नरेंद्र तिवारी
भारतीय जनमानस के श्रद्धापुंज मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वनवासी जीवन के सम्बंध में अनेकों कथाएं प्रचलित है। इन कथाओं से रूबरू होने का अवसर चित्रकूट यात्रा के दौरान मिला। यहां पहुचने के लिए इंदौर से रेल के माध्यम से यूपी के चित्रकूट कर्वी रेलवे स्टेशन पर जब उतरे तो रामनवमी के शुभ अवसर पर चित्रकूट के दर्शन कर जाने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ से सामना हुआ। यह रेलवे स्टेशन अपेक्षाकृत बेहद छोटा नजर आया जिसके बडे स्टेशन के रूप में विकसित किये जाने की आवश्यकता भी प्रतीत हुई। रेलवे स्टेशन से चित्रकूट के लिए आते-जाते समय राज्यों की सीमा का अहसास ई-रिक्शा चालकों के द्वारा कराया गया यूपी के रिक्शा चालकों ने एमपी की सीमा तक फिर यहां से एमपी के रिक्शा चालकों ने विश्राम गृह तक पहुचाया। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित ऐतिहासिक तीर्थ चित्रकूट की विशेषताओं में यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि आप कब एमपी में और कब यूपी की सीमाओं में प्रवेश कर जाते है, पता ही नही चल पाता। यह एहसास स्थानीय नागरिकों की शिकायतों से होता है। मध्यप्रदेश स्थित तीर्थ क्षेत्र चित्रकूट के स्थानीय रहवासी वैभव त्रिपाठी के अनुसार तीर्थ क्षेत्र चित्रकूट का अधिकांश भाग एमपी की सीमा में है। जिसका विकास उस तरह नहीं हुआ जैसे यूपी की सीमा में स्थित चित्रकूट का हुआ है। यह पावन धरा श्रीराम के जीवन की कथाओं का बोध कराने वाली है। अतएव यहां सीमाओं के बंधनों को तोड़कर समान रूप से विकास किया जाना चाहिए। तीर्थ क्षेत्र चित्रकूट की यात्रा का शुभारंभ रामघाट में स्नान के साथ ही होता है। मंदाकिनी नदी पर स्थित सुंदर रामघाट का नजारा बरबस ही आकर्षित करता है। इस घाट पर प्रभु श्रीराम नित्य स्नान किया करते थै। श्री राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान भी रामघाट पर ही किया था। इस घाट से जुड़ा गोस्वामी तुलसीदास का जगत प्रसिद्ध दोहा जो चित्रकूट की ऐतिहासिकता का प्रमाण है। वह दोहा है ‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुवीर।’ रामघाट के बाहरी सौंदर्य ने तो मन मोह लिया, किंतु मंदाकिनी नदी के जल और घाट की व्यवस्थाओं ने स्थानीय प्रबंधन की कमजोरी को उजागर भी किया। पवित्र मंदाकिनी का जल काला और प्रदूषित नजर आया। ऐसा लगा मानो मंदाकिनी में आसपास कारखानों का प्रदूषित जल आकर मिल रहा है जो इस पवित्र नदी के जल को प्रदूषित कर रहा है। मंदाकिनी के जल को साफ, स्वच्छ और निर्मल बनाए जाने की बेहद आवश्यकता है। घाट पर कहीं कहीं गंदगी भी दिखाई दी। रामघाट स्थित मंदाकिनी में स्नान ध्यान के बाद कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा का क्रम है।क्रमानुसार प्रथम मुखारबिंद से कामदगिरी की यात्रा प्रारंभ की। कामदगिरी की यह परिक्रमा 5 किलोमीटर की है। इस परिक्रमा के महत्व को रामायण की पौराणिक कथा में भी प्रदर्शित किया है, जिसके अनुसार जब मर्यादा पुरुषोत्तम ने इस पर्वत से आगे बढ़ने की ठानी तो पर्वतराज चिंतित हो गए उन्होंने अपनी चिंता से श्रीराम को अवगत कराया कि प्रभु आपके रहते ही मेरी पूछ परख है, आपके जाने के बाद मेरा क्या होगा तब भगवान श्रीराम ने पर्वतराज को आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस पर्वत की परिक्रमा पूर्ण करेगा उसकी हर मनोकामनाएं पूरी होगी। तब से इस पर्वत की परिक्रमा की परंपरा जारी है। इस पर्वत का नाम भी कामदगिरी रखा गया। परिक्रमा मार्ग अत्यंत सुंदर है। एमपी एवं यूपी दोनों राज्यो की सीमाओं से होकर परिक्रमा मार्ग गुजरता है। सम्पूर्ण मार्ग पक्का है। परिक्रमावासियों के लिए बरसात और धूप से बचने के लिए छांव हेतु मजबूत शेड बनाए गए है। स्थानीय दुकानदारों की प्रतिस्पर्धा भी साफ नजर आती है। अनेकों दुकानदारों ने अपना सामान परिक्रमा मार्ग तक भी फैला रखा है। परिक्रमा मार्ग पर कुछ स्थानों पर गंदगी को दूर किये जाने की भी आवश्यकता महसूस हुई। कुछ स्थानों पर शीतल पेयजल की व्यवस्था भी बेहद जरूरी जान पड़ी रही थी। बोतल बन्द पेयजल की बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध होना चाहिए। प्लाष्टिक की खाली बोतलों से कामदगिरी पर्वत के पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। इस मार्ग पर दर्शनीय देवालय स्थित है। इसमें राम मुहल्ला, मुखारबिंद, साक्षी गोपाल, भारत-मिलाप (चरण-पादुका) एवं पीली कोठी अधिक महत्वपूर्ण है। नवीन निर्मित कुछ देवालय परिक्रमा मार्ग की पौराणिक कथाओं से जुड़े होने का छलावा भी करते है। कामदगिरी पर्वत पर लक्ष्मण पहाड़ी भी स्थित है। यहां पैदल 250 सीढियां चढ़कर या रोप वे की मदद से पहुचा जा सकता है। लक्ष्मण पहाड़ी पर श्रद्धालु अपने सपनो के महल की कामना भी करतें है। इस पहाड़ी से चित्रकूट शहर को सम्पूर्णता से देखा जा सकता है। कामदगिरी की 5 किलोमीटर की परिक्रमा श्रीराम के वनवासी जीवन से जुड़े अनेकों प्रसंगों से परिचित कराती है। चित्रकूट यात्रा के दौरान हनुमान धारा के दर्शन का भी बहुत महत्व है। कथानुसार श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद माता सीता अतिप्रसन्न थी। वें सभी को इच्छानुसार आशीर्वाद दे रहीं थी। इस दौरान उन्होंने हनुमान जी पूछा कि आप उदास क्यों है। तब हनुमान जी ने कहा माते लंका दहन के बाद से मेरे हृदय में जलन सी है, आप उसे शीतलता प्रदान करें। तब माता सीता ने हनुमान जी से चित्रकूट के इस पर्वत पर स्थापित होने को कहा तब से हनुमान जी के बाएं हाथ से शीतल धारा गिरकर शरीर से होते हुए दो कुंडों में विलोपित हो गयी है। यह धारा 24 घण्टे एक समान गिरते रहती है। यह धारा कहा से आई और कहा वापिस गयी ज्ञात नही हो पाया है। इस हनुमान धारा पर्वत पर सीता की रसोई नामक स्थान भी है। कहते है वनवास के दौरान माता सीता श्रीराम के लिए यहीं रसोई बनाती थी। स्फटिक शिला की भी अपनी कहानी है और सती अनुसुइया की कथा भी जनसामान्य में खासी प्रचलित है। सती अनुसुइया ने सीता जी को पति धर्म का ज्ञान कराया था। कहते है सती अनुसुइया के कठोर तप ने ही चित्रकूट में मंदाकिनी नदी को अवतरित कराया। मंदाकिनी नदी को गंगा नदी की बहन के रूप में भी जाना जाता है। चित्रकूट तीर्थ की यात्रा के दौरान चित्रकूट से 15 किलामीटर की दूरी पर स्थित गुप्त गोदावरी के दर्शन का भी बड़ा महत्व है। गोदावरी नदी एक पहाड़ के अंदर ही सिमट गई है। यहां से बाहर निकलने पर नदी दिखाई नही देती है। इसका उद्गम स्थल भी यही है और सिमटी भी यही है। इसलिए इस स्थल को गुप्त गोदावरी कहा जाता है। माता सीता इसी स्थान पर स्नान करती थी। चित्रकूट के दर्शन से मर्यादा पुरुषोत्तम के वनवासी जीवन की अनेकों कहानियों और पौराणिक प्रसंगों से जुड़ने का अवसर मिलता है। चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र मध्यप्रदेश राज्य के सतना जिले की नगर पंचायत है। जबकि यूपी में चित्रकूट जिला मुख्यालय है। रेलवे स्टेशन चित्रकूट कर्वी है। यहां से सड़क मार्ग से प्रयाग राज की दूरी 139 किलोमीटर जबकि खजुराहो की दूरी 159 किलोमीटर है। प्रयागराज ओर खजुराहो तक हवाई मार्ग से भी पहुचा जा सकता है। भारतीय आस्था के केंद्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के वनवासी जीवन से जुड़ी कथाओं का चित्रकूट गवाह है। इस तीर्थ क्षेत्र की यात्रा जनमानस की श्रद्धा के केंद्र श्रीराम के वनवासी जीवन के 11 वर्षो की घटनाओं, कथाओ, कहानियों से परिचित कराती है। चित्रकूट में दीपावली एवं रामनवमी के दौरान मेला लगता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु रामघाट में स्नानकर कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करते है। देव भूमि भारत में श्रीराम का जीवन त्याग, तपस्या, बलिदान और साहस का प्रतीक है। श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या के बाद तपोभूमि चित्रकूट का भारतीय दर्शन परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान है। इस तीर्थ क्षेत्र के सीमावर्ती होने के कारण समुचित विकास नहीं हो पाया। श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट धाम को विकास की दरकार भी है।