एलएनजेपी में अफसरों की मिलीभगत से दुकानदारों की बल्ले बल्ले

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली सरकार में अफसर शाही कैसे काम करती है? इसका उदाहरण लोकनायक अस्पताल के अफसरों की करतूत से लगाया जा सकता है. अस्पताल परिसर में स्थित दुकानों को बंद/खाली कराने के लिए अस्पताल प्रशासन ने एक दशक पहले नोटिस जारी किए थे. तभी हाईकोर्ट ने भी अस्पताल प्रशासन के हक़ में आदेश जारी कर दिया था. इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन ने दुकानों को बंद नहीं कराया. किन अफसरों या कर्मचारियों की मिलीभगत से ये दुकानें अब तक चल रही हैं? उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को इस मामले की जांच एंटी करप्शन ब्रांच से करानी चाहिए.

दुकानें कैसे चल रही हैं? –
दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 मार्च 2014 को अस्पताल परिसर में स्थित कियोस्क/ दुकान वालों की याचिकाएं डिसमिस कर दी थी.
इसके बाद भी यह दुकानें कैसे चल रही हैं? दिल्ली सरकार/अस्पताल प्रशासन ने हाईकोर्ट से केस जीतने के बावजूद दुकानों को बंद क्यों नहीं कराया ?

कब्जा क्यों नहीं लिया-
अस्पताल प्रशासन को हाईकोर्ट के आदेश के बाद तो दुकानों को बंद करा कर कब्जा ले लेना चाहिए था, दुकानदार अगर दुकान आसानी से खाली नहीं करते, तो पुलिस की मदद से दुकान खाली कराई जा सकती थी. हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी दुकान खाली नहीं की गई, तो अस्पताल प्रशासन को दुकान मालिकों से बाजार भाव से किराए की वसूली करनी चाहिए थी. लेकिन अस्पताल प्रशासन ने ऐसा कुछ नहीं किया. इससे साफ़ पता चलता है कि अस्पताल के संबंधित अफसरों की दुकान वालों से मिलीभगत है.
दूसरी ओर हाईकोर्ट से याचिका खारिज हो जाने पर कानूनी तौर पर दुकान मालिकों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह दुकान खाली करके कब्जा अस्पताल प्रशासन को सौंप देते.

हाईकोर्ट का फैसला-
अस्पताल प्रशासन ने इन दुकानों को बंद करने का नोटिस साल 2013 और 2014 में दिया था, जिसके खिलाफ शमशेर अली, चंद्र कांता, सत्यनारायण आदि हाईकोर्ट चल गए. हाईकोर्ट ने उनकी याचिकाओं को डिसमिस कर दिया. हाईकोर्ट के जस्टिस मनमोहन ने कहा कि एक दशक से अधिक समय से कियोस्क चला रहे हैं, सिर्फ इसलिए वह यह दावा नहीं कर सकते कि राज्य को उसे बेदखल करने से पहले उसका पुनर्वास करना चाहिए. यदि याचिकाकर्ता का निवेदन स्वीकार कर लिया जाता है तो सरकार के लिए राज्य के सभी बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका और आवेदन योग्यता से रहित होने के कारण खारिज किए जाते हैं.

7-8 दुकानें अवैध रूप से चल रही हैं?
अस्पताल में इमरजेंसी के सामने गेट नंबर चार पर तीन दुकानें हैं. एक एचपीएससी के नाम से उसके बराबर में ओल्ड कॉफी शॉप, तीसरी बिना किसी नाम के है. ओल्ड कॉफी शॉप सत्यनारायण के नाम से आवंटित है. सत्यनारायण खरखोदा, हरियाणा का निवासी है.वहीं पर रहता है. अस्पताल प्रशासन ने हरियाणा निवासी सत्यनारायण को दो-दो दुकानें कैसे आवंटित कर दी? सत्यनारायण ने लोकनायक अस्पताल से ही अपना विकलांग होने का प्रमाण पत्र कैसे बनवाया? इस विकलांगता प्रमाण पत्र के आधार पर ही दो दो दुकानें कैसे आवंटित कर दी गई? दोनों दुकानें शुरू से ही सोनू नामक व्यक्ति चला रहा है. एचपीएससी के नाम से किसी पठानिया के नाम यह दुकान आवंटित की गई है। इस दुकान को शुरू से ही सुधीर नामक व्यक्ति चला रहा है.
इस दुकान पर सिर्फ एचपीएससी के उत्पाद जूस आदि ही बेचे जा सकते हैं. लेकिन चाय, काफ़ी,पैटीज,बर्गर और कोल्ड ड्रिंक, पानी की बोतल से लेकर अनेक चीजें बेची जा रही है. अन्य दुकानें भी सिर्फ चाय, कॉफी और शीतल पेय बेचने के लिए आवंटित की गई है लेकिन अस्पताल प्रशासन की सांठ-गांठ के कारण ही सभी दुकानों पर आवंटन की तय शर्तों का उल्लंघन कर अन्य सामान बेचा जा रहा है. प्रसूति वार्ड के पास कृष्णा के नाम से दुकान है. प्रसूति वार्ड के वेटिंग हाल से आगे के रास्ते में भी एक अन्य दुकान है.
एक अन्य दुकान पठानिया की बहन के नाम से आवंटित बताई जाती है. सच्चाई यह है कि दुकान कागजों में जिन लोगों को आवंटित की गई है उनमें से सिर्फ एक या दो दुकान को ही उनके मालिक खुद बैठ कर चला रहे हैं. बाकियों को अन्य लोग ही चला रहे हैं जोकि आवंटन के नियमों का उल्लंघन है.

कैमरे पोल खोल देंगे-
अस्पताल परिसर और दुकानों में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की जांच की जाए तो यह साबित हो जाएगा कि सत्यनारायण हो या पठानिया कोई भी, कभी भी दुकान पर नहीं बैठता है. ये लोग करीब ढाई दशक से दुकान लिए हुए, लेकिन ढाई दिन भी दुकान पर नहीं बैठे होंगे. इसका मतलब इन लोगों के और भी काम धंधे है. ऐसे लोगों को दुकान आवंटित किया जाना जरूरतमंद बेरोजगारों का हक़ मारना ही है. अस्पताल प्रशासन और स्टाफ की जानकारी में यह सब कुछ है लेकिन फिर भी दुकानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती. अस्पताल प्रशासन कार्रवाई क्यों नहीं करता यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है. वैसे दुकान चला रहा सोनू तो कहता फिरता है कि वह तो अफसरों को ‘खुश’ करके ही दुकान चला रहा है.

आयकर / जीएसटी विभाग जांच करें-
अस्पताल प्रशासन की सांठ-गांठ का इससे ही पता चलता है कि दुकानों पर खाने पीने का सामान बनाया और बेचा जाता है. अस्पताल प्रशासन को क्या यह नहीं देखना चाहिए दुकानदारों ने एमसीडी के स्वास्थ्य विभाग से लाइसेंस लिया हुआ है या नहीं. दिल्ली सरकार के खाद्य पदार्थों की जांच करने वाले विभाग को भी इन दुकानों पर बिकने वाले सामान की जांच करनी चाहिए.
दुकानों पर काम करने वाले नौकरों को सरकार द्वारा निर्धारित वेतन मिलता है या नहीं, श्रम विभाग को भी इसकी जांच करनी चाहिए. दुकान मालिकों की जांच आयकर विभाग और जीएसटी विभाग को करनी चाहिए.

दो-दो दुकानें –
एक सबसे बड़ा सवाल सत्यनारायण को दो दुकानें कैसे आवंटित कर दी गई? सत्यनारायण की पुरानी दुकान पुरानी इमरजेंसी के बाहर अभी भी कैसे चल रही है? साल 2007 में इमरजेंसी की नई इमारत बनने के बाद तो पुरानी इमरजेंसी की दुकानों को वहां से शिफ्ट कर दिया गया था.लेकिन सत्यनारायण की पुरानी दुकान वहां पर अभी भी कैसे है? .

मेडिकल डायरेक्टर की भूमिका-

लोकनायक अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर सुरेश कुमार से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी भेज दीजिए. इस पत्रकार ने उन्हें याद दिलाया कि आदेश की कॉपियां तो अस्पताल प्रशासन के पास होनी ही चाहिए. इस पत्रकार ने हाईकोर्ट के आदेशों की कॉपियां और इस बारे में सवाल एमडी को भेज दिए. लेकिन सुरेश कुमार ने खबर लिखे जाने तक अपना पक्ष नहीं दिया. कुछ दिन पहले एसडीएम नरेंद्र राणा की मौजूदगी में लोकनायक पुलिस चौकी में तैनात पुलिस अफसरों ने भी एमडी को हाईकोर्ट के आदेश के बारे में बताया था.

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)