“आपकी पूंजी,आपका अधिकार” -तीन महीनों का जन-जागरण अभियान-सफ़लता या चुनौती?

“Your Capital, Your Rights” – A three-month public awareness campaign – a success or a challenge?

भारत की वित्तीय जागरूकता क्रांति-“आपकी पूंजी, आपका अधिकार”- बैंकों में फंसे 1.84 लाख करोड़ रुपयों को जनता तक पहुँचाने की ऐतिहासिक पहल

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

वैश्विक स्तरपर अमेरिका ब्रिटेन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में“अनक्लेमड मनी अथॉरिटी” जैसी संस्थाएं वर्षों से सक्रिय हैं।वे निष्क्रिय खातों का डेटा केंद्रीकृत रखती हैं और नागरिकों को ऑनलाइन जांच की सुविधा देती हैं। 4 अक्टूबर 2025 को केंद्रीय वित्तमंत्री ने भी एक ऐतिहासिक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया गया जो इसी मॉडल को भारतीय सामाजिक और डिजिटल संदर्भ में आगे बढ़ा रहा है।यह अभियान भारत को वैश्विक वित्तीय समावेशन (ग्लोबल फाइनेंसियल इन्क्लूशन) का अग्रणी राष्ट्र बना सकता है।भारत की बैंकिंग व्यवस्था में आज लगभग 1.84 लाख करोड़ रुपये “बिना दावे” या “अनक्लेम्ड” के रूप में पड़े हैं। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि यह वह पूंजी है जो लाखों नागरिकों की मेहनत की कमाई थी, परंतु किसी न किसी कारणवश वह अपने मालिकों तक वापस नहीं पहुँच पाई। इनमें ऐसे खाते भी हैं जिनके धारक का निधन हो गया,कोई देश छोड़कर चला गया, किसी को अपने खाते की जानकारी या दस्तावेज़ नहीं मिल रहे, या कोई व्यक्ति अपनी जमा राशि को भूल चुका है।इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य बैंकों, बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंड हाउसों, एनपीएस, और अन्य वित्तीय संस्थानों में बिना दावे की पड़ी लगभग 1.84 लाख करोड़ रूपए की संपत्तियों को उनके असली मालिकों या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों तक पहुँचाना है।भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, इन निधियों का बड़ा हिस्सा बचत खातों, सावधि जमाओं,बीमा पॉलिसियों, म्यूचुअल फंड्स, शेयरों, डाक योजनाओं और पेंशन खातों में वर्षों से निष्क्रिय पड़ा है।यह स्थिति न केवल वित्तीय प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आम जनता और संस्थानों के बीच सूचना और पहुंच की कमी किस तरह आमदनी को निष्क्रिय बना देती है।वित्त मंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि“यह जनता का पैसा है, यह राष्ट्र की परिसंपत्ति नहीं। इसका हकदार वही है जिसने इसे अर्जित किया या उसके कानूनी वारिस।”यह बयान न केवल वित्तीय समावेशन की भावना को पुष्ट करता है, बल्कि भारत की वित्तीय व्यवस्था में न्यायसंगत वितरण और पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।

साथियों बात अगर हम समस्या का मूल कारण, निष्क्रिय खाते और प्रशासनिक जटिलताएं इसको समझने की करें तो, यह समझना आवश्यक है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर 1.84 लाख करोड़ रुपये कैसे “अनक्लेम्ड” रह गए। इसके पीछे कई सामाजिक और प्रशासनिक कारण हैं (1)मृत्यु के बाद वारिसों की अनभिज्ञता:-बहुत से खाताधारक अपनी जमा राशि के वारिस तय नहीं करते या नामांकन नहीं जोड़ते। मृत्यु के बाद परिवार को इस खाते की जानकारी नहीं होती।(2) प्रवासन या पतापरिवर्तन:-लाखों लोग विदेश चले गए या अपने पते बदल लिए। बैंक के पास अपडेट नहीं पहुंचने से खातों में संपर्क टूट गया। (3)दस्तावेजों की कमी:-बहुत से लोग पासबुक एफडी रसीद, बीमा पॉलिसी नंबर जैसी जानकारी खो देते हैं।(4)सिस्टम की जटिलता:-अलग- अलग संस्थानों की अलग-अलग प्रक्रियाएं होने से आम व्यक्ति भ्रमित रहता है। (5)तकनीकी जागरूकता का अभाव: ग्रामीण और बुजुर्ग वर्ग के लोग डिजिटल बैंकिंग या ऑनलाइन दावे की प्रक्रिया नहीं जानते।इन सभी कारणों ने मिलकर करोड़ों रुपये को निष्क्रिय कर दिया, जिससे बैंकों के पास ऐसी राशि जमा होती चली गई जो संभवतः “किसी की है भी और किसी के पास नहीं भी।”

साथियों बात अगर हम अभियान के तीन स्तंभोंअवेयरनेस एक्सेस और एक्शन को समझने की करें तो,वित्त मंत्री ने अधिकारियों को इस अभियान को तीन ‘ए’ पर केंद्रित करने के निर्देश दिए हैं -(1) अवेयरनेस (जागरूकता) – आम जनता को यह जानकारी देना कि यदि उनकी कोई जमा राशि या निवेश निष्क्रिय पड़ा है तो वे उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए डिजिटल, सोशल मीडिया, रेडियो, टीवी और ग्राम पंचायत स्तर तक जन-संवाद चलाए जाएंगे। (2)एक्सेस (पहुँच):एक एकीकृत ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाएगा जिसमें व्यक्ति अपने नाम,आधार पैन या मोबाइल नंबर से यह जांच सकेगा कि उसके नाम से कोई निष्क्रिय खाता या निवेश किसी संस्था में तो नहीं है। (3) एक्शन (कार्रवाई): वास्तविक दावेदार को दस्तावेजों के सत्यापन के बाद पैसा वापस दिलाया जाएगा। बैंकिंग लोकपाल, आरबीआई, सेबी और इरडा जैसे नियामक संस्थान इस प्रक्रिया की निगरानी करेंगे ताकि किसी प्रकार की देरी या गड़बड़ी न हो।ये तीनों स्तंभ न केवल प्रक्रिया को तेज करेंगे बल्कि वित्तीय व्यवस्था में पारदर्शिता का नया मानक स्थापित करेंगे।

साथियों बात अगर हमजनता को होने वाले प्रत्यक्ष लाभो को समझने की करें तो,“आपकी पूंजी,आपका अधिकार” अभियान से आम जनता को कई प्रत्यक्ष लाभ होंगे-(1) भूली हुई जमा राशि वापस पाने का अवसर:-लाखों परिवारों को अपने स्वर्गीय परिजनों की जमा पूंजी पुनः प्राप्त करने का मौका मिलेगा।(2)वित्तीय आत्मविश्वास में वृद्धि:-लोगों का बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर भरोसा बढ़ेगा।(3)डिजिटल फाइनेंशियल लिटरेसी में सुधार:- लोगों को अपने निवेशों की निगरानी और अपडेट रखने की सीख मिलेगी।(4) आर्थिक प्रवाह में वृद्धि:- निष्क्रिय पूंजी के सक्रिय होने से अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ेगी।हितधारकों को होने वाले लाभ-इस पहल से केवल जनता ही नहीं, बल्कि कई अन्य हितधारक भी लाभान्वित होंगे- (1) बैंक और वित्तीय संस्थान:- पुरानी निष्क्रिय खातों को बंद कर सकेंगे, जिससे उनके ऑडिट और रिपोर्टिंग का बोझ कम होगा।(2)सरकार औरनियामक:- पारदर्शिता और जनता के भरोसे में वृद्धि से वित्तीय अनुशासन मजबूत होगा।(3)वित्तीय तकनीकी कंपनियां- डेटा एकीकरण, पहचान सत्यापन और डिजिटल क्लेम सिस्टम के विकास में नई संभावनाएं खुलेंगी।(4)आर्थिक विकास:- निष्क्रिय धन के पुनः प्रवाह से बाजार में पूंजी की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे निवेश और उपभोग दोनों में बहुत सुधार होगा।

साथियों बात अगर हम योजना को लागू करने में संभावित कठिनाइयों को समझने की करें तो,हालांकि यह योजना क्रांतिकारी है, पर इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ भी सामने आएंगी(1)दस्तावेजों की जटिलता:-पुराने खातों या बीमा पॉलिसियों के दस्तावेज़ कई बार उपलब्ध नहीं होते।(2)नकली दावों का खतरा:-यदि सत्यापन प्रणाली कमजोर रही तो धोखाधड़ी के मामले सामने आ सकते हैं। (3)ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना की कमी:-इंटरनेट और डिजिटल जानकारी की कमी से कई पात्र लोग वंचित रह सकते हैं।(4)विभिन्न संस्थानों का डेटा असंगत:-बैंक,बीमा औरम्यूचुअल फंड हाउसों के डेटा में तालमेल की कमी।(5)न्यायिक प्रक्रिया की देरी:-यदि किसी खाते पर कानूनी विवाद है, तो उसका समाधान लंबा खिंच सकता है।

साथियों बात अगर हम इस योजना से धोखाधड़ी क़े खतरों को समझने की करें तो,(1)इतनी बड़ी रकम का दावा उठने से साइबर अपराधियों और फर्जी दस्तावेज़ बनाने वाले गिरोह सक्रिय हो सकते हैं।(2)संभावित जोखिम:-फर्जी पहचान पत्र या झूठे वारिस प्रमाणपत्र के आधार पर दावा।(3) साइबर फ्रॉड- नकली वेबसाइट या फिशिंग लिंक के ज़रिए लोगों की निजी जानकारी चुराना।(4)अंदरूनी मिलीभगत-बैंक कर्मियों या एजेंटों द्वारा गड़बड़ी।सुरक्षा उपाय:-(1)आधार आधारित ई-केवाईसी अनिवार्य किया जाएगा।(2)डेटा एन्क्रिप्शन और मल्टी-लेयर वेरिफिकेशन सिस्टम लागू होंगे।(3)शिकायत निवारण के लिए विशेष हेल्पलाइन और पोर्टल बनाए जाएंगे(4)नियामक एजेंसियों द्वारा नियमित ऑडिट और क्रॉस-चेक।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 1.84 लाख करोड़ रुपये,यह केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीय परिवारों की मेहनत और उम्मीदों का प्रतीक है।वित्त मंत्री का यह प्रयास भारतीय वित्तीय व्यवस्था में जनता के हक़ को जनता तक पहुँचाने का एक ऐतिहासिक अवसर है।यदि इस योजना को पारदर्शिता, तकनीकी दक्षता और संवेदनशीलता के साथ लागू किया गया, तो यह न केवल भारतीय नागरिकों को उनका पैसा लौटाएगी, बल्कि यह पूरी दुनिया को यह संदेश देगी कि “भारत अपनी जनता की पूंजी की रक्षा करने वाला राष्ट्र है।”