
निर्मल रानी
विजय दशमी के दिन पूरे देश में विशेषकर उत्तर भारत में दशहरे के अवसर पर रावण,कुम्भकरण व मेघनाथ के पुतलों को फूँक कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर देश भर में रावण के तरह तरह के पुतले व पुतला निर्माण क्षेत्र में प्रशिक्षित कारीगरों द्वारा निर्मित किये जाते हैं। देश भर में रावण के इन पुतलों की ऊंचाई प्रायः 40 -50 व 60 फ़िट से लेकर अधिकतम 70 व 80 फ़ुट तक ही होती है। ऐसा ही एक पुतला 1987 में हरियाणा के बराड़ा क़स्बे में 1987 में बनना शुरू हुआ था जिसकी ऊंचाई थी मात्र 20 फ़ुट। इसी रावण पुतले के साथ ही श्री राम लीला क्लब बराड़ा के नाम से एक समाजसेवी संस्था भी गठित की गयी। इन सब के सूत्रधार व संस्थापक हैं राणा तेजिंदर सिंह चौहान।
1987 में रावण का पहला पुतला बनाने की शुरुआत करने के साथ ही तेजिंदर चौहान ने यह भी महसूस किया कि चूँकि समाज में बुराई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है इसलिये क्यों न बुराई के प्रतीक इस रावण के पुतले की ऊंचाई भी प्रत्येक वर्ष बढ़ा दी जाया करे ? इन्हीं विचारों के साथ सन 2000 आते आते रावण के इस पुतले ने 100 फ़ुट की ऊंचाई धारण कर ली और ‘बराड़ा का रावण ‘ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। साथ ही यह पुतला लाखों की संख्या में दर्शक व राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान भी आकर्षित करने लगा। रावण के इस विशाल पुतले व इसकी आकर्षक कलाकृति को जनता से मिलने वाले भरपूर प्यार व समर्थन ने क्लब संस्थापक व पुतला निर्माता तेजिंदर चौहान की और अधिक हौसला अफ़ज़ाई की। और फिर रावण के पुतले की ऊंचाई 100 फ़ुट से भी आगे बढ़ने लगी। रावण की ऊंचाई बढ़ने के साथ ही इसमें लगने वाली सामग्री भी पुतले के अनुसार इस्तेमाल की जाने लगी। उदाहरण के तौर पर रावण के जो छोटे पुतले केवल बांस को आधार बनाकर बन जाते थे परन्तु लंबाई बढ़ते ही उसमें लोहे व स्टील का आधार बनना उसकी ज़रुरत बन गयी। रावण का चेहरा बांस व काग़ज़ के बजाये फ़ाइबर का बनने लगा। रावण के पुतले की ऊंचाई उसका आकर्षण देख उसकी पोशाक भी क़ीमती से क़ीमती होने लगी।
उसकी सुंदरता को रात के समय निखारने के लिये उसमें चेहरे,मुकुट ध्वज आदि में जगह जगह एल ई डी का प्रयोग किया जाने लगा। तलवार,ढाल जूता,मुकुट आदि सभी पुतले के अंग लोहे की छड़ों व एंगिल पर ही आधारित होने लगे। और 2012 आते आते जब रावण निर्माण व श्री राम लीला क्लब बराड़ा की स्थापना के 25 वर्ष पूरे हो गये तो इसी अवसर पर जनता की मांग पर 5 दिन तक रावण का पुतला खड़ा रखने के मक़सद से ‘बराड़ा महोत्सव ‘ का आयोजन किया जाने लगा। भारत वर्ष में अपने आप में यह इकलौता व बेहद अनूठा आयोजन था जिसमें 5 दिनों तक विश्व के सबसे ऊँचे रावण के पुतले के सामने दिन भर मेला लगा करता था और शाम के समय हास्य कवि सम्मेलन, गीत संगीत,क़व्वाली व पूर्वोत्तर क्षेत्र कला संस्कृति के अनेक आयोजन हुआ करते थे। 2012 में ही 75 फ़ुट के इस रावण के पुतले को पहली बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड में विश्व के सबसे ऊँचे रावण के पुतले होने का प्रमाण पत्र हासिल हुआ।
परन्तु तेजिंदर चौहान का जूनून यहाँ भी ख़त्म नहीं हुआ। वे अभी भी पुतले की ऊंचाई में प्रत्येक वर्ष इज़ाफ़ा करते रहे और धीरे धीरे उन्होंने बराड़ा में ही इस की ऊंचाई 225 फ़ुट तक पहुंचा दी। अब वे हर साल अपने ही पिछले रिकार्ड को तोड़ते रहे। नतीजतन लिम्का बुक ने ही तेजिंदर चौहान को पांच बार लिम्का रिकार्ड से नवाज़ा। हाँ इतना ज़रूर है कि तेजिंदर चौहान के इस जूनून व लग्न के चलते उन्हें भारी आर्थिक नुक़्सान उठाना पड़ा। उन्हें अपनी ज़मीन भी बेचनी पड़ी। इसकी मुख्य वजह यह थी कि मंहगाई के दौर में बनने वाले इस विशाल पुतले के निर्माण पर होने वाला लाखों का ख़र्च तथा बराड़ा महोत्सव पर होने वाले पूरे ख़र्च जनता के सहयोग के बावजूद पूरे नहीं हो पाते थे लिहाज़ा हर नुक़्सान की आर्थिक भरपाई चौहान को ही करनी पड़ती।
रहा सवाल सरकार का तो इसके केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री,राजयपाल मुख्यमंत्री विधायक गण तो प्रायः जनता के सामने अपना चेहरा चमकाने भर की तो दिलचस्पी ज़रूर रखते थे परन्तु आज तक हरियाणा सरकार ने इस अद्भुत कलाकृति को कोई आर्थिक सहयोग व संरक्षण नहीं दिया। हद तो यह है कि कई बार दर्शकों की बढ़ती भीड़ के मद्देनज़र सरकार से दशहरा ग्राउंड हेतु बराड़ा में उपयुक्त मैदान भी माँगा गया। परन्तु सरकार ने कभी न सुनी। आख़िरकार कोरोना काल आगया। साथ ही बराड़ा के उस निजी मैदान में कॉलोनी बन गयी जिसमें बराड़ा महोत्सव मनाया जाता था। परन्तु तब तक तेजिंदर चौहान की शोहरत मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से देश और दुनिया भर में हो चुकी थी। उसी के बाद बराड़ा का रावण चलायमान हो गया।
सर्वप्रथम बराड़ा के बाहर 200 फ़ुट का यह पुतला पंचकूला में दो वर्षों तक स्थापित किया गया। उसके बाद चंडीगढ़ के धनास मैदान में 215 फ़ुट का पुतला बनाया गया। इसके बाद देहरादून में 210 फ़ुट का पुतला बना। हर जगह मुख्यमंत्री या राज्यपाल इन पुतलों का रिमोट से दहन करते। गत वर्ष यह पुतला दिल्ली के द्वारका में अपनी छाप छोड़ कर आया। यहाँ पूर्व राष्ट्रपति श्री राम कोविंद ने इसे अग्नि की भेंट किया। और इस बार यह रावण का पुतला राजस्थान के कोटा में अपनी धूम मचा रहा है। कोटा के लोग इस रावण के पुतले व इसे बनाने वाले तेजिंदर चौहान व उनके सभी सहयोगियों को भरपूर इज़्ज़त व स्नेह प्रदान कर रहे हैं। ख़बरों के अनुसार कोटा में बने 215 फीट ऊँचे रावण के इस पुतले का दहन भी रिमोट कंट्रोल से किया जायेगा। रिमोट में 20 धमाके वाले प्वाइंट निर्धारित किये गए हैं। लगभग 1000 फ़ीट लंबी एलईडी लाइट से सुसज्जित मुकुट व छत्र वाले इस पुतले की पोषक में 4 हज़ार मीटर वेलवेट का कपड़ा लगाया गया है। इसका फ़ाइबर से निर्मित चेहरा 25 फ़ीट का है। इनमें क़रीब 10 टन स्टील का उपयोग किया गया है। 24 फुट के 1500 बांस इस्तेमाल हुये इस विशाल पुतले में क़रीब 2 क्विंटल रस्सी का भी उपयोग हुआ है।
राजस्थान के कोटा में दशहरे पर दहन होने वाले इस रावण के पुतले की मेज़बानी के लिये जहाँ रावण के निर्माण से जुड़ा कोटा का प्रशासन बधाई के पात्र है वहीँ हरियाणा सरकार भी इस आरोप से कभी भी मुक्त नहीं हो सकती कि वह अपने प्रदेश में निर्मित होने वाली इस विशाल कलाकृति को न तो ज़मीन उपलब्ध कराकर इस अद्भुत कलाकृति व बराड़ा महोत्सव जैसे महत्वपूर्ण आयोजन को बराड़ा अथवा हरियाणा में रोक सकी न ही किसी तरह का आर्थिक सहयोग देकर राज्य में ही अन्यत्र इसका निर्माण करा सकी। यही वजह है कि विश्व का सबसे ऊँचा रावण का यह अद्भुत विशाल व आकर्षक पुतला चलायमान होकर राजस्थान के कोटा पहुँच गया। वहाँ भी यह पुतला यही सन्देश देगा कि बुराई चाहे जितनी बड़ी,ऊँची व सुन्दर क्यों न हो जाये परन्तु अन्तोगत्वा उसका हश्र वही होगा जो रावण के इस विशाल पुतले का हुआ है।