नारी तू नारायणी हैं …..हम बेबस हैं शस्त्र उठाओ

Woman, you are Narayani .....We are helpless, pick up arms

बृजेश कुमार

देश में आज की महिलाओं की स्थिति नें बरबस ही लोगों का ध्यान निर्भया कांड की तरफ खींच लिया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय़ भी देश में तमाम बडे बडे दावे किये गये। कानून, लोकपाल, और भ्रष्टाचार तक को समाप्त करने की बात की गयी । लेकिन मामला आया गया निपट गया लोग भूल गये । लेकिन इसके परिणाम स्वरूप दो चीजों का देश में व्यापक स्तर पर प्रभाव पड़ा । सरकार में बीजेपी की वापसी और केजरीवाल की पार्टी झाडू का उद्भव । कानून में कुछ बदलाव कुछ सफलता कदाचित प्राप्त भी हुई हो । कालाधन पर देश में जो भी हुआ देश ने देखा और दूसरी बात तेल की कीमतें हालांकि 35 रूपये होने वाली थी, न हो सकी। न ही 100 स्मार्ट सीटी का अता पता कहीं दिख रहा है। बेरोजगारों की फौज जश की तश है । रेलों में आज भी यात्रियों की ठसाठस रेलमपेल है।

बात शुरू हुई थी बंगाल की विभत्स घटना की।और ऐसे में चर्चा न हो कैसे संभव । आज फिर से देश में उबाल है, जब महिला डाक्टर की रेप के बाद हत्या की घटना देश के सामने आयी तो रूह तक कांप गयी। यह घटना बहुत ही दुखद है यह पुरूष की पशुता की कूर्तम परिभाषा है । जो समाज में कभी भी स्वीकार्य नहीं है। इस पूरे प्रकरण में टीएमसी की भी भूमिका संदिग्ध नजर आती है । क्योंकि जिस तरह से प्रिंसिपल का ट्रांसफर किया गया,सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गयी। यह ठीक नही है। इससे साफ साफ पता चलता है कि कुछ तो था जिसे छुपाया गया। क्योंकि देश की बहन बेटियां जब मतदान करती हैं या चुनाव के समय तो सरकार तमाम प्रकार की सुरक्षा की गारंटी देती हैं, लेकिन जमीन पर कुछ और ही नजर आता है।सरकार किसी की भी हत्या रेप,हत्या, बलात्कार की घटना पर कोई रोक नहीं लग पा रही है।

इस प्रकार की घटना तमाम सरकारी योजनाओं पर तमाचा है जो देश में बेटीयों की सुरक्षा की गारंटी देती हैं । हालांकि सीधे शब्दों में कहे तो यह बंगाल सरकार, देश की सरकार के मुंह पर तमाचा है। इसे और सही शब्दों में कहे तो हर नागरिक के मुंह पर तमाचा है। जब हमारी बेटियां ओलंपिक जीत सकती है चांद पर जा सकती है। वैज्ञानिक बन सकती है और सब कुछ कर सकती है लेकिन अपने परिवार समाज मे स्कूल कालेज हॉस्पिटल में सुरक्षित नहीं है। उन्हे डर लगा रहता है, समाज के उन भेडियों से जो हमेशा शिकार की ताक में बैठे रहते है। उन्हे पहचानना मुश्किल है।

हम किस समाज की तरफ बढ़ रहे हैं । जहां मानवता मरती जा रही है पशुता बढ़ती जा रही है। हम समझ रहे हैं कि हम इस भौतिकवादी संसार में मूल्यों की बात करें, जो संभव नजर नही आता । क्योंकि हम नोट कमाने के चक्कर में परिवार समाज और नैतिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं।

बात बंगाल की घटना तक सीमित नहीं है। देश में अगर महिलाओं की स्थिति की बात करें तो राजस्थान की घटना जिसमें तीन वर्षीय बच्ची के साथ रेप और हत्या की गयी ,अयोध्या, वाराणसी, अगर सारी घटनाओं का विवरण लिखना शुरू करूं तो कलम से ही खून निकलने लगे। दर्द नही दर्द की इन्तहा है। हमारी पशुता की कहानी से देश की बेटियां लहूलूहान हो रही है।
अभी तक बंगाल के आरोपी कि सुनवाई और जांच की अन्य प्रकिया ही चल रही। यह सिर्फ हमारी कानून व्यवस्था की लचर प्रकिया का उदाहरण है।

ऐसा कदापि नहीं हुआ कि दिल्ली में निर्भया की घटना के बाद कोई घटना नहीं हुई। सर कटी लाश, और टुकडे -टुकडे में फ्रिज में लाश, अन्य कई घटनाएं देश को झकझोर दी।

हम किस तरफ बढ़ रहें हैं। देश के तमाम राजनीतिक दल जोड़-तोड़ की राजनीति एवं चुनाव में व्यस्त रहते हैं। लेकिन जैसे ही कोई बड़ी घटना होती है तब हम जागते हैं। आंदोलन ,कैंडल मार्च, कानून की मांग करने लगते है। हम उस समय अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं ।लेकिन फिर से सो जाते है।कोलकाता रेप मर्डर की घटना के बाद ममता बनर्जी ने सख्त से सख्त कानून बनाने की मांग की ।10 दिन मे अपराधी को फांसी देने का बिल भी पेश कर दिया। हालांकि केस अभी सीबीआई के हाथों में है।

महिलाओं के साथ सदियों से पुरूषों ने अत्याचार किया है । चाहे कोई भी काल रहा हो । परंतु आज समाज में बराबरी , महिलाओं को सम्मान, के साथ सुरक्षा की गारंटी भी देनी होगी ।यह गारंटी सिर्फ भाषणों या पेपर तक नही सीमित रहनी चाहिये । हमे हर महिला को समाज के अमूल्य अंग के तौर पर समझना होगा। साथ ही दूसरी तरफ हमें यह देखना होगा कि महिला के साथ कोई भी घटना हो तो , अपराधी व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत किया जाना चाहिये।कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिये। जिस दिन यह जागरूकता समाज में आयेगी समाज में बड़ा बदलाव होगा । हालांकि इसके साथ कई ऐसी घटनाएं होंगी जो सिर्फ बदले की भावना से होगी । परंतु हमें समाज कि इस निकृष्टता ताकतवर गंदगी को खत्म करने के लिये कुछ कठोर कदम उठाने ही पड़ेंगे। समाज से इस बर्बरता का अंत होना चाहिये।

देश में सदियों से समाज, पितृसत्तात्मक रहा है। जहां पुरूषों के हाथ में ज्यादा अधिकार दिये गये थे। तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को तमाम प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा गया था । महिला सुरक्षा कानून 2005 ने महिला सुरक्षा को लेकर काफी हद तक सहायक सिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त देश में कई अन्य कानून है जो लैंगिक विषमता असमानता को कम करने वाले है,और सहायक भी रहें हैं।

महिलाओ से संबधित कई प्रकार के ऐसे मामले आते हैं, जो अपने करीबी या रिश्तेदार या परिवार से संबधित होते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिये जरूरी है ,समाज में महिलाओ को जागरूक होना होगा। गुड टच बैड टच को भी समझना पड़ेगा, साथ ही यह भी ध्यान देना होगा की प्रत्येक रिश्ते की मर्यादा होनी चाहिये। हमारा देश फैशन के स्तर पर पश्चिमी देशों की बराबरी तो कर रहा है । लेकिन हम विचारों में अभी भी पूरी तरह भारतीय है। यह भी एक मूल कारण है देश में बढ़ती रेप हत्या जैसी बढ़ती घटनाओं के लिये।अब समय आ गया है नारी को नारायणी बनना ही होगा । अब किसी से भरोसे की उम्मीद के बजाय खुद तो सक्षम बनाना होगा । सुनो द्रौपदी अस्त्र उठाओ अब गोविंद न आयेंगे।