अजय कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के मैदान में उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेताओं की मौजूदगी सबसे प्रमुख ट्रेंड बन चुकी है। इस बार न सिर्फ दोनों राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों का राजनीतिक समीकरण आपस में गहरे जुड़ गया है, बल्कि कई बड़े नेताओं की डिमांड ने बिहार के चुनावी रण को उत्तर प्रदेश की सत्ता की बिसात से भी जोड़ दिया है। यूपी से सबसे ज्यादा डिमांड वाले नेता योगी आदित्यनाथ हैं, जिनकी सभाओं की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। इसके अलावा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के अजय राय सहित कई नाम प्रमुख हैं। इनकी डिमांड बिहार के जातीय समीकरणों और राजनीतिक रणनीति के हिसाब से तय हो रही है।
उत्तर प्रदेश के नेताओं की बड़ी फौज इस बार बिहार के चुनाव प्रचार में उतरी है। योगी आदित्यनाथ, जिनकी साक्षात्कार और सभाओं के लिए सबसे ज्यादा एप्लिकेशन सभी दलों के उम्मीदवार भेज रहे हैं, लगभग 50 सभाओं की योजना के तहत 100 से 150 सीटों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी मांग उन क्षेत्रों में ज्यादा है, जो यूपी बॉर्डर से सटे हैं, जैसे गोपालगंज, सारण, सीवान, पश्चिम चंपारण, कैमूर, रोहतास, बक्सर आदि। इन जिलों की लगभग 32-35 सीटों पर योगी का डायरेक्ट इम्पैक्ट माना जा रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां राजपूत, ब्राह्मण और हिंदुत्व की राजनीति प्रमुखियत से मानी जाती है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी चुनाव के दरम्यान बिहार में कैंप किए हुए हैं। जमीन पर प्रचार से लेकर संगठनात्मक कमान उनके हाथ में हैं। बीजेपी के स्वतंत्र देव सिंह, दिनेश प्रताप सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह समेत कई नेता लगातार रैलियों व जनसभाओं के जरिए जनता में एनडीए के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। महागठबंधन की ओर अखिलेश यादव अपनी टीम के साथ सक्रिय हैं। वे अपनी रैलियों में यूपी-बिहार के सामाजिक ताने-बाने को जोड़कर युवाओं और पिछड़े वर्ग के मुद्दे भुनाने की रणनीति अपना रहे हैं।
बिहार के सीमावर्ती जिलों में यूपी के प्रचारकों की डिमांड सीधा जातीय समीकरण, सांस्कृतिक जुड़ाव और हिंदुत्व के मैसेज से जुड़ी है। बीजेपी की रणनीति है कि योगी को वहां उतारा जाए, जहां पिछली बार पार्टी कमजोर रही या हिंदुत्व की राजनीति प्रभावी हो सकती है। शाबाद और आसपास के रीजन में खासतौर से योगी की सबसे अधिक सभाओं की प्लानिंग है, क्योंकि ये इलाका राजपूत बहुल है और यहां उनकी लोकप्रियता भी अधिक है। अखिलेश यादव की डिमांड भोजपुरी बेल्ट, मुस्लिम बहुल तथा यादव-धानुक-चौहान जैसे वर्गों में ज्यादा मानी जा रही है। वे भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व एजेंडे के जवाब में सामाजिक न्याय, किसान-मजदूर और गठबंधन के चरित्र पर जोर देते हैं। कांग्रेस ने भी यूपी के अजय राय, अजय कुमार लल्लू, तनुज पुनिया, प्रदीप जैन, संजय कपूर जैसे छह नेताओं को बिहार चुनावी ड्यूटी पर भेजा है, जो अपने क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं को संगठित कर रहे हैं।
पश्चिमी और पूर्वी यूपी की बोली, संस्कृति और जातीय समीकरण बिहार के पश्चिमी जिलों से बहुत मिलते हैं। यूपी से जुड़े जिलों पर इस बार पहले चरण के चुनाव में वोटिंग हो रही है, जिससे यूपी के नेताओं की पोजिशन और भी अहम हो जाती है। उधर, बिहार के महागठबंधन के पक्ष में तेजस्वी यादव की डिमांड युवा मतदाताओं और बदलते राजनीतिक माहौल की वजह से खास बनी है। इनका फोकस बदलाव और नए बिहार के एजेंडे पर रहता है। यूपी के नेताओं के प्रचार से बिहार की राजनीति में “हिंदुत्व बनाम जातीय गठबंधन” की लड़ाई और तेज हो गई है। जहां योगी आदित्यनाथ का चेहरा लॉ एंड ऑर्डर, बुलडोजर एक्शन और कट्टर हिंदुत्व के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव रोजगार, युवाओं की जरूरतें और सामाजिक न्याय की बात आगे रख रहे हैं। ऐसे में बिहार का एजेंडा यूपी के भीतर भी एक संकेत भेजता है कि 2027 के यूपी चुनाव की बुनियाद कितनी मजबूती से तैयार हो रही है।
कुल मिलाकर, बिहार में इस बार चुनावी प्रचार सिर्फ पार्टी के सीमित नेताओं पर नहीं, बल्कि पड़ोसी प्रदेश यूपी के चर्चित चेहरों की लोकप्रियता, रणनीति और सामाजिक-सांस्कृतिक समीकरणों पर टिका हुआ है। योगी आदित्यनाथ की सभाओं की जितनी डिमांड है, वह बताती है कि इस बार बिहार की सत्ता की चाबी उसकी सीमा के उस पार से भी तय होगी। वहीं, अखिलेश यादव और कांग्रेस के यूपी नेता महागठबंधन के एजेंडे को धार देने में लगे हैं। यूपी-बिहार का जुड़ाव लोकतांत्रिक राजनीति के गहरे और नए समीकरण की बुनियाद बनता दिख रहा है।





