापित कर सकते है।