पुष्कर मेला है लोक परंपरा, आस्था और उत्सव का अनूठा संगम
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान की रेतिली धरती पर जब सर्द हवाएँ बहने लगती हैं, तब अजमेर जिले का छोटा-सा कस्बा पुष्कर एक भव्य रंगीन संसार में बदल जाता है। पुष्कर मेला, जिसे पुष्कर पशु मेला या कार्तिक पूर्णिमा मेला भी कहा जाता है, भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के सबसे प्रसिद्ध मेलों में से एक है। इस वर्ष पुष्कर मेला 30 अक्टूबर से 5 नवंबर 2025 तक आयोजित किया जा रहा है। कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर लगने वाला यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मेला केवल ऊँटों और पशुओं की खरीद-फरोख्त का केंद्र नहीं, बल्कि भारत की ग्रामीण संस्कृति, लोकजीवन, अध्यात्म और पर्यटन का शानदार उत्सव है।
राजस्थान पर्यटन विभाग और अजमेर जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा,विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी, उप मुख्यमंत्री और पर्यटन मंत्री दिया कुमारी के मार्ग दर्शन में इस वर्ष मेले को और भव्य बनाने के लिए कई नई पहलें की हैं। राज्य सरकार द्वारा ऊँट परिवहन पर लगी पाबंदी हटाई गई है, जिससे पश्चिमी राजस्थान के मरुक्षेत्रों से हजारों ऊँट मेले में पहुँच रहे हैं। पशु व्यापार को व्यवस्थित करने के लिए विशेष “लाइवस्टॉक ज़ोन” बनाया गया है।पर्यटकों की सुविधा हेतु अस्थायी टेंट सिटी, स्वच्छता केंद्र, चिकित्सा शिविर और सुरक्षा चौकियाँ स्थापित की गई हैं।मेले के प्रवेश द्वारों को पारंपरिक राजस्थानी स्थापत्य से सजाया गया है, वहीं एलईडी लाइटिंग और झाँकियों से पूरा क्षेत्र जगमगा उठा है।
ट्रैफिक नियंत्रण, पार्किंग व्यवस्था, पेयजल और मोबाइल शौचालय जैसी सुविधाएँ पूर्व वर्षों की तुलना में बेहतर की गई हैं।
पुष्कर का नाम आते ही मन में भगवान ब्रह्मा का ध्यान आता है। कहा जाता है कि यह संसार का एकमात्र स्थान है जहाँ ब्रह्मा जी का मंदिर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने यज्ञ के लिए एक पवित्र स्थान खोजा, तो एक कमल का फूल उनके हाथ से गिरा और जहाँ वह गिरा, वहाँ पुष्कर झील का उद्भव हुआ। इसलिए इस स्थल को “पुष्कर” कहा गया — जिसका अर्थ है “कमल”। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ स्नान करने और ब्रह्मा मंदिर में पूजा करने का विशेष महत्व है। यह विश्वास है कि इस दिन पुष्कर सरोवर में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी धार्मिक भावना के साथ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।पुष्कर मेला सदियों पुराना है। पहले इसका मुख्य उद्देश्य पशुओं—विशेषकर ऊँट, घोड़े और गायों—की खरीद-बिक्री था। राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में ऊँटों को “रेगिस्तान का जहाज” कहा जाता है, इसलिए ऊँट व्यापार इस मेले का मुख्य आकर्षण था। समय के साथ यह मेला एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पर्यटन उत्सव का रूप ले चुका है। आज यह न केवल पशु व्यापार का केंद्र है, बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति का जीवंत प्रदर्शन भी बन चुका है।
यह मेला कार्तिक मास की पूर्णिमा पर्व पर अपने चरम पर रहता है । यह मेला लगभग सात से दस दिनों तक चलता है। इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है। इस दौरान पूरा पुष्कर कस्बा श्रद्धालुओं, व्यापारियों, पर्यटकों और कलाकारों से गुलज़ार रहता है। पुष्कर मेला ऊँटों और पशुओं के विशालतम व्यापारिक आयोजनों में से एक है। हजारों की संख्या में ऊँट, घोड़े, गायें और भैंसें यहाँ लाई जाती हैं। ऊँटों को सजाने की पारंपरिक प्रतियोगिताएँ मेले की शान बढ़ा देती हैं। “ऊँट सजावट प्रतियोगिता”, “ऊँट दौड़”, “घोड़ा नृत्य प्रदर्शन” जैसे आयोजन पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण होते हैं।राजस्थान के पशुपालक महीनों पहले से अपने पशुओं को सुसज्जित करते हैं — उनके शरीर पर मेहंदी और रंगीन चित्रकारी की जाती है, सुंदर गहनों और झुनझुनों से सजाया जाता है। इन ऊँटों और घोड़ों का व्यापार लाखों-करोड़ों में होता है।
पुष्कर मेला राजस्थान की लोकसंस्कृति का जीवंत दर्पण है। यहाँ लोक संगीत, नृत्य, पारंपरिक खेल, हस्तशिल्प प्रदर्शन और लोककला प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
राजस्थान के दूर-दराज़ इलाकों से आए कलाकार ढोलक, चंग, मुरली और सारंगी की धुनों पर लोकगीत गाते हैं। “घूमर” और “कालबेलिया” जैसे नृत्य पूरे वातावरण को रोमांचक बना देते हैं।
महिलाएँ रंग-बिरंगे घाघरा-चोली और ओढ़नी में सजी होती हैं, जबकि पुरुष पगड़ी और धोती-कुर्ता में। पूरा वातावरण लोक रंगों से सराबोर होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर झील में स्नान का महत्व सबसे अधिक होता है। माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं पुष्कर सरोवर में स्नान करते हैं। श्रद्धालु ब्रह्मा मंदिर, सावित्री मंदिर और अन्य पवित्र स्थलों की परिक्रमा करते हैं।रात के समय झील के घाटों पर दीपदान का दृश्य अद्भुत होता है — सैकड़ों दीपक जलते हैं, जिनकी झिलमिलाहट झील के पानी में प्रतिबिंबित होकर एक दिव्य वातावरण बना देती है।मेले में सजे बाजार राजस्थान की पारंपरिक कारीगरी के अनोखे नमूने प्रस्तुत करते हैं। पर्यटक यहाँ से चूड़ियाँ, आभूषण, वस्त्र, ऊँट की चमड़े की वस्तुएँ, कालीन, और मिट्टी के खिलौने खरीदते हैं। यह मेला स्थानीय कारीगरों के लिए अपनी कला दिखाने और जीविका कमाने का बड़ा अवसर भी होता है।
पुष्कर मेला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। हर वर्ष सैकड़ों विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं जो भारतीय संस्कृति, लोक संगीत और धार्मिकता का प्रत्यक्ष अनुभव लेना चाहते हैं।यहाँ आयोजित “हॉट एयर बलून शो”, “रूरल गेम्स”, “डेजर्ट सफारी”, और “फोटोग्राफी प्रतियोगिताएँ” विदेशियों के लिए विशेष आकर्षण हैं। पुष्कर का शांत वातावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा उन्हें गहराई से प्रभावित करती है।
राजस्थान पर्यटन विभाग ने इस मेले को विश्वस्तरीय आयोजन बनाने के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की है। यहाँ अस्थायी टेंट सिटी, खानपान स्टॉल, लोक मंच, सांस्कृतिक झाँकियाँ, और पर्यटक सहायता केंद्र बनाए गए हैं। सुरक्षा और स्वच्छता के लिए भी कड़े प्रबंध किए गए हैं।
राज्य सरकार का उद्देश्य है कि पुष्कर मेला न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र रहे, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और हस्तशिल्प को भी प्रोत्साहित करे।
पुष्कर मेला केवल ऊँटों का मेला नहीं, बल्कि यह लोकसंस्कृति, श्रद्धा और एकता का जीवंत उत्सव है। यहाँ धर्म और व्यापार, परंपरा और आधुनिकता, ग्रामीण जीवन और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन — सब एक मंच पर मिलते हैं।इस मेले की रेत में गूंजती लोकधुनें, झील के किनारे टिमटिमाते दीपक, सजे हुए ऊँटों की कतारें और श्रद्धालुओं की भीड़ — यह सब मिलकर एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं। पुष्कर मेला वास्तव में राजस्थान की आत्मा है — जो हर वर्ष हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिकता की याद दिलाता है।





