शिशिर शुक्ला
किसी भी देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है, कि वहां की जनसंख्या का एक अच्छा खासा प्रतिशत भूखे पेट सोने पर विवश हो। यही नहीं, अपितु आज की स्थिति यह है कि मृत्यु के कारणों में भूख ने भी अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर ली है। शनै: शनै: यह समस्या गंभीर चिंताजनक स्थिति का रूप लेती जा रही है। हम यदि विश्व को छोड़कर केवल अपने भारतवर्ष की दशा पर ध्यान केंद्रित करें, तो उपलब्ध आंकड़े यह बताते हैं कि भारत में दुनिया के भूखे लोगों का लगभग 24 प्रतिशत है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (वैश्विक भूख सूचकांक) 2021 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 116 देशों में 101 वें स्थान पर है, जिस आधार पर इसे “गंभीर भूख” की श्रेणी में रखा गया है। इससे भी अधिक विचारणीय तथ्य यह है कि भारत 1 वर्ष के अंदर ही अपनी स्थिति (2020 रिपोर्ट) से 7 पायदान नीचे खिसक गया है। आखिरकार दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही इस स्थिति के पीछे कौन से कारक उत्तरदायी हैं, इसे समझने के लिए हमें भुखमरी के अर्थ एवं भारत की स्थिति पर एक पैनी नजर डाली होगी।
भुखमरी वस्तुतः कुपोषण की चरम सीमा है। कुपोषण का अभिप्राय प्रतिदिन न्यूनतम आवश्यक पोषक तत्वों का शरीर को उपलब्ध न हो पाना है, यद्यपि भोजन शरीर को मिलता रहता है। यही कुपोषण जब दयनीय स्थिति को धारण करके मृत्यु को अंजाम देने लगता है, तो इसे भुखमरी कहा जाता है। अब बात करें भारत की स्थिति की, तो भारत में प्रत्येक क्षेत्र में असमानता बड़ी मजबूती से अपनी जड़ों को आज भी जमाए हुए है। यहां एक वर्ग ऐसा है जो भोजन की बर्बादी कर रहा है, तो दूसरा वर्ग ऐसा है जो दो रोटी पाने को तरस रहा है। एक वर्ग ऐसा है जो महलों में जीवन जी रहा है, तो दूसरा वर्ग ऐसा है जो प्रतिदिन सड़क पर सोने को मजबूर है। यह विशालकाय खाई जब तक विद्यमान रहेगी, तब तक भुखमरी एवं गरीबी जैसे कलंक देश पर लगे रहेंगे। आर्थिक असमानता का सबसे बड़ा कुप्रभाव यह है कि गरीब और अधिक गरीब होता जा रहा है, जबकि अमीर और अधिक अमीर होता जा रहा है। भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का प्रतिशत बहुत अधिक है। दूसरी बात यह कि गरीबी के कारण इस वर्ग को अशिक्षा का भी अभिशाप लगा हुआ है। गरीब बेचारा दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करे अथवा स्कूलों में जाकर शिक्षा ग्रहण करे।
यद्यपि शासन के स्तर से इस चुनौती से निपटने हेतु विभिन्न लाभकारी योजनाएं बनाई जाती हैं किंतु योजना बनने के बाद भी कुछ विकट समस्याएं भारत में मौजूद है। प्रथम समस्या यह है कि, योजना जिस रूप में बनती है उसका यथारूप क्रियान्वयन कदापि नहीं हो पाता है। वजह यह कि, क्रियान्वयन करने के स्तर पर बैठे लोग इसमें तनिक भी दिलचस्पी न लेकर केवल इसे कागजी कार्यवाही का रूप देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं। दूसरी समस्या यह है कि गरीब व्यक्ति यह जानता ही नहीं है कि वह किस योजना हेतु किस प्रकार अर्ह है। इसका लाभ बड़े पैमाने पर उठाया जाता है और भ्रष्टाचार जोकि भारत वर्ष का एक गंभीर दुर्भाग्य है, योजना के प्रत्येक चरण को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। अंततः परिणाम यही निकलता है कि समस्या जस की तस बनी रहती है।
आज इस समस्या को गंभीर दृष्टि से देखते हुए इसके त्वरित समाधान की आवश्यकता है। इस हेतु कुछ कदम निश्चित रूप से उठाने होंगे, यथा- गरीबों को उनके अधिकारों से पूर्णतया परिचित कराना, भ्रष्टाचार पर कड़ी नकेल, योजना का सफल क्रियान्वयन एवं योजना के प्रत्येक स्तर पर उसकी सफलता की समीक्षा इत्यादि। यदि भुखमरी जैसे कलंक भारतवर्ष पर लगे रहे तो हमारा विश्व गुरु बनने का स्वप्न सदैव अधूरा रहेगा।