वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026-वैश्विक और भारतीय असमानता का कठोर आईना – असमानता की सदी में प्रवेश करती दुनियाँ ?

World Inequality Report 2026 – A stark reflection of global and Indian inequality – Is the world entering a century of inequality?

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तरपर 21वीं सदी को तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और आर्थिक विकास की सदी कहा जाता है, लेकिन इसके समानांतर यह सदी अभूतपूर्व आर्थिक असमानता की भी सदी बनती जा रही है। विकास के आंकड़े भले ही चमकदार हों, लेकिन उनके नीचे छिपी सच्चाई यह है कि आय, संपत्ति,अवसर और संसाधनों का बँटवारा लगातार कुछ गिने-चुने लोगों तक सीमित होता जा रहा है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 इसी सच्चाई को वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करती है और यह बताती है कि आर्थिक विकास अपने आप में समानता की गारंटी नहीं है।

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह स्पष्ट कर देती है कि आय और संपत्ति की बढ़ती खाई कोई आकस्मिक या प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं है,बल्कि यह नीतिगत चुनावों का प्रत्यक्ष परिणाम है। पिछले चार दशकों में दुनियाँ भर में अपनाई गई नवउदारवादी आर्थिक नीतियाँ, जैसे टैक्स में कटौती, सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन,श्रम बाज़ार का अनियंत्रण और पूंजी को प्राथमिकता ने असमानता को संरचनात्मक रूप से बढ़ाया है। भारत इसका एक सशक्त उदाहरण है,जहाँ तेज़ आर्थिक वृद्धि के बावजूद सामाजिक -आर्थिक न्याय लगातार कमजोर पड़ा है।वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 को वर्ल्ड इनेक्वालिटी लैब के तत्वावधान में तैयार किया गया है।यह लैब वैश्विक स्तरपर आय और संपत्ति की असमानता पर शोध करने वाला एक स्वतंत्र अकादमिक मंच है,जिसकी स्थापना पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने की है।इसका उद्देश्य नीति-निर्माताओं,सरकारों और आम जनता को यह समझाना है कि आर्थिक असमानता कैसे बढ़ रही है और इसके सामाजिक,राजनीतिक व पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं।

यह रिपोर्ट किसी सरकार या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था द्वारा नहीं,बल्कि स्वतंत्र शोधकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार की जाती है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और निष्पक्षता बनी रहती है।रिपोर्ट निर्माण की वैश्विक प्रक्रिया पारदर्शी होती हैवर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 को तैयार करने में 200 से अधिक शोधकर्ता, डेटा वैज्ञानिक,अर्थशास्त्री और सामाजिक विशेषज्ञ शामिल रहे। रिपोर्ट के प्रमुख संपादक हैं, ल्यूकस चांसल,रिकार्डो गोमेज़ कैररा,रोवाइदा मोशरिफ,थॉमस पिकेटी इन शोधकर्ताओं ने 180 से अधिक देशों से टैक्स डेटा, राष्ट्रीय खातों, घरेलू सर्वेक्षणों और ऐतिहासिक अभिलेखों को एकत्र कर विश्लेषण किया। यह रिपोर्ट केवल वर्तमान आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि 1980 से लेकर 2025 तक की दीर्घकालिक प्रवृत्तियों को भी दर्शाती है।

साथियों बात अगर हम इस रिपोर्ट में लिखी गई बातों को भारत के एंगल से समझने की करें तो (1) भारत में आय असमानता रिकॉर्ड स्तर पर है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के अनुसार,भारत में आय असमानता अब ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। रिपोर्ट बताती है कि (अ)भारत की नेशनल इनकम का 58 प्रतिशत हिस्सा केवल टॉप 10 प्रतिशत आबादी के पास जाता है (ब) जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी को केवल 15 प्रतिशत आय ही प्राप्त होती है,यह स्थिति 2021 की तुलना में और गंभीर हुई है, जब टॉप 10 प्रतिशत का इनकम शेयर 57 प्रतिशत था। यानी आर्थिक वृद्धि का लाभ नीचे तक पहुंचने के बजाय और अधिक ऊपर सिमटता जा रहा है। (2) प्रति व्यक्ति आय का भ्रम और वास्तविकता-रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय (पीपीपी आधार पर) लगभग 6.56 लाख रुपये है। लेकिन यह औसत आंकड़ा बेहद भ्रामक है, क्योंकि- (अ) टॉप 10 प्रतिशत को इसी कुल आय का 58 प्रतिशत हिस्सा मिलता है(ब)शेष 90 प्रतिशत आबादी को केवल 42 प्रतिशत में सटीक संतोष करना पड़ता है इससे स्पष्ट है किऔसत आय भारत की वास्तविक सामाजिक – आर्थिक स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करती

(3) संपत्ति असमानता:आय से भी अधिक गंभीर संकट अगर आय असमानता चिंताजनक है,तो संपत्ति असमानता उससे भी कहीं अधिक भयावह है।

रिपोर्ट के अनुसार-(अ)भारत की कुल संपत्ति का 65 प्रतिशत हिस्सा टॉप 10 प्रतिशत के पास है(ब)केवल टॉप 1 प्रतिशत के पास ही करीब 40 प्रतिशत संपत्ति सिमटी हुई है,संपत्ति असमानता इसलिए ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होती है और सामाजिक गतिशीलता को लगभग समाप्त कर देती है। (3)महिला श्रम भागीदारी: भारत की सबसे बड़ी विफलता,वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 भारत की फीमेल लेबर पार्टिसिपेशन रेट को भी रेखांकित करती है, जो मात्र 15.7 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि-(1)हर 100 पुरुषों के मुकाबले केवल 15.7 महिलाएं ही रोजगार में हैं। (2)पिछले एक दशक में यह स्थिति लगभगस्थिर बनी हुई है,वैश्विक स्तर पर महिलाएं कुल श्रम आय का केवल 25 प्रतिशत ही अर्जित कर पाती हैं, लेकिन भारत इस मामले में वैश्विक औसत से भी नीचे है।भारत का सामाजिक पतन: मिडिल क्लास से बॉटम 50 प्रतिशत तक,रिपोर्ट का एक बेहद चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि (1)1980 में भारत की बड़ी आबादी वैश्विक मिडिल 40 प्रतिशत में शामिल थी (2)लेकिन 2025 तक वह लगभग पूरी तरह बॉटम 50 प्रतिशत में खिसक चुकी है,इसके विपरीत, चीन ने इसी अवधि में बड़ी आबादी को ऊपर की ओर स्थानांतरित किया है।यह दर्शाता है कि भारत का विकास मॉडल समावेशी नहीं रहा।

साथियों बात अगर हम इस वैश्विक रिपोर्ट के आधार पर भारत में सुधारो की ओर कदम बढ़ाने की करें तो, वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह संदेश देती है कि असमानता को कम करना कोई आदर्शवादी सपना नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीतियों का परिणाम है। भारत यदि 21वीं सदी में एक स्थिर,न्यायपूर्ण और समृद्ध राष्ट्र बनना चाहता है,तो उसेनीतिगत सुधारों को टालने के बजाय साहसिक निर्णय लेने होंगे (1) प्रगतिशील कर प्रणाली की अनिवार्यता(2)संपत्ति पुनर्वितरण और सामाजिक निवेश (3)श्रम बाज़ार सुधार: पूंजी नहीं, श्रम-केंद्रित नीति (4) महिला श्रम भागीदारी बढ़ाने की नीति (5) शिक्षा नीति:अवसरों की समानता की कुंजी (6) स्वास्थ्य नीति: गरीबी का सबसे बड़ा ट्रिगर (7) क्षेत्रीय असमानता और संघीय वित्त सुधार (8) जलवायु नीति और कार्बन न्याय (9) लोकतंत्र, पारदर्शिता और नीति-निर्माण (10) भारत के लिए समग्र नीति दृष्टि।

साथियों बातें कर हम वैश्विक असमानता: पूरी दुनियाँ की तस्वीर को समझने की करें तो,पूरी दुनिया के संदर्भ में रिपोर्ट बताती है कि (अ)वैश्विक स्तर पर टॉप 10 प्रतिशत लोगों के पास 75 प्रतिशत संपत्ति है(ब)जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 2 प्रतिशत संपत्ति ही है,आय के मामले में भी(अ)टॉप 10 प्रतिशत 53 प्रतिशत वैश्विक आय ले जाते हैं(ब)बॉटम 50 प्रतिशत को मात्र 8 प्रतिशत ही मिलता है,यह दिखाता है कि असमानता केवल विकासशील देशों की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक संरचनात्मक संकट है।भारत की स्थिति: दक्षिण अफ्रीका के बाद सबसे ज्यादा असमान(1)रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे अधिक असमान देशों में से एक है- (2)केवल दक्षिण अफ्रीका भारत से आगे है, जहां (3) टॉप 10 प्रतिशत को 66 प्रतिशत इनकम (4)और 85 प्रतिशत संपत्ति प्राप्त होती हैलैटिन अमेरिका के देशों जैसे ब्राजील और मैक्सिको में भी टॉप 10 प्रतिशत लगभग 60 प्रतिशत आय नियंत्रित करते हैं।इसके विपरीत (1) यूरोप के देश जैसे स्वीडन और नॉर्वे में (2) बॉटम 50 प्रतिशत को 25 प्रतिशत तक आय मिलती है (3) यह दर्शाता है कि नीति-निर्माण से असमानता को नियंत्रित किया जा सकता है।
साथियों बात अगर हम क्षेत्रीय असमानता:नॉर्थ बनाम साउथ को समझने की करें तो,रिपोर्ट बताती है कि (1) नॉर्थ अमेरिका और ओशिनिया में औसत वैश्विक संपत्ति से 338 प्रतिशत अधिक वेल्थ है(2)जबकि साउथ एशिया (भारत सहित) वैश्विक औसत से काफी नीचे है (3)यह असमानता केवल देशों के भीतर नहीं, बल्कि देशों के बीच भी लगातार बढ़ रही है।(4)कार्बन उत्सर्जन और असमानता का रिश्ता(5)वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 पहली बार आर्थिक असमानता और कार्बन उत्सर्जन के संबंध को स्पष्ट रूप से सामने लाती है,टॉप 10 प्रतिशत लोग कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 77 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि बॉटम 50 प्रतिशत केवल 3 प्रतिशत उत्सर्जन करता है, इसके बावजूद,जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा बोझ गरीब और कमजोर वर्गों पर पड़ता है।
साथियों बातें कर हम इस रिपोर्ट से नीतिगत संकेत और वैश्विक सबक,लेने की करें तो,रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि असमानता कोई प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि नीतिगत विकल्पों का परिणाम है। प्रगतिशील कर प्रणाली,सामाजिक सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य-शिक्षा में निवेश और महिला रोजगार को बढ़ावा देकर असमानता को कम किया जा सकता है।यूरोपीय देशों के उदाहरण बताते हैं कि मजबूत वेलफेयर स्टेट और न्यायपूर्ण टैक्स सिस्टम असमानता को नियंत्रित कर सकते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि विकास बनाम न्याय की निर्णायक लड़ाई, वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह साफ संदेश देती है कि यदि भारत और दुनिया ने अपनी आर्थिक नीतियों को नहीं बदला, तो विकास सामाजिक स्थिरता और लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगा। असमानता केवल आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट है।भारत के लिए यह रिपोर्ट एक चेतावनी है कि यदि विकास का लाभ व्यापक आबादी तक नहीं पहुंचा, तो आर्थिक वृद्धि के आंकड़े अर्थहीन हो जाएंगे।

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026-वैश्विक और भारतीय असमानता का कठोर आईना – असमानता की सदी में प्रवेश करती दुनियाँ ?-एक समग्र विश्लेषण

असमानता को कम करना कोई आदर्शवादी सपना नहीं,बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीतियों का परिणाम है

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के संदर्भ में नीतिगत सुधार- भारत और विश्व के लिए न्यायपूर्ण विकास का रोडमैप ज़रूरी-असमानता अब नीति- विफलता का नाम है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तरपर 21वीं सदी को तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और आर्थिक विकास की सदी कहा जाता है, लेकिन इसके समानांतर यह सदी अभूतपूर्व आर्थिक असमानता की भी सदी बनती जा रही है। विकास के आंकड़े भले ही चमकदार हों, लेकिन उनके नीचे छिपी सच्चाई यह है कि आय, संपत्ति,अवसर और संसाधनों का बँटवारा लगातार कुछ गिने-चुने लोगों तक सीमित होता जा रहा है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 इसी सच्चाई को वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करती है और यह बताती है कि आर्थिक विकास अपने आप में समानता की गारंटी नहीं है।
वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह स्पष्ट कर देती है कि आय और संपत्ति की बढ़ती खाई कोई आकस्मिक या प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं है,बल्कि यह नीतिगत चुनावों का प्रत्यक्ष परिणाम है। पिछले चार दशकों में दुनियाँ भर में अपनाई गई नवउदारवादी आर्थिक नीतियाँ, जैसे टैक्स में कटौती, सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन,श्रम बाज़ार का अनियंत्रण और पूंजी को प्राथमिकता ने असमानता को संरचनात्मक रूप से बढ़ाया है। भारत इसका एक सशक्त उदाहरण है,जहाँ तेज़ आर्थिक वृद्धि के बावजूद सामाजिक -आर्थिक न्याय लगातार कमजोर पड़ा है।वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 को वर्ल्ड इनेक्वालिटी लैब के तत्वावधान में तैयार किया गया है।यह लैब वैश्विक स्तरपर आय और संपत्ति की असमानता पर शोध करने वाला एक स्वतंत्र अकादमिक मंच है,जिसकी स्थापना पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने की है।इसका उद्देश्य नीति-निर्माताओं,सरकारों और आम जनता को यह समझाना है कि आर्थिक असमानता कैसे बढ़ रही है और इसके सामाजिक,राजनीतिक व पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं।यह रिपोर्ट किसी सरकार या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था द्वारा नहीं,बल्कि स्वतंत्र शोधकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार की जाती है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और निष्पक्षता बनी रहती है।रिपोर्ट निर्माण की वैश्विक प्रक्रिया पारदर्शी होती हैवर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 को तैयार करने में 200 से अधिक शोधकर्ता, डेटा वैज्ञानिक,अर्थशास्त्री और सामाजिक विशेषज्ञ शामिल रहे। रिपोर्ट के प्रमुख संपादक हैं, ल्यूकस चांसल,रिकार्डो गोमेज़ कैररा,रोवाइदा मोशरिफ,थॉमस पिकेटी इन शोधकर्ताओं ने 180 से अधिक देशों से टैक्स डेटा, राष्ट्रीय खातों, घरेलू सर्वेक्षणों और ऐतिहासिक अभिलेखों को एकत्र कर विश्लेषण किया। यह रिपोर्ट केवल वर्तमान आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि 1980 से लेकर 2025 तक की दीर्घकालिक प्रवृत्तियों को भी दर्शाती है।

साथियों बात अगर हम इस रिपोर्ट में लिखी गई बातों को भारत के एंगल से समझने की करें तो (1) भारत में आय असमानता रिकॉर्ड स्तर पर है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के अनुसार,भारत में आय असमानता अब ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। रिपोर्ट बताती है कि (अ)भारत की नेशनल इनकम का 58 प्रतिशत हिस्सा केवल टॉप 10 प्रतिशत आबादी के पास जाता है (ब) जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी को केवल 15 प्रतिशत आय ही प्राप्त होती है,यह स्थिति 2021 की तुलना में और गंभीर हुई है, जब टॉप 10 प्रतिशत का इनकम शेयर 57 प्रतिशत था। यानी आर्थिक वृद्धि का लाभ नीचे तक पहुंचने के बजाय और अधिक ऊपर सिमटता जा रहा है। (2) प्रति व्यक्ति आय का भ्रम और वास्तविकता-रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय (पीपीपी आधार पर) लगभग 6.56 लाख रुपये है। लेकिन यह औसत आंकड़ा बेहद भ्रामक है, क्योंकि- (अ) टॉप 10 प्रतिशत को इसी कुल आय का 58 प्रतिशत हिस्सा मिलता है(ब)शेष 90 प्रतिशत आबादी को केवल 42 प्रतिशत में सटीक संतोष करना पड़ता है इससे स्पष्ट है किऔसत आय भारत की वास्तविक सामाजिक – आर्थिक स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करती (3) संपत्ति असमानता:आय से भी अधिक गंभीर संकट अगर आय असमानता चिंताजनक है,तो संपत्ति असमानता उससे भी कहीं अधिक भयावह है। रिपोर्ट के अनुसार-(अ)भारत की कुल संपत्ति का 65 प्रतिशत हिस्सा टॉप 10 प्रतिशत के पास है(ब)केवल टॉप 1 प्रतिशत के पास ही करीब 40 प्रतिशत संपत्ति सिमटी हुई है,संपत्ति असमानता इसलिए ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होती है और सामाजिक गतिशीलता को लगभग समाप्त कर देती है।

(3)महिला श्रम भागीदारी: भारत की सबसे बड़ी विफलता,वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 भारत की फीमेल लेबर पार्टिसिपेशन रेट को भी रेखांकित करती है, जो मात्र 15.7 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह है कि-(1)हर 100 पुरुषों के मुकाबले केवल 15.7 महिलाएं ही रोजगार में हैं। (2)पिछले एक दशक में यह स्थिति लगभगस्थिर बनी हुई है,वैश्विक स्तर पर महिलाएं कुल श्रम आय का केवल 25 प्रतिशत ही अर्जित कर पाती हैं, लेकिन भारत इस मामले में वैश्विक औसत से भी नीचे है।भारत का सामाजिक पतन: मिडिल क्लास से बॉटम 50 प्रतिशत तक,रिपोर्ट का एक बेहद चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि (1)1980 में भारत की बड़ी आबादी वैश्विक मिडिल 40 प्रतिशत में शामिल थी (2)लेकिन 2025 तक वह लगभग पूरी तरह बॉटम 50 प्रतिशत में खिसक चुकी है,इसके विपरीत, चीन ने इसी अवधि में बड़ी आबादी को ऊपर की ओर स्थानांतरित किया है।यह दर्शाता है कि भारत का विकास मॉडल समावेशी नहीं रहा।

साथियों बात अगर हम इस वैश्विक रिपोर्ट के आधार पर भारत में सुधारो की ओर कदम बढ़ाने की करें तो, वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह संदेश देती है कि असमानता को कम करना कोई आदर्शवादी सपना नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीतियों का परिणाम है। भारत यदि 21वीं सदी में एक स्थिर,न्यायपूर्ण और समृद्ध राष्ट्र बनना चाहता है,तो उसेनीतिगत सुधारों को टालने के बजाय साहसिक निर्णय लेने होंगे (1) प्रगतिशील कर प्रणाली की अनिवार्यता(2)संपत्ति पुनर्वितरण और सामाजिक निवेश (3)श्रम बाज़ार सुधार: पूंजी नहीं, श्रम-केंद्रित नीति (4) महिला श्रम भागीदारी बढ़ाने की नीति (5) शिक्षा नीति:अवसरों की समानता की कुंजी (6) स्वास्थ्य नीति: गरीबी का सबसे बड़ा ट्रिगर (7) क्षेत्रीय असमानता और संघीय वित्त सुधार (8) जलवायु नीति और कार्बन न्याय (9) लोकतंत्र, पारदर्शिता और नीति-निर्माण (10) भारत के लिए समग्र नीति दृष्टि।

साथियों बातें कर हम वैश्विक असमानता: पूरी दुनियाँ की तस्वीर को समझने की करें तो,पूरी दुनिया के संदर्भ में रिपोर्ट बताती है कि (अ)वैश्विक स्तर पर टॉप 10 प्रतिशत लोगों के पास 75 प्रतिशत संपत्ति है(ब)जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 2 प्रतिशत संपत्ति ही है,आय के मामले में भी(अ)टॉप 10 प्रतिशत 53 प्रतिशत वैश्विक आय ले जाते हैं(ब)बॉटम 50 प्रतिशत को मात्र 8 प्रतिशत ही मिलता है,यह दिखाता है कि असमानता केवल विकासशील देशों की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक संरचनात्मक संकट है।भारत की स्थिति: दक्षिण अफ्रीका के बाद सबसे ज्यादा असमान(1)रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे अधिक असमान देशों में से एक है- (2)केवल दक्षिण अफ्रीका भारत से आगे है, जहां (3) टॉप 10 प्रतिशत को 66 प्रतिशत इनकम (4)और 85 प्रतिशत संपत्ति प्राप्त होती हैलैटिन अमेरिका के देशों जैसे ब्राजील और मैक्सिको में भी टॉप 10 प्रतिशत लगभग 60 प्रतिशत आय नियंत्रित करते हैं।इसके विपरीत (1) यूरोप के देश जैसे स्वीडन और नॉर्वे में (2) बॉटम 50 प्रतिशत को 25 प्रतिशत तक आय मिलती है (3) यह दर्शाता है कि नीति-निर्माण से असमानता को नियंत्रित किया जा सकता है।

साथियों बात अगर हम क्षेत्रीय असमानता:नॉर्थ बनाम साउथ को समझने की करें तो,रिपोर्ट बताती है कि (1) नॉर्थ अमेरिका और ओशिनिया में औसत वैश्विक संपत्ति से 338 प्रतिशत अधिक वेल्थ है(2)जबकि साउथ एशिया (भारत सहित) वैश्विक औसत से काफी नीचे है (3)यह असमानता केवल देशों के भीतर नहीं, बल्कि देशों के बीच भी लगातार बढ़ रही है।(4)कार्बन उत्सर्जन और असमानता का रिश्ता(5)वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 पहली बार आर्थिक असमानता और कार्बन उत्सर्जन के संबंध को स्पष्ट रूप से सामने लाती है,टॉप 10 प्रतिशत लोग कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 77 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि बॉटम 50 प्रतिशत केवल 3 प्रतिशत उत्सर्जन करता है, इसके बावजूद,जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा बोझ गरीब और कमजोर वर्गों पर पड़ता है।

साथियों बातें कर हम इस रिपोर्ट से नीतिगत संकेत और वैश्विक सबक,लेने की करें तो,रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि असमानता कोई प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि नीतिगत विकल्पों का परिणाम है। प्रगतिशील कर प्रणाली,सामाजिक सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य-शिक्षा में निवेश और महिला रोजगार को बढ़ावा देकर असमानता को कम किया जा सकता है।यूरोपीय देशों के उदाहरण बताते हैं कि मजबूत वेलफेयर स्टेट और न्यायपूर्ण टैक्स सिस्टम असमानता को नियंत्रित कर सकते हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि विकास बनाम न्याय की निर्णायक लड़ाई, वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह साफ संदेश देती है कि यदि भारत और दुनिया ने अपनी आर्थिक नीतियों को नहीं बदला, तो विकास सामाजिक स्थिरता और लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाएगा। असमानता केवल आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट है।भारत के लिए यह रिपोर्ट एक चेतावनी है कि यदि विकास का लाभ व्यापक आबादी तक नहीं पहुंचा, तो आर्थिक वृद्धि के आंकड़े अर्थहीन हो जाएंगे।