3 से 5 नवम्बर 2025 को थानो (देहरादून) में होगा “स्पर्श हिमालय महोत्सव” — जहाँ साहित्य, संस्कृति और प्रकृति का संगम रचेगा नई सृजनगाथा
डॉ. सत्यवान सौरभ
उत्तराखंड की वादियों में बसा थानो गाँव आज साहित्य और संस्कृति की नई पहचान बन चुका है। यह वही भूमि है जहाँ शब्दों की साधना और सृजन की ऊर्जा एक साथ प्रवाहित हो रही है। यहाँ स्थापित देश का पहला ‘लेखक गाँव’ अब केवल एक परियोजना नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुका है — वह आंदोलन जो लेखकों, कवियों, विचारकों और कलाकारों को उनके सृजन के मूल स्रोत, अर्थात् प्रकृति और आत्मा से जोड़ता है।
शब्दों के मठ की परिकल्पना
लेखक गाँव का विचार जितना अनोखा है, उतना ही प्रेरणादायक भी। इस अवधारणा के प्रणेता हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, शिक्षाविद् और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, जिन्होंने अपने जीवन में साहित्य और समाज दोनों को समान रूप से साधा है। उन्होंने यह अनुभव किया कि आज के लेखक, कवि और विचारक भागदौड़ और शोरगुल भरी दुनिया में वह सृजनात्मक एकांत नहीं पा पाते जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है।
इसी विचार से जन्म हुआ “लेखक गाँव” का — एक ऐसी जगह जहाँ शब्दों को सांस लेने की जगह मिले, विचारों को उड़ान मिले और रचनाकारों को आत्म-साक्षात्कार का अवसर।
देहरादून के समीप थानो गाँव को इस अनूठे प्रकल्प के लिए चुना गया। यह स्थान हिमालय की गोद में बसा है, जहाँ हरियाली, नदी, पर्वत और शांति की छाया है। यहाँ की प्राकृतिक सौंदर्यता लेखकों के भीतर सोई संवेदनाओं को जगाने का सामर्थ्य रखती है।
एक अद्भुत आयोजन : “स्पर्श हिमालय महोत्सव-2024”
अक्टूबर 2024 में जब स्पर्श हिमालय फाउंडेशन द्वारा “स्पर्श हिमालय महोत्सव” का आयोजन हुआ, तब थानो ने भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह केवल एक महोत्सव नहीं, बल्कि साहित्य, कला और संस्कृति का विराट संगम था।
इस पाँच दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयोजन में 65 से अधिक देशों के लेखक, कवि, कलाकार और विचारक शामिल हुए। उन्होंने न केवल अपनी रचनाएँ और कलाकृतियाँ साझा कीं, बल्कि हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी भावनाएँ भी प्रकट कीं।
यह आयोजन इस बात का प्रमाण था कि हिंदी और भारतीय संस्कृति आज भी वैश्विक स्तर पर आकर्षण का केंद्र हैं। इस महोत्सव ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पुनः प्रतिष्ठित किया। साथ ही, यह तय किया कि हर वर्ष इसी स्थान पर साहित्यिक मंथन और सांस्कृतिक संवाद का यह महोत्सव आयोजित किया जाएगा।
3 से 5 नवम्बर 2025 : नए अध्याय की तैयारी
अब एक बार फिर साहित्य प्रेमी और रचनाकार उत्सुक हैं, क्योंकि 3 से 5 नवम्बर 2025 को लेखक गाँव, थानो में “स्पर्श हिमालय महोत्सव-2025” आयोजित होने जा रहा है।
इस बार महोत्सव का दायरा और भी व्यापक होगा — देश-विदेश से और अधिक लेखकों, कवियों, अनुवादकों, चित्रकारों, फिल्मकारों और संगीतकारों की भागीदारी होगी।
थीम तय की गई है – “शब्द से विश्व तक : संस्कृति का संवाद”। यह विषय अपने आप में साहित्य की वैश्विक भूमिका को रेखांकित करता है।
इस आयोजन में हिंदी भाषा और भारतीय साहित्य के अंतरराष्ट्रीय प्रसार पर विशेष सत्र होंगे। साथ ही युवा लेखकों और डिजिटल युग की रचनात्मकता पर भी विमर्श किया जाएगा। यह आयोजन न केवल अनुभवी लेखकों को बल्कि नई पीढ़ी के रचनाकारों को भी एक साझा मंच प्रदान करेगा।
रचनाकारों के लिए स्वर्ग समान वातावरण
लेखक गाँव की संरचना पूरी तरह साहित्यिक और सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर की गई है। यहाँ स्थित “लेखक कुटीर” उन रचनाकारों के निवास हेतु बनाए गए हैं जो कुछ समय के लिए प्रकृति की गोद में रहकर अपने लेखन पर केंद्रित होना चाहते हैं।
हर कुटीर में आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ सादगी और पहाड़ी परंपरा की झलक मिलती है। इन कुटीरों के नाम प्रसिद्ध लेखकों और कवियों के नाम पर रखे जाने का प्रस्ताव है — ताकि आने वाले लेखक उनसे प्रेरणा ले सकें।
यहाँ निर्मित “हिमालयी पुस्तकालय” किसी मंदिर से कम नहीं। इसमें साहित्य, संस्कृति, इतिहास, भूगोल, दर्शन, राजनीति और विज्ञान से जुड़ी पुस्तकों का विशाल संग्रह है। विशेष रूप से हिमालयी राज्यों की लोककथाएँ, दुर्लभ पांडुलिपियाँ, सिक्के, मूर्तियाँ और पहाड़ी चित्रकला इस पुस्तकालय की पहचान होंगी।
यह पुस्तकालय पहाड़ी स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है—जहाँ खोली, छज्जा और तिवारी जैसी पारंपरिक संरचनाएँ स्थानीय पत्थर और लकड़ी से बनी हैं।
प्रकृति, संस्कृति और आत्मा का त्रिवेणी संगम
थानो का यह लेखक गाँव केवल भवनों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र है। यहाँ की संजिवनी वाटिका और नक्षत्र-नवग्रह वाटिका रचनाकारों को प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ संवाद स्थापित करने की प्रेरणा देती हैं।
यह स्थान ध्यान, चिंतन और आत्मावलोकन के लिए आदर्श है। पहाड़ों की ताजी हवा, पक्षियों का मधुर कलरव और प्रकृति की नीरवता लेखक को भीतर तक झकझोर देती है, जिससे सृजन स्वतः प्रवाहित होने लगता है।
जो भी व्यक्ति यहाँ कुछ दिन बिताता है, वह स्वयं में एक नई ऊर्जा और दृष्टि लेकर लौटता है। यह स्थान मनुष्य के भीतर संवेदना, करुणा और सृजनशीलता के बीज बोता है — ठीक वैसे ही जैसे प्राचीन काल में तपोवन साधना के केंद्र हुआ करते थे।
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
“लेखक गाँव” केवल आधुनिक साहित्यिक प्रयोगों का मंच नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का केंद्र भी है। यहाँ स्थित गंगा और हिमालय संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियाँ, लोक कलाएँ, सिक्के, हस्तशिल्प, और दुर्लभ दस्तावेज़ प्रदर्शित किए जाएंगे।
यह संग्रहालय युवाओं को यह समझाने का माध्यम बनेगा कि हमारी संस्कृति केवल इतिहास की धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान का आधार भी है।
इस स्थान का उद्देश्य है — “साहित्य के माध्यम से संस्कृति की रक्षा, और संस्कृति के माध्यम से मानवता का विकास।”
वैश्विक संदर्भ में हिंदी का विस्तार
स्पर्श हिमालय महोत्सव और लेखक गाँव की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि इसने हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाया है।
विदेशों से आए लेखकों ने न केवल हिंदी के साहित्य को समझा बल्कि उसे अपनी भाषा में अनुवादित करने का संकल्प भी लिया। इस प्रकार, ये लेखक अपने-अपने देशों में हिंदी के ब्रांड एम्बेसडर बन रहे हैं।
यह प्रयास भारत को सॉफ्ट पावर के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है।
भविष्य की राह
थानो का लेखक गाँव आज एक मॉडल बन चुका है। आने वाले समय में ऐसे और गाँव देश के अन्य हिस्सों में भी विकसित किए जा सकते हैं—जैसे लेखक धाम या कला ग्राम।
ये स्थान न केवल पर्यटन को बढ़ावा देंगे, बल्कि सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेंगे।
लेखक, शोधकर्ता, विद्यार्थी और कला प्रेमी यहाँ आकर अपनी सृजनशीलता को नया आयाम दे सकेंगे।
शब्दों का हिमालय
थानो का “लेखक गाँव” वास्तव में सृजन की तपोभूमि है। यह वह स्थान है जहाँ शब्द साधना बन जाते हैं और लेखन पूजा का रूप ले लेता है।
यह गाँव हमें याद दिलाता है कि तकनीक और प्रगति के इस युग में भी साहित्य की जड़ें प्रकृति और आत्मा से जुड़ी हैं।
आने वाले 3 से 5 नवम्बर 2025 को जब एक बार फिर स्पर्श हिमालय महोत्सव का नया अध्याय आरंभ होगा, तब यह केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं होगा, बल्कि भारत की साहित्यिक चेतना का उत्सव होगा — एक ऐसा उत्सव जो शब्दों को पर्वत की ऊँचाइयों तक ले जाएगा।
“लेखक गाँव” इस बात का प्रमाण है कि जब साहित्य और संस्कृति एक साथ चलते हैं, तो समाज केवल प्रगतिशील नहीं होता — वह प्रेरणास्रोत बन जाता है।
यह गाँव आने वाले समय में निश्चय ही भारत की सांस्कृतिक आत्मा का केंद्र बनेगा — जहाँ हर शब्द हिमालय की तरह अडिग, और हर विचार गंगा की तरह पवित्र होगा।





