पाक को हरा 1964 में ओलंपिक स्वर्ण, 1966 में उसे हरा एशियाई खेलों का स्वर्ण जीतना दिल के सबसे करीब: गुरबक्श

Winning Olympic gold in 1964 against Pakistan, Asian Games gold in 1966 are closest to my heart: Gurbaksh

  • हम भारतीयों को हॉकी अपनी इस विरासत गर्व होना चाहिए
  • भारतीय हॉकी की शताब्दी को शानदार ढंग से मनाना चाहिए
  • पाक के खिलाफ हमेशा ऐसे खेलते थे जैसे यह कोई और मैच हो, जिसे जीतना ही है

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : हॉकी इंडिया ने आज यानी मंगलवार से एक महीने का अभियान शुरू किया है, जो 7 नवंबर 2025 को भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूरे होने के शताब्दी समारोह तक चलेगा। पहला हॉकी खेल प्रशासनिक निकाय 7 नवंबर, 1925 को गठित किया गया था। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 1928 में एम्सर्टडम में नीदरलैंड को हरा कर अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। तब से भारतीय पुरुष हॉकी टीम अब तक ओलंपिक के इतिहास में अब तक कुल सबसे ज्यादा कुल आठ बार स्वर्ण पदक जीत चुकी है। 1928 से 1956तक लगातार छह बार भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीते। भारत 1960 में रोम में पहली बार ओलंपिक में पाकिस्तान से फाइनल में 0-1 से हार कर पहली बार स्वर्ण पदक जीतने से चूका लेकिन 1964 में टोक्यो ओलंपिक में भारत ने पाकिस्तान को फाइनल में हरा कर सातवीं बार और फिर 1980 में मास्को ओलंपिक में स्पेन को 4-3 से हराकर आठवीं और आखिरी बार स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद भारतीय हॉकी करीब दो दशक तक नीचे ही खिसकती चली गई। भारत ने मनप्रीत सिंह की अगुआई में 2020 में टोक्यो और 2024 में हरमनप्रीत सिंह की अगुआई में लगातार दो बार ओलंपिक में कांसा जीत कर फिर विश्व पटल पर हॉकी में अपना पहचान वापस पाई। भारत की पुरुष हॉकी टीम ने अब तक ओलंपिक में आठ स्वर्ण, एक रजत और चार कांस्य पदक जीते हैं। भारत साथ ही 1975 में दद्दा ध्यानचंद पुत्र के गोल से पाकिस्तान को हॉकी विश्व कप के फाइनल में हराकर एक बार खिताब जीता। भारत ने 1971 में पुरुष हॉकी विश्व कप में कांसा और 1973 के विश्व कप में रजत पदक जीता था। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने एशियाई खेलों में अब तक चार बार स्वर्ण,9 बार रजत और तीन बार कांस्य पदक जीता है।साथ ही भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अब तक एशियाई खेलों में सात पदक जीते हैं।

अगले महीने भारतीय हॉकी के 100 पूरे कर इसकी शताब्दी की अहमियत की बाबत भारत के सबसे बुजुर्ग ओलंपिक खिलाड़ी 90 बरस के गुरबक्श सिंह ने कहा कि भारत के समृद्ध और सबसे शानदार खेल हॉकी का हिस्सा बनना बड़े आनंद की बात है। गुरबक्श सिंह ने कहा,‘भारतीय हॉकी के विश्व स्तर पर इतनी गजब की उपलब्धियों के साथ सौ बरस पूरे करना शानदार है।
भारतीय हॉकी खेल जगत में सर्वोच्च स्थान रखती है और इसकी शताब्दी को बेशक सबसे शानदार ढंग से मनाया जाना चाहिए। हम भारतीयों को हॉकी अपनी इस विरासत गर्व होना चाहिए।

गुरबक्श सिंह अकेले ऐसे खिलाड़ी जो चश्मा पहन कर हॉकी खेले और इस पर पाकिस्तान खिलाड़ियों ने ‘प्रोफेसर’ कह कर पुकारा। उन्होंने 1955 ग्वालियर विश्वविद्यालय से उदीयमान हॉकी खिलाड़ी के रूप में अपने करियर का आगाज किया और दद्दा ध्यानचंद के छोटे भाई खुद बेहतरीन फॉरवर्ड रहे 1936 में ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य रहे रूप सिंह से हॉकी के गुर सीखे। गुरबक्श सिह 1964 में पाकिस्तान को हरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे। 1964 के ओलंपिक में भ गुरबक्श सिंह कहते हैं, ‘ मुझे हॉकी से जुड़े अब 65बरस हो चुके हैं। मैंने अपनी जिंदगी हॉकी की वजह से ही अब तक शान से जी है। 1964 में ओलंपिक में पाकिस्तान को हरा स्वर्ण पदक जीतने के बाद 1966 में एशियाई खेलों के फाइनल में उसे हरा कर स्वर्ण पदक जीतना हमेशा मेरे दिल के सबसे करीब है। हमने 1964 में पाकिस्तान को टोक्यो ओलंपिक में हरा कर उससे वापस स्वर्ण पदक(विश्व खिताब) जीता था, तब यही विश्व कप खिताब था क्योंकि तब कोई विश्व कप नहीं होता था। तब ओलंपिक जीतने वाली टीम ही विश्व चैंपियन कहलाती थी। हमने इसके बाद 1966 में हमने पहली बार एशियाई खेलो में हॉकी का स्वर्ण पदक जीता था।`

जब गुरबक्श सिंह से खेलों में बीते 100 बरस में सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी की बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘भारत वि पाकिस्तान , बेशक यह खेल की सर्वकालिक सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता है। देश के बंटवारे से पहले हम एक इकाई के रूपमें खेले और बंटवारे के बाद भी कोई यूरोपीय टीम हमारे और पाकिस्तान के बीच प्रतिद्वंद्विता के करीब नहीं पहुंच पाई। दोनों टीमें के बीच मैच में बेहद संघर्षपूर्ण रहे। निजी तौर पर मैं कहूंगा कि दोनों टीमों के बीच मैदान के बाहर कभी कोई दुश्मनी नहीं रही। पाकिस्तान टीम के 18 में से 13 खिलाड़ी पंजाबी थे, जो कि मुल्क के बंटवारे से प्रभावित हुए थे। आपको याद दिला दूं हम 1966 के एशियाई खेलों में पाकिस्तान के खिलाफ 1965 के युद्ध के बाद खेले थे। मैदान पर पाकिस्तान को हम एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते थे जिसे हम हराना चाहते थे। मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि हम पाकिस्तान से खेल रहे हैं। बल्कि हम पाकिस्तान के खिलाफ हमेशा ऐसे खेलते थे जैसे यह कोई और मैच हो जिसे जीतना ही है, और यही सबसे अहम है।