क्या शिक्षा विभाग का अंत अमेरिका की प्रगति रोक देगा?

Would the end of the Department of Education halt America's progress?

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

शिक्षा किसी भी राष्ट्र की प्रगति की आधारशिला होती है। यह न केवल समाज के बौद्धिक और नैतिक विकास को दिशा देती है, बल्कि सामाजिक समरसता और आर्थिक समृद्धि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में यदि किसी देश की सरकार शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने या उसे समाप्त करने की दिशा में कदम उठाती है, तो यह न केवल उस देश की वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी अत्यंत घातक साबित हो सकता है। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शिक्षा विभाग को समाप्त करने की घोषणा इसी संदर्भ में एक चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय के रूप में सामने आई है। यह निर्णय शिक्षा के मूलभूत उद्देश्यों, सामाजिक न्याय और राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास के खिलाफ एक बड़ा आघात साबित हो सकता है।

शिक्षा विभाग की भूमिका और उसका महत्व

अमेरिका में शिक्षा का संचालन मुख्य रूप से राज्य सरकारों के अधीन होता है, लेकिन संघीय सरकार के शिक्षा विभाग की भूमिका नीति निर्माण, वित्तीय सहायता और शैक्षणिक मानकों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होती है। 1979 में स्थापित यह विभाग उच्च शिक्षा, शोध, छात्रवृत्ति और विशेषकर वंचित वर्गों के छात्रों को सहायता प्रदान करने का कार्य करता है। शिक्षा विभाग के माध्यम से अमेरिका के विश्वविद्यालयों और स्कूलों को प्रतिवर्ष अरबों डॉलर की सहायता प्रदान की जाती है, जिससे निम्न आय वर्ग के छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें। इस विभाग का उद्देश्य न केवल शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि शिक्षा प्रणाली सामाजिक भेदभाव से मुक्त हो और सभी को समान अवसर प्राप्त हों। ट्रंप प्रशासन का यह दावा कि शिक्षा विभाग दशकों से छात्रों के परिणामों में सुधार नहीं कर पाया है, इस निर्णय को सही ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। यदि किसी व्यवस्था में खामियां हैं, तो उसे सुधारने की जरूरत होती है, न कि उसे समाप्त करने की।

शिक्षा विभाग को खत्म करने के तर्क और उनकी वास्तविकता:

ट्रंप प्रशासन और उनके समर्थकों का तर्क है कि शिक्षा विभाग पर अरबों डॉलर खर्च किए जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका के छात्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं। उनके अनुसार, शिक्षा पर किए जाने वाले सरकारी खर्च का कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल रहा है और शिक्षा प्रणाली को राज्य सरकारों के हवाले कर देना ही उचित होगा। हालांकि, यह तर्क आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित है। यह सच है कि अमेरिकी शिक्षा प्रणाली में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि संघीय सरकार की भूमिका समाप्त कर दी जाए। अमेरिका में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को पहले ही निजीकरण के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। यदि शिक्षा विभाग को समाप्त कर दिया जाता है, तो निजी संस्थानों और चार्टर स्कूलों का वर्चस्व बढ़ जाएगा, जिससे शिक्षा एक विशेषाधिकार बन जाएगी और निम्न आय वर्ग के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा तक पहुंच और कठिन हो जाएगी।

इसके अलावा, ट्रंप के इस निर्णय के पीछे राजनीतिक उद्देश्य भी स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। अमेरिकी कंज़र्वेटिव राजनीति लंबे समय से छोटे सरकार की अवधारणा का समर्थन करती रही है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं पर सरकारी नियंत्रण कम करने पर जोर दिया जाता है। ट्रंप का यह कदम इसी विचारधारा का हिस्सा है, जो पूंजीवादी हितों को बढ़ावा देने की दिशा में उठाया गया है।

सामाजिक असमानता और शैक्षणिक असंतुलन :

शिक्षा विभाग को समाप्त करने से सबसे अधिक नुकसान समाज के कमजोर वर्गों को होगा। वर्तमान में, यह विभाग निम्न आय वर्ग, अल्पसंख्यकों, विकलांग छात्रों और अन्य वंचित समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। यदि यह सहायता समाप्त हो जाती है, तो अमेरिका में सामाजिक असमानता और अधिक बढ़ सकती है। इसके अतिरिक्त, शिक्षा विभाग के अंतर्गत आने वाली छात्रवृत्ति योजनाओं और ऋण कार्यक्रमों का संचालन भी प्रभावित होगा। अमेरिका में उच्च शिक्षा अत्यंत महंगी है और लाखों छात्र संघीय ऋण योजनाओं के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं। यदि शिक्षा विभाग को समाप्त कर दिया जाता है, तो ये छात्र वित्तीय संकट में आ सकते हैं, जिससे उच्च शिक्षा केवल संपन्न वर्ग के लिए सुलभ रह जाएगी।

क्या शिक्षा में सुधार संभव नहीं?

यदि ट्रंप प्रशासन को शिक्षा प्रणाली से वास्तविक चिंता होती, तो वे इसे सुधारने के लिए वैकल्पिक नीतियाँ प्रस्तुत करते। शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षकों के वेतन में वृद्धि, पाठ्यक्रम के आधुनिकीकरण, शोध सुविधाओं के विस्तार और डिजिटल शिक्षा के प्रसार जैसे उपाय किए जा सकते थे। इसके विपरीत, शिक्षा विभाग को समाप्त करना समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि यह समस्या को और गहरा कर देगा। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन का यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। शिक्षा वह क्षेत्र है, जो किसी भी देश की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि संघीय स्तर पर शिक्षा के प्रति सरकार की उदासीनता बढ़ती है, तो इसका सीधा असर अमेरिका की आर्थिक और तकनीकी प्रगति पर पड़ेगा।

न्यायिक प्रक्रिया और संभावित कानूनी लड़ाई:

यह भी ध्यान देने योग्य है कि शिक्षा विभाग को समाप्त करने का निर्णय केवल राष्ट्रपति के एक कार्यकारी आदेश से पूरी तरह लागू नहीं किया जा सकता। इसके लिए कांग्रेस की मंजूरी आवश्यक होगी, जो फिलहाल निश्चित नहीं है। इसके अलावा, इस निर्णय के खिलाफ पहले ही कई न्यायिक याचिकाएँ दाखिल की जा चुकी हैं, जिसमें तर्क दिया गया है कि यह आदेश संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है। संभावना है कि इस मुद्दे पर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी और यदि इस आदेश को पूरी तरह लागू करने का प्रयास किया जाता है, तो यह अमेरिका के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा विवाद खड़ा कर सकता है।

शिक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता:

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शिक्षा विभाग को समाप्त करने का निर्णय एक अल्पदृष्टि वाला और जनविरोधी कदम है। यह न केवल अमेरिका की शिक्षा प्रणाली को कमजोर करेगा, बल्कि समाज में असमानता को भी बढ़ावा देगा। शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की रीढ़ होती है और इसे नष्ट करने की जगह इसे मजबूत करने की दिशा में प्रयास करने चाहिए।

यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के अवसरों को छीनने की दिशा में एक कदम है। शिक्षा पर किया गया निवेश किसी भी देश का सबसे महत्वपूर्ण निवेश होता है, क्योंकि यह न केवल मानव संसाधन को विकसित करता है, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करता है। इसलिए, अमेरिका के नागरिकों, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं को इस निर्णय के खिलाफ आवाज उठानी होगी, ताकि शिक्षा का यह जीवनरेखा बनी रहे और समाज का हर वर्ग ज्ञान के उजाले से वंचित न हो।