ओम प्रकाश उनियाल
प्रकृति का आनंद लेने की चाह हर किसी के मन में होती है। हो भी क्यों ना? प्राणी जगत का प्रकृति से गहरा नाता जो जुड़ा हुआ है। प्रकृति न होती तो इस धरा पर नीरसता होती। धरती पर ऐसे-ऐसे प्राकृतिक रमणीय स्थल हैं जो इंसान को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते रहते हैं। तथा आने का न्योता देते हैं। जिनको निहारने से ही मन को सुकून मिलता है। लेकिन, एक सवाल जो कि बार-बार उठता है कि प्रकृति से मनुष्य छेड़छाड़ क्यों कर रहा है। उसका वास्तविक स्वरूप क्यों बिगाड़ रहा है? आए दिन प्राणी जगत को उसका परिणाम भुगतना पड़ रहा है। यही नहीं धरती का पर्यावरण संतुलन डांवाडोल हो रहा है। ऋतुओं का क्रम असमय हो रहा है।
गर्मी के मौसम में अधिकांशत: मैदानी इलाके भयंकर गर्मी की चपेट में आ जाते हैं। तपिश से राहत पाने के लिए लोग पहाड़ों की तरफ रुख करते हैं। पहाड़ों में हरियाली मैदानी इलाकों की अपेक्षा काफी अधिक होती है। मगर वहां भी शरारती तत्व अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। हरियाली को वनों में आग लगाकर खत्म कर देते हैं। वनों के धधकने से पहाड़ तो तपते ही हैं कई वन्य प्राणी भी हताहत होते हैं तथा अपनी जान तक गंवा बैठते हैं। पिछले दिनों जिस तरह उत्तराखंड के वनों में वनाग्नि का प्रचंड रूप देखने को मिला। निश्चित ही यह चिंता का विषय है।
पहाड़ों की खूबसूरती हरियाली से ही है। हरियाली बुग्यालों व वनों से होती है। वनों का संरक्षण नितान्त आवश्यक है। वनों में विभिन्न प्रजातियों के छोटे-बड़े पेड़-पौधे, फूल-पत्ते, वनस्पतियां शोभा बढ़ाते हैं। उत्तराखंड में भी एक ऐसा भी मनमोहक स्थल है जहां एक बार जाने के बाद बार-बार आने का मन करेगा। शांत हिमालय के आंचल में चमोली जिले में है यह स्थल। जो कि फूलों की घाटी नाम से जाना जाता है।
विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी ट्रैक इस साल 1 जून 2024 से पर्यटकों के लिए खोल दी जाएगी। फूलों की घाटी दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियों से समृद्ध है और जैव विविधता का अनुपम खजाना है। यहां 500 से अधिक प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए फूलों की घाटी से टिपरा ग्लेशियर, रताबन चोटी, गौरी और नीलगिरी पर्वत के विहंगम नजारे भी देखने को मिलते हैं। उप वन संरक्षक बीबी मर्तोलिया ने बताया कि फूलों की घाटी 30 अक्टूबर तक पर्यटकों के लिए खुली रहेगी।
यदि आप भी प्रकृति व पर्यावरण प्रेमी हैं तो अवश्य ही फूलों की घाटी को निहारने का मन बना लें।