योगी का गन्ना मंत्र, किसानों को राहत और सहयोगियों संग चुनावी तालमेल की मिठास

Yogi's sugarcane mantra, relief to farmers and the sweetness of electoral coordination with allies

अजय कुमार

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए गन्ने के दाम में तीस रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर दी है। अब अगेती प्रजाति के गन्ने का मूल्य चार सौ रुपये और सामान्य प्रजाति का मूल्य तीन सौ नब्बे रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह निर्णय न केवल गन्ना किसानों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि प्रदेश की राजनीति में भी नए समीकरणों की आहट दे रहा है। इस एक फैसले से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसान वर्ग, सहयोगी दलों और उद्योग जगत तीनों को साधने की कोशिश की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों से लेकर पूर्वांचल के गांवों तक इस घोषणा ने चर्चा का माहौल बना दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब प्रदेश में पंचायत चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और 2027 के विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट भी तेज होती दिख रही है।

गन्ना, उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की जान कहा जा सकता है। यह सिर्फ एक फसल नहीं बल्कि करोड़ों किसानों की आजीविका का आधार है। प्रदेश में करीब 29.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ना बोया जाता है और 122 से अधिक चीनी मिलें इसका प्रसंस्करण करती हैं। सरकार का कहना है कि इस निर्णय से गन्ना किसानों को लगभग तीन हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त लाभ मिलेगा। योगी सरकार का दावा है कि 2017 से अब तक उसने चार बार गन्ना मूल्य बढ़ाया है और इस अवधि में किसानों को लगभग दो लाख नब्बे हजार करोड़ रुपये का भुगतान कराया गया है, जो पिछली दो सरकारों के संयुक्त भुगतान से कहीं अधिक है। इस आंकड़े के पीछे सरकार का उद्देश्य साफ है किसानों के बीच भरोसे का माहौल बनाना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देना।

राजनीतिक तौर पर देखें तो यह कदम बेहद रणनीतिक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का वोट बैंक बेहद प्रभावी माना जाता है। मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, बागपत, शामली जैसे जिलों में गन्ना किसानों की भूमिका निर्णायक होती है। 2007 में जब किसान बसपा की ओर झुके, तब मायावती सत्ता में आईं। 2012 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का रुख किया तो अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद समीकरण बदले और किसान भाजपा के साथ खड़े दिखे। 2014 और 2017 में भाजपा ने इस समर्थन का पूरा लाभ उठाया। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में गन्ना बकाया और भुगतान में देरी के मुद्दे ने असर दिखाया और भाजपा की कई सीटें खतरे में आईं। उसके बाद किसान आंदोलन ने पश्चिमी यूपी की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया। इस बार योगी सरकार ने समय रहते गन्ना मूल्य वृद्धि करके उसी भरोसे को फिर से मजबूत करने की कोशिश की है।

इस फैसले का असर सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं रहेगा। भाजपा के सहयोगी दल जैसे राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल (एस) और सुभासपा को भी यह फैसला साधता दिखता है। आरएलडी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने मुख्यमंत्री का आभार जताते हुए कहा कि योगी सरकार ने गन्ने की मिठास और किसानों की मेहनत का मान रखा है। इसी तरह सुभासपा और अपना दल (एस) ने भी सरकार की सराहना की है। यह संदेश साफ है कि भाजपा अपने सहयोगियों के साथ तालमेल को मजबूत करने में लगी है ताकि आने वाले चुनावों में विपक्ष को एकजुट होने का मौका न मिले। पश्चिमी यूपी में आरएलडी की पकड़ मजबूत है और किसान वर्ग में उसका प्रभाव भी। ऐसे में सरकार का यह कदम राजनीतिक दृष्टि से दोहरा फायदा देता है किसान खुश और सहयोगी दल संतुष्ट।

गन्ना नीति को लेकर योगी सरकार की दिशा पिछले कुछ वर्षों में काफी स्पष्ट रही है। सरकार ने बकाया भुगतान को लेकर लगातार निगरानी रखी है, चीनी मिलों पर दबाव बनाया है और ‘स्मार्ट गन्ना किसान’ जैसी ऑनलाइन प्रणाली शुरू की है, जिससे गन्ना पर्ची और भुगतान की प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है। अब किसान का भुगतान सीधे डीबीटी के जरिए खाते में पहुंचता है। बिचौलियों का प्रभाव लगभग खत्म हुआ है। सरकार ने यह भी बताया है कि अब तक 42 चीनी मिलों की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा चुकी है, छह बंद मिलों को दोबारा चालू किया गया है और चार नई मिलें स्थापित की गई हैं। इन कदमों से प्रदेश में बारह हजार करोड़ रुपये का निवेश आया है, जिससे गन्ना उद्योग में रोजगार के नए अवसर भी बढ़े हैं।

इथेनॉल उत्पादन में भी उत्तर प्रदेश ने नया कीर्तिमान बनाया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में इथेनॉल उत्पादन 41 करोड़ लीटर से बढ़कर 182 करोड़ लीटर तक पहुंच गया है और आसवनियों की संख्या 61 से बढ़कर 97 हो गई है। इससे न सिर्फ किसानों को नई आमदनी के रास्ते खुले हैं, बल्कि वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र को भी बल मिला है। सरकार के अनुसार, दो चीनी मिलों में अब सीबीजी संयंत्र भी लगाए जा रहे हैं ताकि गन्ने के अपशिष्ट से जैव ऊर्जा का उत्पादन हो सके। इस तरह योगी सरकार गन्ना नीति को केवल मूल्य वृद्धि तक सीमित नहीं रखना चाहती बल्कि इसे ऊर्जा, निवेश और आत्मनिर्भरता के बड़े लक्ष्य से जोड़ रही है।

हालांकि, विपक्ष इस फैसले को चुनावी दांव करार दे रहा है। समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह का कहना है कि महंगाई के अनुपात में यह वृद्धि पर्याप्त नहीं है और सरकार किसानों के साथ छल कर रही है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी कहा कि दाम बढ़ाना अच्छा है, लेकिन 400 रुपये के पार जाना चाहिए था ताकि महंगाई की भरपाई हो सके। इन आलोचनाओं के बावजूद, यह भी सच है कि योगी सरकार के कार्यकाल में अब तक गन्ने के मूल्य में कुल 85 रुपये की वृद्धि हुई है, जबकि मायावती और अखिलेश यादव की संयुक्त दस वर्षों की अवधि में यह वृद्धि मात्र 65 रुपये रही थी।

गन्ने की मिठास में छिपी राजनीति को समझना आसान नहीं। यह फसल पश्चिमी यूपी के साथ-साथ पूर्वांचल में भी आर्थिक-सामाजिक प्रभाव रखती है। माना जाता है कि प्रदेश की लगभग 180 विधानसभा सीटों पर गन्ना किसानों का सीधा प्रभाव है। ऐसे में योगी सरकार का यह फैसला चुनावी समीकरणों को सीधे प्रभावित करेगा। यदि किसानों के बीच यह संदेश जाता है कि सरकार ने उनके हित में काम किया है और बकाया भुगतान समय पर हुआ है, तो यह भाजपा के लिए बड़े राजनीतिक लाभ में बदल सकता है।इसके साथ ही सरकार ने हाल में फॉस्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ाने का निर्णय भी लिया है। लगभग 37,952 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन के साथ यह कदम किसानों को सस्ते और गुणवत्तापूर्ण खाद समय पर उपलब्ध कराने के लिए उठाया गया है। इससे गन्ने की उत्पादकता और लागत पर सकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद है।

कुल मिलाकर, योगी आदित्यनाथ का यह निर्णय एक साथ कई मोर्चों को साधने वाला है। इससे जहां किसानों को आर्थिक राहत मिलेगी, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की छवि मजबूत होगी। सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की रणनीति और उद्योग में निवेश को बढ़ावा देने की नीति, दोनों का मेल इस फैसले में साफ झलकता है। गन्ना उत्तर प्रदेश की राजनीति का ऐसा घटक है जो हर चुनाव में स्वाद बदल देता है। इस बार योगी सरकार ने उसी मिठास को अपने पक्ष में करने की ठोस कोशिश की है। अगर आने वाले महीनों में बकाया भुगतान की स्थिति नियंत्रण में रहती है और किसान वाकई इस बढ़ोतरी का लाभ महसूस करते हैं, तो यह फैसला भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।गन्ने की बढ़ी हुई कीमत के साथ किसानों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। यह फैसला केवल आर्थिक राहत नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश भी है कि योगी सरकार ग्रामीण उत्तर प्रदेश को अपनी प्राथमिकता में रखे हुए है। अब देखना यह होगा कि यह मिठास कितनी दूर तक असर दिखाती है सिर्फ खेतों तक या फिर विधानसभा तक।