शब्द

प्रभुनाथ शुक्ल

शब्द बस ! शब्द हैं
कभी नि:शब्द कर जाते हैं
कभी निस्पंद कर जाते हैं
कभी दिल पर चोट कर जाते हैं
और कभी दिल जीत जाते हैं

शब्द बस ! शब्द हैं
कभी मधुवन से लगते हैं
कभी जेठ से तपते हैं
कभी माघ बन जाते हैं
और कभी सावन सा बरसते हैं

शब्द बस ! शब्द हैं
कभी गुदगुदाते हैं
कभी सहलाते हैं
कभी हँसाते हैं
और कभी रुला जाते हैं

शब्द बस ! शब्द हैं
कभी तनहाइयां बन जाते हैं
कभी रुसवाईयाँ बन जाते हैं
कभी जुदाईयां बन जाते हैं
और कभी परछाइयाँ बन जाते हैं

शब्द बस ! शब्द हैं
कभी दिल तोड़ जाते हैं
कभी दिल जोड़ जाते हैं
कभी यादों में बस जाते हैं
और कभी दिल में उतर जाते हैं