शिक्षित बेरोजगारी के उन्मूलन हेतु योगी सरकार की पहल

शिशिर शुक्ला

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के शिक्षित बेरोजगारों को एक बड़ी सौगात देने की तैयारी की जा रही है। विगत दिनों प्रकाश में आई “मुख्यमंत्री प्रशिक्षुता योजना” के तहत उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले से दस हजार इंटरमीडिएट उत्तीर्ण एवं डिग्रीधारक बेरोजगार युवाओं का चयन करके उन्हें एक साल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इन युवाओं को प्रतिमाह आठ से नौ हजार का स्टाइपेंड भी दिया जाएगा। वर्ष 2017 में जब से श्री योगी आदित्यनाथ जी ने उत्तर प्रदेश की बागडोर अपने हाथों में ली है, उन्होंने प्रदेश की युवाशक्ति के विकास, कौशलोन्नयन एवं रोजगार हेतु कई सक्रिय कदम उठाए हैं। आगामी मुख्यमंत्री प्रशिक्षुता योजना भी इन्ही महत्वपूर्ण प्रयासों में से एक है। ध्यातव्य है कि उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है और दिलचस्प बात यह है कि भारत जनसंख्या के क्षेत्र में चीन को पीटकर विश्व में अव्वल बनने की तैयारी में है। युवाशक्ति को लेकर उत्तर प्रदेश शीर्ष पांच राज्यों में आता है।

हाल ही में समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों से प्राप्त आंकड़ों के द्वारा एक कड़वा एवं चौंकाने वाला सच सामने आया। कर्मचारी चयन आयोग की मल्टीटास्किंग स्टाफ भर्ती जिसके लिए शैक्षिक योग्यता महज दसवीं उत्तीर्ण होना है, उसमें पिछले कुछ वर्षों से यूपी व बिहार के एमटेक, एमबीए, एमसीए, बीटेक एवं बीएड जैसे डिग्रीधारक युवा लगातार आवेदन कर रहे हैं। परिचारक, चौकीदार, सफाईकर्मी, गेटकीपर इत्यादि पदों पर भर्ती के लिए इतने उच्च शिक्षित युवाओं का कतार में लगना निश्चित रूप से पीड़ादायक एवं चिंताजनक है। दो वर्ष पूर्व नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट, कानपुर में मल्टीटास्किंग स्टाफ हेतु आठ बीटेक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का चयन हुआ था। इतना तो निश्चित ही है कि उच्च शिक्षित युवा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनने का स्वप्न कदापि नहीं देख रहा होगा। निस्संदेह मजबूरीवश ही उसके द्वारा ऐसा कदम उठाया गया होगा।

सत्य तो यह है कि बेरोजगारी भारत की सबसे गंभीर समस्या है। बेरोजगारी के वस्तुतःअनेक रूप हैं जिनमें शिक्षित बेरोजगारी बड़ी तीव्रता के साथ भारत में अपने पांव पसार रही है। बेरोजगारी चाहे किसी भी तरह की हो, उसकी नींव तैयार करने में जनसंख्या वृद्धि का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है। भारत में व्याप्त विभिन्न द्वितीयक समस्याएं जनसंख्या वृद्धि की समस्या का ही सहउत्पाद हैं। संसाधनों पर नित्यप्रति बढ़ता अनियंत्रित जनसंख्या का दबाव बेरोजगारी जैसे संत्रास को बढ़ावा देता है। शिक्षित बेरोजगारी दिन प्रतिदिन अपने पाश में भारत को बड़ी मजबूती से जकड़ रही है। जनसंख्या की ज्वलंत समस्या के अतिरिक्त बड़ी संख्या में शिक्षित बेरोजगारों की भीड़ बढ़ते जाने का एक कारण यह भी है कि कहीं न कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था दोषपूर्ण है। उच्च शिक्षा से संबंधित विभिन्न डिग्रियों जैसे- बीटेक, एमबीए, एमसीए इत्यादि का जो स्तर कई दशक पहले था, आज वह कदापि नहीं है। कारण यह है कि एक ही डिग्री, आईआईटी जैसे उच्च गुणवत्तापूर्ण संस्थान से भी मिल रही है एवं वही डिग्री एक घिसे पिटे प्राइवेट संस्थान से भी प्राप्त हो जा रही है। लिहाजा डिग्रीधारकों की एक बड़ी तादाद प्रतिवर्ष तैयार होती जा रही है, लेकिन गुणवत्ता के पैमाने पर यह भीड़ सामान्य से भी काफी नीचे स्तर पर होती है। एक अन्य उल्लेखनीय बात यह है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न बड़े बड़े धनाढ्य लोग व्यवसायोन्मुखी मानसिकता के कारण नए नए शिक्षण संस्थान खोल रहे हैं। जनसंख्या की अति के कारण इन संस्थानों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी बड़ी आसानी से मिल जाते हैं। ऐसे विद्यार्थी जो अच्छे स्तर के संस्थानों में प्रवेश पाने से वंचित रह जाते हैं, वे इन गुणवत्ताविहीन संस्थानों में केवल और केवल डिग्री हासिल करने के लिए प्रवेश ले लेते हैं। संस्थान भी विद्यार्थियों को ग्राहक समझकर उनसे धन खींचने में सफल हो जाते हैं। नतीजतन, एक ही डिग्री उच्च मानसिक व बौद्धिक स्तर के विद्यार्थी के पास भी होती है और उस विद्यार्थी के पास भी होती है जोकि सही मायने में उसके लायक ही नहीं है।

बेरोजगारी के उन्मूलन हेतु व्यक्तिगत एवं शासन स्तर से स्थाई कदम उठाए जाने की महती आवश्यकता है। बेरोजगारी के कुप्रभाव आए दिन युवाओं में बढ़ते असंतोष, हिंसा व अराजकता की बढ़ती घटनाओं एवं युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति के रूप में देखी जा सकती है। जब युवा अपने भविष्य को लेकर निराश हो जाता है तो अपराध का जन्म होता है। बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए यह नितांत आवश्यक है कि सर्वप्रथम अनियंत्रित होती जनसंख्या को काबू में किया जाए। जब तक जनसंख्या पर लगाम नहीं लगाई गई, बेरोजगारी उन्मूलन के लिए किया जाने वाला प्रत्येक उपाय निष्फल सिद्ध होगा। शासन के द्वारा शिक्षा को लेकर ऐसी नीति बनाने की आवश्यकता है जिससे उच्च शिक्षा की विभिन्न डिग्रियां उन्ही युवाओं को मिलें जो वास्तव में इनके योग्य हैं। ऐसे युवाओं के लिए, जिनका बौद्धिक स्तर अपेक्षाकृत कम है, विभिन्न रोजगारपरक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। निस्संदेह उत्तर प्रदेश सरकार की “मुख्यमंत्री प्रशिक्षुता योजना” बेरोजगारी उन्मूलन की दिशा में एक सराहनीय कदम है।